नई दिल्ली: अमित शाह ने शनिवार को मध्यप्रदेश में यह कहकर सबको चौंका दिया कि 75 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को चुनाव नहीं लड़ाने का पार्टी में कोई नियम नहीं है। न ही ऐसी कोई परंपरा है। बीजेपी हाईकमान के रुख में इस लचीलेपन से पार्टी के 75+ के करीब 25 नेताओं में एक बार फिर सक्रिय राजनीति में लौटने की उम्मीद जग गई है।
दरअसल, 2014 में नरेंद्र मोदी ने 75 पार के नेताओं को कैबिनेट में नहीं रखा था। वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी तक को मार्गदर्शक मंडल तक सीमित कर दिया था। उसी दौरान पार्टी में स्पष्ट कर दिया गया था कि चुनाव लड़ने की अधिकतम आयु सीमा 75 साल है। बीजेपी शासित राज्यों में भी यही फॉर्मूला अपनाया गया। गुजरात में मुख्यमंत्री रहीं आनंदीबेन पटेल को 75 की उम्र पार होते ही कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। उन्होंने यह आयु सीमा पूरी होने से महीने पहले ही पद छोड़ दिया था। फेसबुक पोस्ट में उम्र ही उन्होंने इस्तीफे की वजह बताई थी।
इन्हें हो चुका नुकसान
लालकृष्ण आडवाणी (89), मुरली मनोहर जोशी (83)। मंत्री और राष्ट्रपति पद से वंचित रहे। संगठन में मार्गदर्शक मंडल तक सीमित। जिसकी आजतक एक भी बैठक नहीं हुई। आनंदीबेन पटेल (75) गुजरात की मुख्यमंत्री थीं, पद से उम्र के फार्मूले की वजह से हटना पड़ा। नजमा हेपतुल्ला (77) मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद थीं और केंद्र में अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री। 75 की उम्र होने पर न चाहते हुए पद छोड़ना पड़ा। अब राज्यपाल। यशवंत सिन्हा (84) झारखंड के हजारीबाग से जीतते रहे हैं। अटल सरकार में वित्त-विदेश मंत्री रहे।
इस बार टिकट बेटे को मिला। जून 2015 में कहा- ‘बीजेपी में 75 पार के लोगों को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया है।’ उत्तराखंड के पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी (82) को मंत्री नहीं बनाया। जसवंत सिंह (79), अरुण शौरी (75), लालजी टंडन (82), कल्याण सिंह (85), केशरी नाथ त्रिपाठी (82) समेत कई नेता उम्र की वजह से सक्रिय राजनीति से दूर कर दिए गए।
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