भारत एक विशाल सभ्यता-संस्कृति वाला देश है। पहले से ही भारत की सीमा उत्तर में हिमालय पर्वत, हिंदु कुश पर्वत, दक्षिण में कन्या कुमारी, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तक थी। इसके अंतर्गत वर्तमान अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंग्लादेश भौगोलिक क्षेत्र के अंग थे। उस समय संयुक्त परिवार की भावना सामाजिक जीवन की ईकाई थी। राजनैतिक सजगता इसका मार्गदर्शक थी। विशाल देश होने के कारण अनेक समस्याएं भी थी। विदेशी शक्तियों के कारण विकट परिस्थितियां भी आर्इं। विरोध-प्रतिरोध का संघर्ष भी चलता रहा, लेकिन पराधीनता को स्वीकार नहीं किया।
बहुत से वंश व उनके बीच हुए युद्धों के बाद राज्य एक-दूसरे में विलय होते गए। अंत में पानीपत के तीसरे युद्ध 1761 ई. में मराठा शक्ति को हार का सामना करना पड़ा। इस प्रकार पराधीनता का मार्ग प्रदर्शित हुआ। भारत में यूरोपियन व्यापारिक कंपनियों ने राजीतिक सत्ता के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। अंत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी अपने उद्देश्य में सफल हुई।
बंगाल, बिहार, उड़ीसा, सूरत इसके व्यापारिक केंद्र थे। कंपनी अपने आर्थिक हितों के लिए स्वार्थ के साथ मिलकर षड्यंत्र करने लगे। बंगाल का नवाब अलीवर्दी खान की मृत्यु के बाद उसका उत्तराधिकारी सुराजुदोला नवाब बना। नवाब का आंतरिक षड्यंत्रकारी विरोधी मीरजाफर को कंपनी ने अपनी ओर कर लिया। इस षड्यंत्र योजना का कर्ता-धर्ता लार्ड क्लाइव था, जोकि कंपनी का गवर्नर था।
विश्वासघात और षड्यंत्रकारी सैनिक महत्वहीन 23 जून 1757 प्लासी के युद्ध के मैदान मे क्लाइव जीत गया। कंपनी ने अपनी राजनैतिक सत्ता स्थापित की। लार्ड वैलजली 1798-1805, लार्ड डलहौजी 1848-56 तक ब्रिटिश कंपनी भारत की सर्वाेच्च शक्ति बन गई।
कंपनी ने राजनैतिक शक्ति को बढ़ाने के साथ-साथ भारत के सामाजिक, धार्मिक राजस्व, परंपराएं, शिक्षा, सांस्कृतिक क्षेत्रों में हस्तक्षेप किया। लार्ड मैकाले जैसे ब्रिटिशवादी ने इस प्रकार के सुझाव रखे कि ‘‘भारतीय बाहर से भले भारतीय दिखाई दें, लेकिन संस्कारों में पश्चिमी होंगे’’। इस प्रकार भारत ब्रिटिश के अधीन हो गया और कुछेक क्रांतिकारी इस बात को सहन नहीं कर पाए।
1857 की क्र ांति बंगाल में मंगल पाण्डे ने शुरू की। अंग्रेजों ने इसे सैनिक विद्रोह का नाम दिया है। इसके प्रमुख भारतीय नेता कुंवर सिंह, बहादुरशाह जफर, रानी झांसी, तांत्या टोपे, नाना साहब, नेताओं ने नेतृत्व किया। वास्तव में यह क्र ान्ति मध्य भारत तक सीमित नहीं थी, बल्कि जनआक्रोश था। इससे हरियाणा प्रदेश भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका।
आधुनिक शोध जानकारी देते हैं कि ‘भारत का यह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था।’ भले ही ब्रिटिश शक्ति कुछ देसी राज्यों के सहयोग से इसे दबाने में सफल हो गई, लेकिन भारतीय पराधीनता को खत्म करने के लिए संघर्षशील रहे। फिर अंग्रेजों ने अपनी नीति में बदलाव किया और ‘बांटोे और राज्य करो’ की नीति अपनाई।
अनेक महान विद्वानों ने भारत में सांस्कृतिक एकता और स्वाभिमान को जगाया। पराधीनता को खत्म करने का अह्वान किया। केशवचंद्र, स्वामी दयानंद, रामकिशन परमाहंस, विवेकानंद के अतिरिक्त अनेक संस्थाओं ने योगदान दिया। इससे राष्टÑीय भावनाएं उदृत हुई। अग्रेजों के विरूद्ध आवाजें उठने लगी कि हमारी निर्धनता का मूल कारण अंग्रेज है। प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व क्रान्तिकारी गतिविधियां तेज हो चुकी थी।
लोकमान्य तिलक, श्यामकृष्ण वर्मा, वीर सावरकर आदि देशभक्तों के अतिरिक्त बंगाल में क्रान्तिकारी गतिविधियां तेज हो गई। विरेन्द्र घोष, नलिनी बाक्ची, खुदीराम, कनहाई, रासबिहारी घोष, सचिन्द्र सन्याल के अलावा भारत के अन्य भागों में कई नौजवान क्रान्तिकारियों ने आजादी के लिए संघर्ष किया।
प्रथम विश्व युद्ध 1914-18 में भारतीयों ने अंग्रेजों को साम्राज्यवाद के विरूद्ध सहयोग दिया। रोलेट एक्ट पास करके अंग्रेजों ने भारतीयों से विश्वासघात किया। सारे भारत में इसका विरोध हुआ। महात्मा गांधी अंग्रेजों के न्याय में विश्वास रखते थे, लेकिन बाद में वे उनके विरोधी हो गये। इसके लिए उन्होंने असहयोग आन्दोलन 1920-22 का कांग्रेस ने प्रस्ताव पास किया।
विदेशियों वस्तुओं का बहिष्कार, स्वदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई। काले कानून के विरूद्ध पंजाब में भी रोष प्रकट किया गया। लेकिन अमृतसर में जलियांवाले बाग में विरोध हो रहा था, लेकिन जनरल डायर ने शान्त विरोध पर गोलियां चला दी। इस नरसंचार में अनेक लोग मारे गये, जिसमें बच्चे, बूढेÞ शामिल थे। सारे देश में अशान्ति का वातावरण हो गया।
1930-32 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन चला, जिसका उद्देश्य ‘नमक कानून’ तोड़ना था। इसके लिए महात्मा गांधी ने डांडी यात्रा की। इससे पूरे भारत में राष्टÑीय चेतना जागृत हुई। लेकिन दूसरी तरफ क्रांतिकारी समूह के देशभक्तों 23 मार्च 1931 में भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू ने असैम्बली हाल के बम्ब फैंका, जिस कारण उन्हें फांसी की सजा दी गई। इससे सारा भारत शोक में डूब गया।
1939-45 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया। अंग्रेजी सरकार ने भारत से सहयोग लोकतन्त्र की रक्षा के उद्देश्य से मांगा, लेकिन महात्मा गांधी तथा भारतीय नेताओं ने इन्कार कर दिया। 1942 में महात्मा गांधी ने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ आरम्भ कर दिया और कहा कि ‘‘ये मेरे जीवन का अन्तिम संघर्ष है। अब नहीं तो कभी नहीं।’’ इससे आजादी की लहर अपने चरम पर पहुंच गई।
ब्रिटिश शक्ति ने युद्ध समाप्ति के बाद राजनैतिक गतिरोध को खत्म करने के लिए अनेक सुझाव और आश्वासन दिये। सरकार ने ‘वेवल योजना’, ‘क्रिप्स योजना’ और ‘कैबिनेट मिशन’ भेजे, लेकिन कोई हल नहीं निकला।
ब्रिटिश सत्ता ‘बांटो और राज्य करो’ के नीति पर कार्य कर रही थी, जोकि साम्प्रदायिकता पर आधारित थी। सर्वप्रथम सर सैयद अहमद खान मुस्लमानों के हितों की संरक्षा के लिए अंग्रेजों के सहयोगी बन गए। 1906 में मुस्लिम लीग राजनीतिक दल का गठन हुआ।
उन्होंने कहा कि ‘‘मुस्लमान अल्पसंख्यक हैं, हिंन्दु बहुसंख्यक हैं। दोनों की सांस्कृतियां अलग-अलग हैं। इस तरह ये दो अलग राष्टÑ हैं। इसलिए दो राष्टÑ एक तलवार की म्यान में नहीं आ सकते।’’ इस तरह अलग पाकिस्तान की मांग रखी गई, जबकि भारतीय नेता भारत की एकता व अखंडता चाहते थे। मगर फैसला यही हुआ कि भारत-पाकिस्तान दो अलग-अलग राष्टÑ बन जाएं।
इस वक्त इंग्लैण्ड में सरकार बदल गई। लार्ड एटली के नेतृत्व में लेबर पार्टी के अधीन सरकार का गठन हुआ, जोकि भारत के प्रति उदार नीति रखते थे। वायसराय माउण्ट बेटन को भारत का वायसराय बनाकर भेजा गया। 1948 तक भारत को स्वाधीनता का वायदा किया गया। अनेक भारतीय नेताओं, मुस्लिम लीग नेताओं से विचार-विमर्श हुआ। अंत में माउंट बेटन योजना तैयार हुई।
ब्रिटिश संसद में स्वीकृत हुई और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 स्वीकृत किया गया। पंजाब बंगाल का विभाजन हुआ। भारत और पाकिस्तान दो अलग स्वतंत्र राज्य बने। अंत में 15 अगस्त 1947 हमारा देश आजाद हो गया। हमारे अनेक नौजवानों की कुर्बानियों का परिणाम है। हमारी जीवन रेखा है, जिसमें अनेक भारत की वीरांगनाओं ने आजादी के लिए संघर्ष किया, कुर्बानी दी, जिन्हें हम भूल नहीं सकते, जैसे रखी बाई, दुर्गा भाभी, रेणुका सेन, कमला चटर्जी, लीला कमाल, इंदुमति सिंह कल्याणी देवी। इसके अलावा आजाद हिंद का नारा भी हम भूल नहीं सकते।
जय-जय-जय जी हिंद,
तोपों-बंदूक हथियारों से आजाद करो जी हिंद,
हिंद हमारी जान, भारत बने हम हिंद के,
हिंद के लिए कुर्बान।।
डॉ. हरीश चंद झण्डई
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