उत्तर प्रदेश में गोरखपुर मेडिकल कालेज में आक्सीजन की सप्लाई बंद होने से 50 से अधिक बच्चों की मौत का मामला दिल को झकझोर देने वाला है। चाहे सरकार आॅक्सीजन की सप्लाई न होने को नकार रही है लेकिन घटना को सिरे से नकार देना मामले पर मिट्टी डालने जैसा है। यह सच है कि बच्चों की मौतें हुई हैं। सरकार को इस संबंधी निष्पक्ष जांच करवानी चाहिए।
यदि मामला कुछ और है तो भी उसका स्पष्टीकरण तुरंत देना चाहिए। मीडिया में इस बात की चर्चा है कि आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी ने 63 लाख रुपए बकाया खड़ा होने के कारण डीएम को सप्लाई बंद करने की चेतावनी दी थी। स्वास्थ्य विभाग में लापरवाही के लिए अधिकारी व विभाग जिम्मेदार है। इस संबंधी खुलासा होने पर दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
दरअसल सरकारी व्यवस्था में लापरवाही शब्द ऐसा जुड़ गया है जो हटने का नाम ही नहीं ले रहा। केंद्र व राज्य सरकारें स्वास्थ्य सेवाओं के लिए हजारों करोड़ों का बजट आरक्षित रखती हैं। सरकारों के पास इतनी क्षमता भी मौजूद है कि वह कर्ज माफी जैसे कदम उठाने के प्रयास कर रही हैं। स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में पैसे की कमी के कारण मासूमों की मौत होना प्रबंधों पर सवाल उठाता है।
यदि सरकारें मुफ्त इलाज सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवा सकती है, तब आक्सीजन के सिलैंडर मंगवाने में केवल औपाचारिकता ही पूरी करनी होती है। यह कहना कोई गलत नहीं होगा कि यहां गड़बड़ी केवल संदेश पहुंचाने में ढील का परिणाम है। जिस व्यक्ति के पास निजी अस्पताल जाने के लिए पैसे होते हैं वह सरकारी अस्पताल नहीं जाता। सबके दिल में बड़ा डर लापरवाही का होता है।
इसी कारण सरकारी अस्पताल गरीबों के अस्पताल बनते जा रहे हैं। उधर मुख्यमंत्री या स्वास्थ्य मंत्री अस्पतालों के दौरे करने तक सीमित रह गए हैं। सत्तापक्ष के नेता व्यवस्था में सुधार तो लाना चाहते हैं, लेकिन अधिकारी अपनी पुरानी आदत छोड़ने या बदलने के लिए तैयार नहीं। मंत्री के दौरे का असर कुछ दिनों तक ही दिखता है। बाद में फिर पहले वाले हालात बन जाते हैं।
दरअसल सरकारी व्यवस्था में काम करने की रिवायत पैदा करने की जरूरत है। कुछ अधिकारी जिम्मेदारी से काम करते हैं जिनका हौसला बढ़ाने की जरूरत है। लापरवाही करने वालों के खिलाफ समय पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। व्यवस्था में सुधार ही समस्या का समाधान है। स्वास्थ्य सेवाएं सबसे अहम क्षेत्र है जिसमें कार्य के प्रति संवेदनशील एवं गंभीर बने रहने की सदैव आवश्यकता रहती है। अस्पतालों के प्रशासनिक अधिकारी लोगों के स्वास्थ्य को संवेदनशीलता से लें, ताकि दोबारा ऐसी घटनाएं घटित न हों।
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