नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में बाबरी विवाद पर 7 साल बाद शुक्रवार से सुनवाई शुरू हो गई। इस दौरान कोर्ट ने इस मामले से जुड़े दस्तावेज़ और गवाहियों के अनुवाद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 12 हफ्तों का वक्त दिया गया है। वहीं मामले के एक पक्षकार रामलला विराजमान की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें चार हफ्तों का वक्त दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर तय करते हुए साफ किया कि किसी भी पार्टी को अब आगे और मोहलत नहीं दी जाएगी और ना ही केस स्थगित की जाएगी।
बता दें कि इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में दर्ज हैं, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेज़ों को अनुवाद कराने की मांग की थी।
बता दें कि जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की स्पेशल बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 में आए फैसले के बाद, पिछले करीब 7 साल से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।
शिया वक्फ बोर्ड ने पेशकश- विवादित जगह बने मंदिर
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सभी पिटीशनर्स से पहले यह स्पष्ट करने को कहा कि कौन किसकी तरफ से पक्षकार है। इसके बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस केस से जुड़े कुछ पक्षकारों का निधन हो गया है, इसलिए उन्हें बदलने की जरूरत है।
अपनी अर्जी में शिया वक्फ बोर्ड ने माना है कि मीर बाक़ी ने राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था। पहली बार किसी मुस्लिम संगठन ने आधिकारिक तौर पर माना कि विवादित स्थल पर राम मंदिर था। गौरतलब है कि मंगलवार को शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। शिया बोर्ड का सुझाव है कि विवादित जगह पर राम मंदिर बनाया जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी की ओर से मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दायर किया है। इसमें विवादित जगह पर राम मंदिर और इससे कुछ दूरी पर मस्जिद बनाने की पेशकश की गई है।
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