Global Warming Ke Khatre: यूरोप के दक्षिणी भाग में इन दिनों पारा 40 डिग्री से ऊपर दर्ज हो रहा है। इटली, रोमानिया जैसे देशों में आबादी को भंयकर गर्मी की मार पड़ रही है। पिछले वर्ष यूरोप में गर्मी से करीब एक लाख 40 हजार लोग प्रभावित हुए थे। परिस्थितियां आने वाले वक्त में और भी ज्यादा बुरी होंगी क्योंकि अमेरिका अब पर्यावरण नियंत्रण संधि से पीछे हट गया है। जबकि ग्लोबल वार्मिंग भविष्य के लिए गंभीर मुद्दा बन रही है। ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। इसके विपरीत वनों का कटाव एवं कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं। ऐसा आकलन किया गया है कि अगले 50 या 100 वर्षों में धरती का तापमान इतना बढ़ जायेगा कि जीवन के लिये इस धरती पर कई सारी मुश्किलें खड़ी हो जाएँगी।
धरती पर तापमान के बढ़ने का जो सबसे मुख्य और जाना हुआ कारण है, वो है वायुमंडल में बढ़ती कॉर्बनडाई आक्साइड की मात्रा का स्तर। धरती पर इस विनाशक गैस के बढ़ने की मुख्य वजह जीवाश्म ईंधनों जैसे-कोयला और तेल का अत्यधिक इस्तेमाल और जंगलों की कटाई है। धरती पर घटती पेड़ों की संख्या की वजह से कॉर्बनडाई आक्साइड का स्तर बढ़ता है, इस हानिकारक गैसों को इस्तेमाल करने के लिये पेड़-पौधें ही मुख्य श्रोत होते तथा इंसानों द्वारा इसे कई रुपों (साँस लेने की क्रिया द्वारा आदि) में छोड़ा जाता है। बढ़ते तापमान की वजह से समुद्र जल स्तर बढ़ना, बाढ़, तूफान, खाद्य पदार्थों की कमी, तमाम तरह की बीमारियां आदि का खतरा बढ़ जाता है।
1895 के बाद से साल 2012 को सबसे गर्म साल के रुप में दर्ज किया गया है और साल 2003 के साथ 2013 को 1880 के बाद से सबसे गर्म साल के रुप में दर्ज किया गया। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बहुत सारे जलवायु परिवर्तन हुए है जैसे गर्मी के मौसम में बढ़ौतरी, ठंडी के मौसम में कमी,तापमान में वृद्धि, वायु-चक्रण के रुप में बदलाव, जेट स्ट्रीम, बिन मौसम बरसात, बर्फ की चोटियों का पिघलना, ओजोन परत में क्षरण, भयंकर तूफान, चक्रवात, बाढ़, सूखा आदि। जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडेगा। गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू और यलो फीवर (एक प्रकार की बीमारी है जिसका नाम ही यलो फीवर है) जैसे संक्रामक रोग (एक से दूसरे को होने वाला रोग) बढ़ेंगे।
वह समय भी जल्दी ही आ सकता है जब हममें से अधिकाशं को पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए ताजा भोजन और श्वास (नाक से ली जाने वाली सांस की प्रोसेस) लेने के लिए शुध्द हवा भी नसीब नहीं हो। ग्लोबल वार्मिंग का पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियां धीरे-धीरे उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान (रवाना होना) करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देंगे। ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए अब प्रयास तेज करने होंगे। वनों में वृद्धि करनी होगी जोकि प्रतिवर्ष पौधारोपण से ही संभव है। प्रदूषण फैलाने वाली ईकाइयां बंद करनी होंगी। जैव र्इंधन का विकल्प विकसित करना होगा, जो जहरीली गैसे नहीं फैलाए। अन्यथा सागरों, पर्वतों, वनों, जीव-जंतुओं व मनुष्य सबका जीवन खतरे में पड़ चुका है।
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