पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को सुलगाता रहा है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। पाक की आतंकी पाठशालाओं में आतंकियों को तैयार कर भारत में घुसपैठ कराई जाती है। कश्मीर में मरे कई आतंकियों के घर-पतों की जानकारी में यह बात साबित हो चुकी है। पाकिस्तान में चल रही इन संदिग्ध और घिनौनी हरकतों से पूरी दुनिया वाकिफ हो चुकी है।
यहां तक कि खुद अमेरिका पाकिस्तान को चेतावनी दे चुका है कि वह आतंकी गतिविधियों से पल्ला झाड़ ले वरना उसकी फंडिंग पर शिकंजा कसा जाएगा। इसके बाद यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम परस्त नेता अपने राज्य की मुस्लिम आबादी को भड़काने या शह देने का काम करेंगे। पिछले दिनों में जम्मू-कश्मीर के दो नेताओं मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जिस तरह के बयान दिए हैं, इससे इन कथित नेताओं की ओछी मानसिकता के सबूत मिल जाते हैं।
महबूबा मुफ्ती ने अपने बयान में कहा था कि यदि कश्मीर से धारा 370 और विशेषाधिकार को हटाने की कार्यवाही की गई तो जम्मू-कश्मीर में तिरंगा थामने वाला कोई नहीं बचेगा। यानी कि इशारा साफ था कि आजादी के 70 साल बाद भी कश्मीरियों की रग में भारत के प्रति अपनेपन का भाव पैदा नहीं हो पाया है। कश्मीरियों में या तो कश्मीरियत रची-बसी है या फिर भारत के खिलाफ भावनाएं रच-बस चुकी है। यदि उनके हितों पर कुठाराघात किया गया तो यह बात ख्ुालकर सामने आ जाएगी। वैसे भी यह बात किसी से छिपी नहीं है। कई बार पाकिस्तान क्रिकेट टीम के मैच जीतने पर जश्न मनाने और पटाखे फोड़ने के दृश्य कश्मीर क्या, भारत के दूसरे समुदाय विशेष बाहुल्य क्षेत्रों में देखे जा चुके हैं।
दूसरा बयान जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का है। साहब फरमाते हैं कि भारत में हो रही आतंकी गतिविधियों के पीछे पाकिस्तान का हाथ नहीं है। हर घटना के लिए सारा दोष सीधे पाकिस्तान पर डाल दिया जाता है, जबकि घाटी में हिंसा और अस्थिरता पाकिस्तान ने पैदा नहीं की है। 2008, 2010 और 2016 में हुए हिंसक और उग्र आंदोलनों के पीछे पाकिस्तान नहीं था। अब्दुल्ला से पूछा जाना चाहिए कि पाकिस्तान का नहीं तो कश्मीर में आतंकी गतिविधियों के पीछे किसका हाथ है?
ऐसे बयान उस समय आ रहे हैं, जब भारत ने जम्मू-कश्मीर में देशद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई को आर-पार लड़ने का मन बना लिया है। अलगाववादियों पर शिकंजा कसा जा रहा है। ऐसे समय में बयान देने वाले नेताओं को किस नजर से देखा जाना चाहिए। क्या इन नेताओं को यह मालूम नहीं है कि पत्थरबाजी की हरकतों ने देश की सेना को किस तरह निशाने पर ले रखा है? क्या इन्हें नहीं मालूम कि आतंकियों की मौत पर कश्मीर के संप्रदाय विशेष के युवा शोक मनाते हैं और आक्रोश जताते हैं? क्या इन्हें नहीं मालूम कि आतंकियों की पैदाइश पाक में है और उन्हें सीमा पार करवाकर कश्मीर में अशांति पैदा करने के लिए जिहादी बनाकर भेजा जाता है?
यदि मुख्यमंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री या नेता कश्मीर में रहकर कोई दूसरा राग अलापने का प्रपंच रच रहे हैं तो निश्चित तौर पर इनमें और अलगाववाद समर्थक नेताओं में कोई फर्क नहीं है। यह माना जा सकता है कि पत्थरबाजी के पीछे कथित तौर पर नेता खड़े हैं और इनसे राष्टÑभक्ति की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती।
आजादी के 70 साल बाद भी कश्मीरियों की रग में भारत के प्रति अपनेपन का भाव पैदा नहीं हो पाया है। कश्मीरियों में या तो कश्मीरियत रची-बसी है या फिर भारत के खिलाफ भावनाएं रच-बस चुकी है।
-गणेश शंकर भगवती
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