पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भ्रष्टाचार के मामले में सजा होने के कारण इस्तीफा देना पड़ गया है। भले ही नवाज शरीफ ने पनामा मामले में गद्दी छोड़ी है परतुं वहां परिस्थितियां ही ऐसी हो चुकी हैं कि शरीफ के लिए अपना कार्यकाल पूरा करना ही असंभव नजर आ रहा था।
पाकिस्तानी फौज एवं कट्टरपंथी लोग नवाज शरीफ के विरूद्ध एक तरह से डटे हुए हैं। उस पर पनामा पेपर लीक के मामले ने नवाज शरीफ की मुश्किलें बढ़ा दी। यह दूसरी दफा है जब शरीफ को भ्रष्टाचार के कारण सत्ता से हटाया गया है।
इससे पहले जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर शरीफ का तख्ता पलट कर दिया था, यहां तक कि शरीफ को जेल में रखा, और शरीफ के द्वारा स्वयं देश छोड़ देने का निर्णय कर लेने के बाद उसे छोड़ा गया। और लम्बा वक्त शरीफ ने देश के बाहर बिताया।
हालांकि यहां मुशर्रफ की नीयत सरकार पर कब्जे की थी जिसे उन्होंने नवाज को बेदखल कर पूरा भी कर लिया था। लेकिन यह मानवीय गलतियां ही कहीं जाएंगी कि व्यक्ति सत्ता हासिल कर सबकुछ भूल जाता है। पाकिस्तानी अवाम ने परवेज मुशर्रफ के शासन से तंग आकर स्वदेश लौटे नवाज शरीफ को दुबारा चुना।
चूंकि पाकिस्तानी अवाम का विश्वास था कि नवाज ही है जो पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकते हैं। लेकिन यहां नवाज शरीफ कई नीतिगत भूलों में उलझे रहे, वह भारत से अच्छे सम्बंध बनाना चाह रहे थे, लेकिन घरेलू राजनीति में वह समर्थन हासिल नहीं कर पाये।
ठीक ऐसे ही पाकिस्तानी युवाओं को कट्टरता एवं आतंक की गलियों से वापिस ला पाने में भी वह असफल रहे। जब-जब उन्हें अपनी सत्ता खतरे में पड़ी नजर आई, नवाज ने कश्मीर पर बोलना शुरु कर दिया, आतंक की राह पर जाने वाले लोगों को आजादी के परवाने कहना शुरु कर दिया।
अपने परिवारिक व्यवसायों को फैलाने की खातिर उन्होंने अपने रिश्तेदारों को भ्रष्टाचार की खुली छूट दे दी। नतीजा नवाज जनता की नजरों में गिर गए, घरेलू व अंतर्राष्टÑीय जगत में नवाज को एक लाचार शासनाध्यक्ष के रूप में देखा जाने लगा।
क्योंकि उन्होंने भारत के साथ दोस्ती के अलावा कश्मीर की आजादी का समर्थन जैसी दिशाहीन नीति अपनाई। खैर अब चिंता की बात यह है कि शरीफ के सत्ता से बेदखल हो जाने के बाद पाकिस्तानी युवाओं का भविष्य क्या है? पाकिस्तानी लोकतंत्र घुटनों के बल आन पड़ा है।
कोर्ट का निर्णय मानो फौज व कट्टरपंथियों को सत्ता हड़पने का वरदान है। नवाज शरीफ की पार्टी को सरकार के बचे सालों के लिए देश की बागडोर किसी मजबूत नेता के हाथों में देनी होगी जो यहां नवाज शरीफ की गलतियां का सुधार कर सके साथ ही संकट में घिरे पाकिस्तानी लोकतंत्र को स्थायी बनाए रख सके।
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