वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पानी एक महत्वपूर्ण संसाधन हो गया है और यह संघर्ष का कारण बन सकता है। चीन ने जलसंसाधनों को भी आक्रामक विस्तारवाद का न केवल हिस्सा बना दिया है, अपितु जल संसाधनों को भी हथियार के रुप में प्रयोग करने की तैयारी की है। इस तरह अब ‘जल संसाधन’ का ‘जल हथियार’ के रुप में प्रयोग करने की चीनी मंशा की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं।
इस समय चीन तिब्बत में विशाल जल संसाधन पर कब्जा किये हुए है और भारत में बहने वाली नदियों का स्रोत भी वही जल संसाधन हैं। भारत के उत्तर पूर्व में बहने वाली ब्रह्मपुत्र जलशक्ति का एक बड़ा स्रोत है और पनबिजली पैदा करने के लिए तथा अपने शुष्क उत्तरी क्षेत्र की तरफ बहाव मोड़ने के लिए चीन की इस पर नजर है। इस हालात ने भारत में चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि भारत एक निम्न नदी तटीय देश है। इसके अलावा, पर्यावरण क्षरण तथा पानी की घटती मात्रा भारतीय नीति निमार्ताओं के समक्ष चुनौती है।
पिछले एक माह से जिस तरह भारत-चीन के बीच डोकलाम मामले को लेकर तनाव बना हुआ है, उसके बीच भारतीय देहरादून वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि चीन के पास पानी की इतनी शक्ति है कि अगर भारत ने उस पर नजर नहीं रखी, तो बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है।
देहरादून वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक संतोष राय के अनुसार अगर चीन घाघरा, गंडक और ब्रह्यपुत्र जैसी नदियों का पानी रोककर अचानक छोड़ता है, तो भारत के लिए हालत बेहद खतरनाक हो जाएंगे। सीमा पर जिस तरह से विवाद चल रहा है, उसके बाद हमारी सरकार और हमें इस मामले को लेकर चौकन्ना रहने की आवश्यकता है।
भारत और चीन दोनों की बढ़ती जनसंख्या के लिए संसाधनों एवं बुनियादी वस्तुओं की बढ़ती माँग से संभावना व्यक्त की जाती है कि पानी की माँग भी बढ़ेगी। चीन का किसी भी जल समझौते में प्रवेश करने से लगातार इंकार ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध को लेकर अहम् टकराहट को बल दिया है। दुनिया के कुछ शुष्क क्षेत्रों के साथ एक आर्थिक शक्तिगृह के रुप में चीन भी एक प्यासा देश है।
1.3 अरब जनसंख्या के साथ चीन दुनिया का सबसे आबादी वाला देश है। चीन में अप्रत्याशित रुप प्रदूषित नदियों की संख्या में वृद्धि हो रही है, ऐसे में चीन के लिए पानी बेहद महत्वपूर्ण संसाधन है। चीन विश्व का सबसे ताबड़तोड़ बाँध का निर्माता है और विश्व में सबसे ज्यादा बाँध चीन में ही हैं। चीन में कमोवेश 50 हजार से ज्यादा बड़े बाँध हैं। चीन अंतर्राष्ट्रीय नदियों पर बाँध निर्माण करने का एकपक्षीय कदम उठा रहा है,
जो भारत के लिए चिंता का विषय है। चीन पहले ही ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों पर 10 बाँध बना चुका है तथा 3 बांध निमार्णाधीन हैं। इसी क्षेत्र में, चीन 7 और बाँध बनाने पर विचार कर रहा है, तथा 8 और बांध प्रस्तावित हैं। इसमें ‘झंग्मु’ नामक 510 मेगावाट वाली विद्युत परियोजना वाले बाँध का निर्माण भारत और चीन के बीच और टकराहट को जन्म दे सकता है।
ऐसे में भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह चीन को इस बात के लिए राजी करे कि वह ब्रह्मपुत्र पर प्रस्तावित बांध निर्माण को आगे नहीं बढ़ाए।ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध निर्माण के मुद्दे पर सौदेबाजी की तलाश में चीन अक्साई चीन तथा अरुणाचल के मुद्दे पर रियायत देने के लिए भारत को मजबूर कर सकता है।वस्तुत: चीन यथार्थ राजनीति पर आगे बढ़ रहा है और इस कारण वह भारत के साथ किसी भी तरह के बराबरी वाले समाधान को लेकर रुचि नहीं दिखा रहा है,
क्योंकि तिब्बत में दस बड़े जल विभाजक पर चीन का कब्जा है और इस क्षेत्र में जल संसाधनों पर इसका नियंत्रण है। इसलिए,भारत को न सिर्फ मुखर होना होगा,बांग्लादेश की चिंता को लेकर भी चीन को उसी तरह ज्यादा पारदर्शी तथा तार्किक तरीके से प्रभावित करना होगा।
अंतत: सवाल उठता है कि भारत आखिर चीन द्वारा पैदा की हुई इस हालत से कैसे निपटेगा? भारत को इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि तिब्बत से निकलने वाले जल संसाधनों पर चीन का नियंत्रण है। ऐसे में भारत को तिब्बत को लेकर अपनी नीति पर फिर से विचार करना होगा, उसे नया आकार देना होगा। चीन की नीतियों के सवाल पर भारत को चीन के अन्य जल संपदा संबंधित पड़ोसी देशों को भी शामिल करना होगा।
इसके साथ ही पर्यावरण की निरंतरता के संबंध में एक वैश्विक जागरुकता लानी होगी एवं भारत और बांग्लादेश दोनों देशों को पानी के वास्तविक उपयोग के लिए आवाज उठानी पड़ेगी। भारत को इस मामले में पानी जैसे आम संसाधनों के इस्तेमाल को लेकर भी वैश्विक स्तर पर जागरूकता लानी होगी तथा इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदायों के बीच दबाव बनाना होगा कि तिब्बत का जल संसाधन सिर्फ चीन के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व समुदाय के लिए है।
चीन बिना किसी अन्य देश के हस्तक्षेप के जल संसाधनों के एक पक्षीय इस्तेमाल के अधिकार को सुरक्षित रखता है, इसीलिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि चीन पर बहुपक्षीय वार्ता के लिए वैैैश्विक दबाव डाला जाए। बहुपक्षीय समायोजन ही चीन पर समझौते को स्वीकार करने का दबाव बना सकता है, जिससे इनमें शामिल सभी देशों को लाभ होगा तथा इससे पर्यावरण को भी नुकसान होने से बचाया जा सकेगा।
साथ ही चीन भारत से समझौतों के अनुसार अपने बांधों की स्थिति, उसमें जल संग्रहण की रियल टाइम सूचनाएँ भी समुचित रुप में साझा नहीं कर रहा है। इसके लिए आवश्यक है कि हम लोग अपने उपग्रहों के द्वारा चीन के बांधों एवं उसके जल संग्रहण की सूक्ष्म सूचनाएँ रखें। इससे हम चीन के किसी भी घृणित जल हथियार के प्रयोग के बारे में पूर्व बचाव की उत्कृष्ट रणनीति एवं बचाव कर सकेंगे।
प्राकृतिक भूस्खलन से भी कई बार जलभराव हो जाता है, लेकिन इसके लिए भी चीन कोई सूचना नहीं देता है। उदाहरण के लिए चीन ने 2012 में इसी प्रकार की एक घटना से भारत का पासी घाट डूब गया था और हजारों लोग मर गए थे। इसलिए भारत की तरफ से मजबूत पूर्व तैयारी और उपग्रहों से पूर्व सूचना तंत्र अपरिहार्य हो गया है।
ऐसे में बहुपक्षीय नीतियों को बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय जल संसाधन के गैर-नौवहन उपयोग कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का एक मापदंड की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए अनुच्छेद -11 बताता है कि दोनों देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय जल संसाधनों के इस्तेमाल के संदर्भ में सूचनाओं की साझेदारी आवश्यक है, जबकि अनुच्छेद 21 और 23 प्रदूषण की रोकथाम और समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा की व्याख्या करते हैं।
इस तरह यह भारत और चीन दोनों के लिए अहम है कि दोनों देश जलीय आँकड़ों को साझा करने के लिए संस्थागत तथा बहुपक्षीय स्तर पर एक अर्थपूर्ण बातचीत शुरू करें, ताकि इससे जल संसाधनों का स्थायी तथा परस्पर इस्तेमाल सुनिश्चित हो सके एवं टकराहट की आशंका न्यूनतम हो सके।
‘-राहुल लाल
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