Karnataka की कांगे्रस सरकार ने राज्य के लिए अलग झंडे की मांग करके एक नई राजनीतिक चाल चली है। वास्तव में यह पूरा कदम अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति पर उठाया हुआ दिखाई दे रहा है। कांगे्रस को यह बात अच्छी तरह से समझना चाहिए कि राज्य हित से देश हित बड़ा होता है और देश में पहले से ही राष्ट्रीय ध्वज के रुप में तिरंगा बहुत ही आदर का पात्र है।
जब पूरा देश राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर एक भाव का प्रदर्शन करता है तो कर्नाटक की सरकार ने राज्य के अलग ध्वज बनाने का खेल क्यों खेला है, यह समझ से परे है। राष्ट्रीय महत्व को प्रतिपादित करने वाले विषयों को महत्वहीन बनाने का यह खेल निश्चित रुप से राष्ट्रवाद पर करारा प्रहार कहा जा सकता है। हमारा प्रत्येक राज्य राष्ट्रीय महत्व का हिस्सा है।
उसकी संस्कृति भी राष्ट्रीय संस्कृति है। इसी कारण से ही हम विविधता में एकता के भाव को विश्व में संचरित कर रहे हैं। और यही भाव हमारे देश की विशेषता है। देश में स्वतंत्रता संग्राम में जान देने वाले महापुरुषों के मन में भारत के प्रति यही भाव रहा कि भारत एक देश रहे, उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक एक ही संस्कार रहें। उन्होंने पूरे भारत के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी।
उनके मन में कोई भेद नहीं था। भूमि के टुकड़े का कोई लगाव या अलगाव नहीं था। उनके भाव यही प्रदर्शित करते थे कि सारा भारत एक है। लेकिन आज हम क्या देखते हैं भारतीय समाज में वैमनस्य का भाव पैदा करके वर्तमान राजनीतिक दल फूट डालने का काम कर रहे हैं। आज अगर आजादी की लड़ाई में प्राणों का उत्सर्ग करने वाले महापुरुष जीवित होते तो हमारे राजनीतिक दलों की कार्यपद्धति को कोस रहे होते।
कांगे्रस पर सदैव यह आरोप लगते रहे हैं कि उसने इन महापुरुषों के भाव को पूरी तरह से त्याग दिया है। कश्मीर को अलग राज्य का दर्जा देना और अब कर्नाटक में अलग पहचान स्थापित करने की लालसा से अलग झंडा बनाना क्या संदेश दे रहा है। कहीं हम गलत राह पर तो नहीं जा रहे हैं। ऐसे कदम राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा साबित भी हो सकते हैं। वास्तव में यह कदम फूट डालो और राज करो जैसा ही कहा जाएगा।
यहां एक सवाल यह आता है कि कांगे्रस राष्ट्रीय महत्व के विषयों को हमेशा बौना करने का काम क्यों करती है। हम जानते हैं कि जम्मू कश्मीर राज्य में अलग ध्वज है, उसे कांगे्रस ने विशेष राज्य का दर्जा दिया। वर्तमान में कश्मीर की स्थिति क्या है, यह किसी से छिपी नहीं है। क्या कांगे्रस सरकार कर्नाटक को अलग पहचान देकर कश्मीर जैसा बनाने की राजनीति कर रही है। अगर यह सत्य है तो यह कदम देश की संप्रभुता के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ ही माना जाएगा।
समझा जा रहा है कि कर्नाटक में आगामी वर्ष में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने यह राजनीतिक षड्यंत्र किया है। इसके लिए सरकार ने नौ सदस्यों की एक समिति भी बनाई है, जो राज्य के अलग झंडे का स्वरुप तय करेगी, इसके साथ ही उसे कानूनी मान्यता दिलाने की संभावनाओं का अध्ययन करेगी। हालांकि केन्द्र सरकार ने इस मांग को देश विरोधी मानते हुए खारिज कर दिया है।
लेकिन कांगे्रस सरकार ने अलग झंडा बनाने की तैयारियां जारी रखी हैं। इससे कांगे्रस की इस मानसिकता का पता चलता है कि वह कर्नाटक को किस दिशा की ओर ले जाने का रास्ता बना रही है। कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के कारण ही वहां वर्षों से निवास कर रहे हिन्दुओं को प्रताड़ित किया गया, और उन्हें वहां से भागने के लिए मजबूर कर दिया।
वर्तमान में कश्मीर घाटी पाकिस्तानी मानसिकता के दंश से पीड़ित है। कश्मीर के वर्तमान को देखते हुए कर्नाटक में अलग ध्वज बनाने की मंशा क्या एक और कश्मीर बनाने का मार्ग प्रशस्त नहीं कर रही? वास्तव में देखा जाए तो कांगे्रस सरकार का यह कदम कर्नाटक को भारत से काटने जैसा ही कहा जाएगा। क्योंकि जब भारत का एक राष्ट्रीय ध्वज विद्यमान है, तब इस प्रकार की मांग करना पूरी तरह से बेतुकी है।
देश में आज जिस प्रकार से अराष्ट्रीय करण का भाव पैदा हो रहा है या किया जा रहा है, उससे लोगों के मन में देश के प्रति अलगाव की स्थिति भी निर्मित हो रही है। कर्नाटक को अलग पहचान दिलाने वाली कार्यवाही क्या कर्नाटक के लोगों के मन में देश के प्रति अलगाव पैदा नहीं करेगा। जैसा कश्मीर में दिखाई दे रहा है, वहां भारत के प्रति अलगाव की स्थिति बनी हुई है। अलगाववाद के नाम पर कई नेता पाकिस्तान के संकेत पर वहां की जनता को गुमराह कर रहे हैं।
कर्नाटक राज्य के लिए कांगे्रस सरकार द्वारा अलग झंडे की मांग को राजनीतिक चाल के तौर में भी देखा जा रहा है। राजनीतिक लाभ के लिए इस प्रकार की विभाजन पैदा करने वाली मानसिकता देश के लिए घातक है। कर्नाटक राज्य के लिए अलग झंडे की मांग को अगर केन्द्र सरकार नकारती है तो राज्य की कांगे्रस सरकार को प्रचार करने का एक नया तरीका मिल जाएगा।
साथ ही राज्य की संप्रभुता और मुद्दे के भावनात्मक स्वरूप को देखते हुए विपक्षी दल भाजपा और जनता दल एस भी खुलकर इसका विरोध नहीं करेंगे, क्योंकि इससे कन्नड़ एवं कर्नाटक विरोधी होने का ठप्पा लग जाएगा। पिछले दिनों बेंगलूरु मेट्रो में कन्नड़ और अंग्रेजी के साथ हिंदी में लिखे नाम देखकर कुछ लोगों ने राज्य पर हिंदी को थोपने का आरोप लगाया था। हिन्दी के प्रति दुराभाव भी ऐसे ही राजनीतिक कारणों की देन है।
इसके बाद कांग्रेस सरकार के इस कदम को अगला पड़ाव बताया जा रहा है। कश्मीर को छोड़कर देश के किसी भी अन्य राज्य के लिए कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त कोई भी ध्वज नहीं है। सांस्कृतिक और क्षेत्रीय दृष्टिकोण से झंडे फहराए जाते हैं लेकिन ऐसे झंडे किसी राज्य या क्षेत्र का कानूनी रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
वहीं भारतीय राष्ट्र ध्वज नियमों के अनुसार कोई भी ध्वज तिरंगे का अपमान नहीं कर सकता। साथ ही कोई भी दूसरा ध्वज अगर तिरंगे के साथ फहराया जाता है तो उसे तिरंगे से नीचे रखा जाएगा। हालांकि जम्मू और कश्मीर का अलग ध्वज इसलिए है क्योंकि राज्य को धारा-370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है।
-सुरेश हिंदुस्थानी
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