किसी भी देश की पहचान उसकी संस्कृति और सांस्कृतिक, प्राकृतिक व ऐतिहासिक धरोहरों से होती है। ये धरोहर न सिर्फ उसे विशिष्टता प्रदान करती हैं बल्कि दूसरे देशों से उसे अलग भी दिखलाती हैं। हमारे देश में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक यानी चारों दिशाओं में ऐसी सांस्कृतिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक छटाएं बिखरी पड़ी हैं कि विदेशी पर्यटक उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो जाएं। प्राचीन स्मारक, मूर्ति शिल्प, पेंटिंग, शिलालेख, प्राचीन गुफाएं, वास्तुशिल्प, ऐतिहासिक इमारतें, राष्ट्रीय पार्क, प्राचीन मंदिर, अटूते वन, पहाड़, विशालकाय रेगिस्थान, खूबसूरत समुद्रीय तट, शांत द्वीप समूह और भव्य व आलीशान किले। इन धरोहरों में से कुछ धरोहर ऐसी हैं, जिनका दुनिया में कोई मुकाबला नहीं। ये धरोहर सचमुच बेमिसाल हैं। ऐसी ही एक बेमिसाल धरोहर गुजरात का छह सौ साल पुराना शहर अहमदाबाद, अब विश्व धरोहर शहर बन गया है।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को की विश्व विरासत समिति ने हाल ही में पोलेंड के क्रेको शहर में हुई अपनी 41वीं बैठक में अहमदाबाद शहर को अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया है। तुर्की, लेबनान, ट्यूनीशिया, पुर्तगाल, पेरू, कजाकिस्तान, वियतनाम, फिनलैंड, अजरबैजान, जमैका, क्रोएशिया, जिम्बाब्वे, तंजानिया, दक्षिण कोरिया, अंगोलम और क्यूबा समेत करीब 20 देशों ने इस बैठक में सांस्कृतिक शहरों की श्रेणी में अहमदाबाद का समर्थन किया।
इन देशों ने अहमदाबाद को नक्काशीदार लकड़ी की हवेली की वास्तुकला के अलावा सैकड़ों वर्षों से इस्लामिक, हिंदू और जैन समुदायों के एक धर्मनिरपेक्ष सह-अस्तित्व वाला शहर मानते हुए सर्वसम्मति से चुना। इन देशों के प्रतिनिधियों के लिए अहमदाबाद का महत्व इसलिए भी था कि यही वह शहर है जहां से महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत के अहिंसक स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष शुरू हुआ और वह 1947 में अंजाम तक पहुंचा।
अहमदाबाद शहर को विश्व धरोहरों की फेहरिश्त में शामिल करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार दोनों बीते सात साल से लगातार कोशिशें कर रहे थे। गुजरात सरकार ने अहमदाबाद को सांस्कृतिक शहरों की श्रेणी में वर्ल्ड हैरिटेज सिटी का दर्जा प्रदान करने के लिए 31 मार्च, 2011 में इस शहर का विस्तृत विवरण तैयार कर एक प्रस्ताव विश्व विरासत केन्द्र को भेजा था। प्रस्ताव में अहमदाबाद के अभूतपूर्व सार्वभौम मूल्यों का उल्लेख करते हुए पिछली कई सदियों से इस शहर की अनोखी बसाहट, आर्थिक, वाणिज्यिक और सांस्तिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के साथ विभिन्न समुदाय के लोगों के बीच सहअस्तित्व की भावना का खास तौर से उल्लेख था।
यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत में शामिल कर लिए जाने के बाद, वह जगह या स्मारक पूरी दुनिया की धरोहर बन जाता है। इन विश्व स्मारकों का संरक्षण यूनेस्को के इंटरनेशनल वर्ल्ड हेरिटेज प्रोग्राम के तहत किया जाता है। यूनेस्को हर साल दुनिया भर के ऐसे ही बेहतरीन सांस्कृतिक और प्राकृतिक स्मारकों को सूचीबद्घ कर, उन्हें उचित देखभाल प्रदान करती है। इन विश्व धरोहरों का वह प्रचार-प्रसार करती है, जिससे ज्यादा से ज्यादा पर्यटक इन स्मारकों के इतिहास, स्थापत्य कला, वास्तु कला और प्राकृतिक खूबसूरती से वाकिफ होते हैं। विश्व विरासत की सूची में शामिल होने का एक फायदा यह भी होता है कि उससे दुनिया भर के पर्यटक उस तरफ आकर्षित होते हैं।
अब जबकि अहमदाबाद को विश्व धरोहर का दर्जा मिल गया है, तो केन्द्र सरकार और गुजरात सरकार दोनों की ये सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि वह इस शहर के ऐतिहासिक स्मारकों और पर्यटक स्थलों को और भी ज्यादा बेहतर तरीके से सहेजने और संवारने के लिए, एक व्यापक कार्ययोजना बनाए। ताकि ये अनमोल धरोहर हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रहे। विश्व विरासत की सूची में शामिल होने के बाद, निश्चित तौर पर जिम्मेदारियों में भी इजाफा होता है। जिम्मेदारियां न सिर्फ सरकार की बढ़ी हैं, बल्कि हर भारतीय नागरिक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी इन अनमोल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को सहेज कर रखें।
तुर्की, लेबनान, ट्यूनीशिया, पुर्तगाल, पेरू, कजाकिस्तान, वियतनाम, फिनलैंड, अजरबैजान, जमैका, क्रोएशिया, जिम्बाब्वे, तंजानिया, दक्षिण कोरिया, अंगोलम और क्यूबा समेत करीब 20 देशों ने एक बैठक में सांस्कृतिक शहरों की श्रेणी में अहमदाबाद का समर्थन किया।
जाहिद खान
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।