हमारे देश में हर चीज की कमी है, सिवाय एक चीज के। वह चीज है-जनशक्ति। जो हमारे यहां इतनी अधिक संख्या में है कि दूसरे देशों को निर्यात करने के बावजूद इतनी भारी मात्र में बच जाती है कि हमारे सारे अनुमानों को धत्ता बताते हुए सब विकास कार्यक्रमों को असफल बना देती है। एक तो बढ़ती आबादी, दूसरे उसका गांव से नगरों की ओर पलायन नगरीय व्यवस्था का भट्ठा बिठा रहा है।
यह सही है कि हमारे गांव लगभग अविकसित हैं और रोजी-रोटी की समस्या से ग्रस्त गांववासी शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं, किंतु हमारे शहरों में उपलब्ध जनसुविधाएं, बिजली, पानी की उपलब्धता और सड़कें भी एक सीमित आबादी का बोझ ही उठा सकती हैं और वह स्थिति आ चुकी है, जब ये सब सुविधाएं इतने भारी दबाव में हैं और इनकी व्यवस्था टूटने के कगार पर है।
राजधानी दिल्ली में आबादी बढ़ने के साथ-साथ वाहनों की संख्या भी इतनी बढ़ चुकी है कि सड़कों पर चलना लगभग असंभव सा हो गया है। वाहन कछुए की गति से रेंग रहे हैं और जरा-सी गड़बड़ होते ही सड़कों पर भयंकर टैÑफिक जाम लग जाते हैं।
दिल्ली की एक चौथाई आबादी को ही पीने के लिए स्वच्छ पानी मिलता है। शेष या तो अस्वच्छ जल पीते हैं या बाजार से खरीद कर मिनरल वॉटर। कमोबेश हर शहर और उसमें उपलब्ध सुविधाओं का यही हाल है क्योंकि किसी भी नगर का प्रशासन बढ़ती हुई आबादी के अनुरूप सुविधाएं उपलब्ध करवाने की स्थिति में नहीं है।
ऐसे में परिवार नियोजन कार्यक्रम की याद आती है। आज देश की आबादी सवा अरब हो जाने के बावजूद न तो केंद्रीय सरकार और न ही राज्य सरकारें आबादी में वृद्धि रोकने के लिए कोई कदम उठाती दिख रही हैं। शायद इसका कारण है, वोट बैंक खोने का भय, क्योंकि यद्यपि समाज के कुछ शिक्षित वर्ग परिवार नियोजन को स्वेच्छा से अपना रहे हैं, तो भी समाज के कुछ वर्ग ऐसे हैं, जो अधिक बच्चे पैदा करने में ही अपनी शान समझते हैं और परिवार नियोजन का नाम सुनते ही भड़क जाते हैं।
अब जब दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश चीन अपनी जनसंख्या में वृद्धि की दर को नियंत्रित कर चुका है। भारत के लिए भी यह समीचीन होगा कि एक ऐसी जनसंख्या नीति बनाए, जो किसी पर सीधे दबाव न डालते हुए भी अपने उद्देश्य को पा सके।
किसी भी कार्य को करवाने के लिए दंड और लालच ही दो ढंग हैं। दंड का प्रयोग इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि दंड का प्रयोग करने से जनता नाराज हो जाती है और सत्ताधारी दल को कुर्सी खोने का भय सताने लगता है। ऐसे में लालच देकर लक्ष्य को पाया जा सकता है।
सरकार इस विषय पर गहन विचार करके पहले तो यह तय करे कि आज की स्थिति के अनुरूप एक बच्चे की इजाजत दी जानी चाहिए या दो की। इसके पश्चात् यदि तय सीमा तक बच्चे होने के पश्चात् पति-पत्नी में से कोई नसबंदी आपरेशन करवा ले तो उन्हें सरकार द्वारा अच्छी प्रोत्साहन राशि दी जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा दी जाने वाली राशन आदि की सुविधाएं केवल उन लोगों को दी जाएं, जिनके बच्चे तय सीमा से कम हैं।
परिवार नियोजन अपनाने वालों को आयकर में भी छूट दी जा जाती है, किंतु प्रश्न यह है कि अनपढ़ लोगों को परिवार-नियोजन अपनाने हेतु कैसे प्रेरित किया जाए। उन्हें भी विभिन्न प्रकार के लालच देकर इस हेतु प्रेरित किया जा सकता है। सस्ते दर पर अनाज लेने की पात्रता केवल उन लोगों को हो जो परिवार नियोजन कार्यक्रम का पालन करते हैं।
इसी प्रकार नौकरी में केवल उन्हीं लोगों को लिया जाए, जो परिवार नियोजन कार्यक्रम का पालन करने और अपने बच्चे निर्धारित सीमा तक रखने का शपथ पत्र दें। जो पहले ही शादीशुदा और बच्चे वाले हैं और सरकारी नौकरी में हैं, उन्हें तरक्की इन्हीं शर्तों पर दी जानी चाहिए कि वे नसबंदी करवा लें। हम भारतीय मूलत: लालची लोग हैं और इस प्रकार के लालच निश्चय ही परिवार नियोजन कार्यक्रम को सफल बनाकर देश की आबादी को सीमा में रखने में सहायक होंगे।
-नीतू गुप्ता
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