ट्रंप-मोदी की मुलाकात की चर्चा चीन व पाकिस्तान में सबसे ज्यादा हो रही है। विदेशी निवेश के लिए जिस तरह से दोनों देशों ने एक-दूसरे के लिए रास्ते खोले हैं। उससे चीन सबसे ज्यादा विचलित हो रहा है। उसकी विचलाहट इसलिए है कि अगर अमेरिका का निवेश भारतीय बाजार में ज्यादा होने लगेगा, तो उसका भारत का बाजार ठंडा पड़ जाएगा।
चीन के लिए भारतीय बाजारों के रास्ते बंद होने का मतलब उसे कंगाली की तरफ धकेलने जैसा होगा। इसलिए पूरी दुनिया की निगाहें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई पहली बार मुलाकात पर टिकी रहीं। दो पड़ोसी मुल्क इस मुलाकात को अपने लिए किसी खतरे से कम नहीं मान रहे। सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपतिडोनाल्ड ट्रंप से मिले।
मोदी, ट्रंप के विशेष आमतंत्र पर अमेरिका गए थे। दोनों नेताओं के बीच हुई पहली मीटिंग में एक-दूसरे को नापा और तौला। कई देश इस हाई-प्रोफाइल मुलाकात पर नजरें रखे थे। मुलाकात में मोदी और ट्रंप की पर्सनल केमिस्ट्री क्या रहती है, पूरी दुनिया ने देख लिया।
बराक ओबामा जैसे मधुर संबंध आगे भी चलते रहेंगे, इस बात के संकेत मिल गए हैं। मुलाकात से पहले मोदी ने एक एजेंडा तैयार किया था कि वह ट्रंप को भारत की चुनौतियों से वाकिफ कराएं। खासतौर पर चीन और पाकिस्तान के संबंध में। चीन-पाकिस्तान की केमिस्ट्री भारत के खिलाफ बन रही है, इस बात से फिलहाल अमेरिका पहले से ही परिचित है।
ट्रंप इस बात से भी ठीक से वाकिफ हैं कि पाकिस्तान हमेशा से भारत के लिए गुमराह करता आ रहा है। मोदी अपने एजेंडे में सफल होते दिखे हैं। अमेरिकी दौरे पर रवाना होने से पहले मोदी ने सकारात्मक संदेश दिया था कि उनकी मौजूदा यात्रा का लक्ष्य द्विपक्षीय साझेदारी के लिए भविष्य की ओर देखने वाले विजन को विकसित करने के साथ-साथ पहले से मजबूत रिश्तों को और मजबूत बनाना उनकी प्राथमिकता होगी।
यह बात सतप्रतिशत सच है कि भारत और अमेरिका के मजबूत रिश्ते दोनों देशों के साथ-साथ दुनिया के लिए भी अच्छे साबित होते रहेंगे। पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा निश्चित रूप से दोनों राष्ट्रपति के बीच संबंधों को और बल देगी। भारत-अमेरिका के मजबूत संबंधों से ही विश्व को लाभ हो सकता है। भारत को उम्मीद करनी चाहिए कि यह मुलाकात उनके लिए भविष्य के विजन के लिए सार्थक साबित हो।
अमेरिका रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री अमेरिका के साथ प्रगाढ़ और व्यापक साझेदारी रिश्तों को लेकर काफी आशावादी दिखे। दुनिया इस बात से वाकिफ है कि अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी बहुस्तरीय और बहुमुखी है, जिसका न सिर्फ दोनों देशों की सरकारें, बल्कि दोनों ही जगहों के हितधारक भी समर्थन करते हैं। ट्रंप भारत को अपना घनिष्ठ मित्र मानते हैं, इस लिहाज से अमेरिका के नए प्रशासन के साथ वह हमारी साझेदारी के लिए भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण विकसित करने को लेकर बहुत उत्सुक हैं।
पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्रम्प के कैबिनेट सहयोगियों के साथ बैठक भी हुई। साथ ही व्यापार को और गति देने के लिए मोदी अमेरिका के कई बड़े महत्वपूर्ण सीईओ से मिलकर उन्हें भारत में निवेश करने के लिए आमंत्रित भी किया। हर बार की तरह इस बार भी मोदी भारतीय समुदाय के लोगों से मिले और बातचीत की। यात्रा के प्रथम चरण में पीएम मोदी सबसे पहले पुर्तगाल गए, जहां उन्होंने प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा से मुलाकात की। पुर्तगाल से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध बढ़ाने के उनके प्रशासकों से भेंट भी हुई। भारत और पुर्तगाल दोनों देश इस वर्ष राजनयिक संबंधों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। मोदी की तीन देशों की संपन्न हुई यात्रा भविष्य में भारत के लिए हितकर साबित होगी। साथ ही विदेशनीति को और मजबूती मिलेगी।
ट्रंप-मोदी की मुलाकात का मुख्यबिंदु अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, इकोनमिक ग्रोथ को बढ़ावा और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने पर रहा। दरअसल यह ऐसे मामले हैं, जिनसे दोनों देशों के रिश्तों में गर्मी लौटी है। लेकिन जबतक इनमें सहयोगी की तस्वीर साफ नहीं की जाती, तब तक कुछ हाथ नहीं लग जाए।
तब तक समय का इंतजार करना पड़ेगा। मिसाल के लिए, आतंकवाद से लड़ाई में सिर्फ आईएसआईएस के जिक्र से बात नहीं बनेगी। इसमें उन देशों का जिक्र भी करना होगा, जो विदेश नीति के तौर पर इसका इस्तेमाल करते आए हैं। हमारे लिए अच्छी बात यह है कि ट्रंप सरकार की पलिसी फिलहाल पाकिस्तान की तरफ झुकाव का इशारा नहीं करती,
लेकिन फिर भी भारत को सर्तक रहने की जरूरत है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति के तेवर शुरू में चीन और पाकिस्तान को लेकर कड़े थे। तब वह रूस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए दिख रहे थे। उस समय भारत को अमेरिका की विदेश नीति में प्राथमिकता मिलने की गुंजाइश बनी थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या ट्रंप भविष्य में मजबूत भारत को अमेरिका के हित से जोड़कर देखेंगे। उनसे पहले बराक ओबामा और जर्ज डब्ल्यू बुश तो ऐसा ही मानते थे। एक जाने-माने अमेरिकी एक्सपर्ट ने कहा कि अगर कोई चीन को साधने के लिए भारत की अहमियत बताए तो ट्रंप शायद उसे अनसुना कर सकते हैं।
वह कुछ पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति को सलाह दे चुके हैं। अगर ट्रंप भारत को अमेरिकी हितों से जोड़कर देखते हैं तो दोनों देशों के रिश्ते मजबूत होते रहेंगे, भले ही उसकी रफ्तार सुस्त हो। ट्रंप किसी भी सूरत में भारत से अपने रिश्ते खराब नहीं करेंगे।
-रमेश ठाकुर
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