भारत-नेपाल सरहद पर मानव तस्करी की रोकथाम को ले कर काम कर रहे एक स्वयंसेवी संगठन के डायरेक्टर के अनुसार हमारे देश में मानव तस्करी के मामले में सीमांचल इलाका ट्रांजिट पॉइंट बनता जा रहा है। इस संगठन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 सालों में 519 बच्चे गायब हुए, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं।
शादी और नौकरी का लालच दे कर लड़कियों की तस्करी की जाती है। बच्चे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। खासकर लड़कियों को गायब करने के बाद उन्हें कोठों में पहुंचा कर देह धंधे में झोंक दिया जाता है। अपने आसपास खेलते-कूदते, स्कूल आते-जाते और छोटी-मोटी चीज खरीदने के लिए मुहल्ले की दुकानों पर जाने वाले बच्चों को उठाना अपराधियों के लिए काफी आसान होता है।
परिवार और पड़ोस के लोगों की आपराधिक सोच और साजिश का पता लगा पाना किसी के लिए भी आसान नहीं है। पता नहीं, कब किसके अंदर का शैतान जाग उठे और वह किसी मासूम बच्चे को अपनी खतरनाक साजिश का निशाना बना डाले। ऐसे में हर मां-बाप को अपने बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है।
बच्चों की गुमशुदगी के बढ़ते आंकड़ों पर काबू पाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश पर साल 2014 में देशभर में ‘आॅपरेशन स्माइल’ शुरू किया गया। मार्च, 2017 में इस आॅपरेशन के तहत बिहार में 185 बच्चों को उनके घर पहुंचाया गया। सभी बच्चों की उम्र 10-11 साल की थी और उनमें से ज्यादातर रेलवे स्टेशनों पर लावारिस जिंदगी जी रहे थे।
अपहरण कर बच्चों के मां-बाप से फिरौती वसूलने, बच्चों के गुर्दे, लिवर, आंख वगैरह अंगों को बेचने, उन्हें गुलाम की तरह घर और फार्महाउस में काम कराने, शीशा, सीमेंट, कालीन जैसे कारखानों में मजदूर के रूप में इस्तेमाल करने के लिए गायब किया जाता रहा है। साथ ही घर से भटके हुए बच्चों को दलाल बहला-फुसला कर मानव तस्करी करते हैं।
इसी वजह से गायब हुए बच्चों का पता नहीं चल पाता है। गायब किए गए बच्चों को बड़े शहरों के कारखानों में काम पर लगा दिया जाता है। इसके पीछे अपराधियों का बहुत बड़ा नेटवर्क काम करता है।
बच्चों के स्कूल, कॉलेज या कोचिंग, खेलने-कूदने, बाजार वगैरह जाने पर हम समय, हर जगह उनके मां-बाप का नजर रखना मुमकिन नहीं है। अक्सर ऐसा होता है कि किसी बच्चे के पिता दफ्तर में हैं, तो मां बाजार में। इस बीच उनका बच्चा स्कूल से घर आ जाता है और पड़ोस के ही अंकल या आंटी के पास मजे में रहता है। वे ही बच्चे को खाना भी खिला देते हैं।
इस सबके पीछे इंसानी भरोसा ही काम करता रहा है। अब कुछ खुराफाती सोच वाले लोगों की वजह से यह भरोसा ही कठघरे में खड़ा हो चुका है। मासूमों को बचाने के लिए उनके मां-बाप को खासतौर पर सावधान रहने की जरूरत है। वे अपने बच्चों को यह बताते और समझाते रहें कि उन्हें किसके साथ कहीं जाना है या नहीं जाना है।
आंखें मूंद कर किसी पर भी यकीन नहीं करना है चाहे आपका उससे कितना भी करीबी या गहरा रिश्ता हो। बच्चों को बताएं कि स्कूल आने-जाने के दौरान कोई आदमी अपने साथ चलने को कहे, तो न जाएं। बच्चों के दोस्तों और उनके माता-पिता के मोबाइल फोन नंबर और घर के पते अपने पास जरूर रखें। परिवार या पड़ोस के ऐसे लोगों के पास बच्चों को न जाने दें जिनका आपराधिक रिकॉर्ड रहा हो। किसी अनहोनी का डर होने पर तुरंत पुलिस को सूचना दें।
– नरेंद्र देवांगन
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