पंजाब विधान सभा में गत दिनों से जिस तरह घमसान चल रहा है, उससे ऐसा लगता है कि राज्य में राजनीतिक चिंतन नाम का कोई माहौल नहीं है। बजट सेशन के पहले दिन से अंतिम दिन तक शोर-शराबा ही होता रहा।
किसानों का कर्ज, खुदकशियां, उद्योग जैसे मुद्दों पर उचित बहस नहीं हो सकी। स्पीकर द्वारा निलंबित किए गए आम आदमी पार्टी के विधायक जबरन सदन के अंदिर दाखिल होने के प्रयास करते रहे। इस दौरान मार्शलस द्वारा विधायकों को बाहर निकालते समय दो विधायक घायल हो गए और एक विधायक की पगड़ी भी उतर गई।
अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल स्पीकर को गुंडा कह रहे हैं। आप विधायक द्वारा जबरन अंदर दाखिल होने की कोशिश से ही यह परिस्थितियां पैदा हुई हैं। यदि विधायकों को अपने निलंबन के खिलाफ एतराज था तो वह विधान सभा के बाहर धरना लगाकर अपना रोष जता सकते थे। अकाली भाजपा सरकार दौरान भी ऐसा होता आया है।
राजनीति में शोहरत हासिल करने के लिए व मीडिया की सुर्खियां हासिल करने का एक फार्मूला यही बन गया है कि जितना अधिक शोर मचाएंगे, उतनी अधिक चर्चा होगी। जो अकाली दल आज पगड़ी उतरने की दुहाई दे रहा है, उस अकाली दल की सरकार के समय कांग्रेस के कई विधायकों की पगड़ियां उतरी हैं। फर्क बस इतना है कि विरोधियों की पगड़ी नजर आती है और समर्थकों पगड़ी दस्तार बन जाती है।
कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू पर अमर्यादित शब्द बोलने के आरोप लग रहे हैं, किन्तु अकाली दल उस समय चुप रहा, जब उसके अपने एक मंत्री पर गाली देने के आरोप लगे थे। कांग्रेस द्वारा बकायदा इसकी सी.डी. भी तैयार की गई थी। यह राजनीति के गिर रहे स्तर का सबूत है कि गाली निकालने व अन्य किस्म का घटिया व्यवहार एक पार्टी तक सीमित नहीं रह गया है।
अच्छा होता यदि आम आदमी पार्टी के विधायक निलंबित होने पर धरना देते अथवा अपने- अपने विधान सभा क्षेत्र में पहुंच कर लोगों की समस्याएं सुनते। विरोध सिर्फ सदन में नारेबाजी से नहीं होता, बल्कि लोगों तक पहुंच बना कर भी विरोधियों को मात दी जा सकती है। आम आदमी पार्टी ने विधान सभा चुनाव में पहली बार 20 सीटें जीत कर पारम्परिक अकाली-भाजपा गठबन्धन को पछाड़ दिया था।
आप की यह जीत नारेबाजी करके नहीं हुई। कांग्रेस ने विधायकों के साथ हुई हिंसा के विवाद को निपटाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के जोशीले रवैये में होश की कमी खलती रही।
स्पीकर के फैसले का उल्लंघन करके आप विधायक भी उसी सदन की मर्यादा का उल्लंघन कर रहे हैं, जिस सदन से वह सम्मान की उम्मीद रखते हैं। सत्ता पक्ष व विरोधी पार्टियों को संयम से काम लेते हुए संसदीय प्रणाली की मर्यादा को बहाल करना चाहिए, ताकि जिन लोगों ने उन पर विश्वास करके उन्हें विधायक बनाया है, उनका विश्वास बना रहे। मार्शलस की कार्रवाई में सुधार की जरूरत है।
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