
International Women’s Day 2025: हांसी/ हिसार (सच कहूँ/मुकेश)। कई बार हम देखते हैं कि सड़क पर या रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर कोई मंदबुद्धि महिला अस्त-व्यस्त हालत में घूम रही होती है। एक बार तो हमारे मन में उनके लिए दया उत्पन्न हो सकती है मगर अगले ही पल हम अपने कार्य में व्यस्त हो जाते हैं। ऐसी न जाने कितनी महिलाएं जो अपने घरों से दूर भटक कर आ जाती है और दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाती हैं। मगर ऐसी महिलाओं के लिए अंधेरे में रोशनी का कार्य कर रही है हिसार के आजाद नगर स्थित भाग्यश्री महिला अनाथ आश्रम की संचालिका बाला वर्मा, जो कि लगभग 5 वर्षों से अनाथ और मंदबुद्धि महिलाओं को ढूंढ़ ढूंढ़ कर उनका इलाज करवाती हैं और उन्हें अपनों से मिलवाने का पुनीत कार्य कर रही है। बचपन से दुखी लोगों की हालत देख कर उनके लिए कुछ करने के जज्बे ने महिला अनाथ आश्रम खोलने की ताकत दी। Women’s Day 2025
सरकार की तरफ से नहीं मिल रही कोई सुविधा: बाला वर्मा कहती हैं कि यह कार्य जितना पुनीत है उतना ही सरकार की नजरों से दूर भी है। सेवा के इतने साल हो जाने के बावजूद भी उन्हें इस कार्य में सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिलती। हालांकि सामाजिक संस्थाएं और लोग मिलकर उनकी मदद जरूर करते हैं। बाला वर्मा को उनकी सेवा भावना के लिए अनेक कार्यक्रमों में सम्मानित भी किया जा चुका है। उनके साथ इस कार्य में उनकी टीम के सदस्य बलवान सिंह, मंजू बाला, विक्रम लौरा और सुमन गुप्ता पूरा सहयोग करते हैं। International Women’s Day 2025
इतना आसान नहीं रहा सफर | Women’s Day 2025
मंदबुद्धि महिलाओं की हालत देख उनकी सेवा करने का जज्बा अपने मन में पालकर महिला अनाथ आश्रम खोलने वाली बाला वर्मा कहती है कि उनका यह सफर कतई आसान नहीं था। उन्हें अनाथ आश्रम के लिए दी जाने वाली इमारतें समय-समय पर खाली करवा ली जाती है, जिससे काफी दिक्कतें सामने आती हैं। अभी आजाद नगर की इमारत का मासिक शुल्क 30000 रुपए है और खाने पीने आदि का खर्च मिलाकर लगभग 3 लाख रुपए मासिक खर्च पड़ता है। जिसके लिए कई बार ब्याज पर भी रुपये उठाने पड़ते हैं। Happy Women’s Day 2025
170 महिलाओं को अपनों से मिलवा चुकी है, 60 को दे रखा है आश्रय
हिसार के किरतान गांव की लगभग 30 वर्षीय महिला बाला वर्मा शिक्षा में तीन बार एमए कर चुकी है और यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। योग शिक्षक के पद पर सरकारी नौकरी भी प्राप्त कर चुकी थी मगर अनाथ और बेसहारा महिलाओं की सेवा में समय ना दे पाने के कारण उन्होंने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। अब पूरा समय अनाथ महिलाओं की सेवा में लगा रही है। अपने भाई के साथ शुरू किया अनाथ आश्रम करीब 170 महिलाओं को अपने परिवार से मिलवा चुका है। और अभी भी 60 के लगभग मंदबुद्धि महिलाएं आश्रम में रह रही है।
अनाथ और मंदबुद्धि महिलाओं की सेवा का जज्बा बाला वर्मा पर ऐसा छाया हुआ है कि वह लगभग दो वर्ष से अपने घर भी नहीं जा पाई है। बाला वर्मा कहती हैं कि उन्हें 24 घंटे तैयार रहना पड़ता है कि ना जाने कब इन महिलाओं को उसकी जरूरत आन पड़े। इसलिए वह आश्रम में ही रहती हैं।
मंदबुद्धि और बीमार महिलाओं को संभालना काफी मुश्किल | Women’s Day 2025
जब ये महिलाएं उन्हें मिलती हैं तो उनकी मानसिक हालत के साथ-साथ शारीरिक हालत भी सही नहीं होती और उन्हें इलाज आदि के बाद ही कुछ होश आता है। हिसार से लगभग 200 किलोमीटर दूर तक के क्षेत्र से भी महिलाओं को आश्रम लेकर आती हैं और उनकी सम्भाल करती हैं, जिसका खर्च भी उन्हें ही वहन करना पड़ता है।