Project Cheetah at Kuno: कूनो की धरती पर पैर जमाते चीते, आज बदल रहा बाघों और हाथियों का व्यवहार!

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Project Cheetah at Kuno: कूनो की धरती पर पैर जमाते चीते, आज बदल रहा बाघों और हाथियों का व्यवहार!

Project Cheetah at Kuno: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी चीता परियोजना को दो वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस परियोजना के तहत नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में प्रधानमंत्री ने स्वयं छोड़ा था। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते लाकर कूनो में बसाए गए। नई धरती और जलवायु परिवर्तन के कारण इन चीतों को शुरूआत में भारतीय मौसम के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाइयाँ हुईं। Cheetah Yojana

परिणामस्वरूप, छह वयस्क चीतों और यहाँ जन्मे चार शावकों में से तीन की मृत्यु हो गई, जिसके चलते इस परियोजना पर सवाल भी उठे। अब, जब दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 चीतों को 18 फरवरी को दो साल पूरे हो गए हैं, इस अवधि में मृत्यु दर में कमी ने परियोजना के प्रारंभिक लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। इन चीतों की जीवित रहने की दर नामीबिया से लाए गए चीतों की तुलना में बेहतर रही है। दक्षिण अफ्रीका से आए 12 चीतों में से 33.3 प्रतिशत की मृत्यु हुई, जबकि नामीबिया से लाए गए चीतों में 37.5 प्रतिशत की मृत्यु दर्ज की गई।

तीन मादा चीतों ने अब तक 12 शावकों को जन्म दिया

अफ्रीका से लाई गई तीन मादा चीतों ने अब तक 12 शावकों को जन्म दिया है, जिनमें से 6 पूरी तरह स्वस्थ हैं। ये चीते अब भारतीय परिवेश में न केवल ढल गए हैं, बल्कि कूनो में अपनी आबादी भी बढ़ा रहे हैं। नए आवास स्थलों में 50 प्रतिशत चीतों की मृत्यु को सामान्य माना जाता है। वर्तमान में कूनो में 12 चीते और 14 शावक जंगल में स्वतंत्र रूप से विचरण कर रहे हैं। Cheetah Yojana

एक समय था जब चीतों की तेज रफ्तार भारतीय जंगलों की शान हुआ करती थी। लेकिन 1947 तक भारत में चीतों की आबादी पूरी तरह विलुप्त हो गई। 1948 में छत्तीसगढ़ के सरगुजा में अंतिम चीता देखा गया था, जिसे मार दिया गया। चीता अपनी अद्भुत गति के लिए जाना जाता है और अपनी लचीली देहयष्टि के कारण जंगली प्राणियों में सबसे तेज दौड़ने वाला धावक माना जाता है। इसकी विशिष्ट शारीरिक संरचना इसे अन्य हिंसक वन्य जीवों से अलग करती थी।

बीती सदी में पूरे विश्व में चीतों की संख्या एक लाख तक थी। अफ्रीका के खुले घास के मैदानों से लेकर भारत सहित कई एशियाई देशों में चीते पाए जाते थे। लेकिन अब पूरे एशियाई जंगलों में इनकी संख्या बेहद कम रह गई है। राजा चीता (एसिनोनिक्स रेक्स) केवल जिम्बाब्वे में पाया जाता है। अफ्रीका के जंगलों में भी चीतों की संख्या गिनती की रह गई है। तंजानिया के सेरेंगती राष्ट्रीय उद्यान और नामीबिया के जंगलों में कुछ ही चीते बचे हैं। Cheetah Yojana

फुर्तीली प्रजाति की संख्या बढ़ाना संभव नहीं

प्रजनन के आधुनिक और वैज्ञानिक उपायों के बावजूद इस फुर्तीली प्रजाति की संख्या बढ़ाना संभव नहीं हो पा रहा है। यह प्रकृति के सामने वैज्ञानिक प्रयासों की असफलता को दर्शाता है। जूलॉजिकल सोसायटी आॅफ लंदन की रिपोर्ट के अनुसार, 1991 तक दुनिया में 91 प्रतिशत चीते विलुप्त हो चुके थे। अब वैश्विक स्तर पर केवल 7100 चीते बचे हैं। एशिया में ईरान में सिर्फ 50 चीते शेष हैं। अफ्रीकी देश केन्या का मासीमारा क्षेत्र चीतों का गढ़ माना जाता था, लेकिन अब वहां भी इनकी संख्या बेहद कम हो गई है। ऐसे में भारत में चीतों की वंशवृद्धि वैश्विक स्तर पर एक सकारात्मक संकेत है।

पिछली सदी के पांचवें दशक तक चीते अमेरिका के चिड़ियाघरों में भी थे। प्राणी विशेषज्ञों के अनेक प्रयासों के बाद 1956 में इन चीतों ने शावकों को जन्म दिया, लेकिन कोई भी शावक जीवित नहीं बच सका। यह चिड़ियाघर में चीतों द्वारा प्रजनन की पहली घटना थी, जो असफल रही। भारत में चीतों की अंतिम पीढ़ी बस्तर-सरगुजा के घने जंगलों में थी, जिन्हें 1947 में देखा गया था। लेकिन सरकार द्वारा संरक्षण के उपाय करने से पहले ही शिकार के शौकीन राजा-महाराजाओं ने इन अंतिम चीतों को मार डाला और भारतीय चीतों की नस्ल पूरी तरह समाप्त हो गई। अब कूनो के बाद मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में गांधीसागर अभयारण्य में चीतों का नया ठिकाना बसाने की तैयारी चल रही है।

भारत के राजा-महाराजाओं को घोड़ों और कुत्तों की तरह चीतों को पालने का भी शौक था। चीता शावकों को पालकर इनसे जंगल में शिकार करवाया जाता था। जब राजा शिकार के लिए जंगल जाते थे, तो प्रशिक्षित चीतों को बैलगाड़ी में बिठाकर साथ ले जाया जाता था। इनकी आंखों पर पट्टी बाँध दी जाती थी ताकि वे छोटे वन्य जीवों पर न झपटें। शिकार जब राजा की नजर में आता था, तो चीते की आंखों की पट्टी खोलकर शिकार की दिशा में इशारा किया जाता था।

बाघों और हाथियों का भी संरक्षण किया जा रहा

भारत में चीतों के अलावा बाघों और हाथियों का भी संरक्षण किया जा रहा है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, 2024 में भारतीय बाघों की संख्या 3682 से 3925 के बीच अनुमानित है। बाघों की संख्या में निरंतर वृद्धि एक सकारात्मक संकेत है। मध्यप्रदेश में सबसे अधिक 785 बाघ हैं, इसके बाद कर्नाटक में 563, उत्तराखंड में 560 और महाराष्ट्र में 444 बाघ हैं। भारत में कुल 54 बाघ संरक्षण अभयारण्य हैं, जिनमें तीन नए अभयारण्य हाल ही में घोषित हुए हैं। Cheetah Yojana

हाथियों की संख्या भी बढ़ रही है और 2024 में इनकी अनुमानित संख्या 28,000 है। 2017 की गणना के अनुसार 27,312 हाथी थे, जिनमें सबसे अधिक आबादी कर्नाटक में है, इसके बाद असम और केरल में। लेकिन मानव बस्तियों के जंगलों से घिरने के कारण बाघों और हाथियों का व्यवहार बदल रहा है। एक अध्ययन के अनुसार, पिछले चार वर्षों में हाथियों ने 2243 और बाघों ने 300 लोगों की जान ली है। यह चिंताजनक है, लेकिन वन्य प्राणियों और मनुष्य के बीच संघर्ष को रोकने के लिए अभयारण्यों की सीमाओं को मजबूत बाड़ या दीवारों से सुरक्षित करने की आवश्यकता है। Cheetah Yojana

प्रमोद भार्गव (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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