संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की रिपोर्ट ‘लर्निंग इंटरप्टेड: ग्लोबल स्नैपशॉट ऑफ क्लाइमेट-रिलेटेड स्कूल डिसरप्शंस इन 2024’ ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर एक महत्वपूर्ण और चौंकाने वाली तस्वीर प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण बच्चों पर होने वाले शारीरिक, मानसिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य संबंधित प्रभावों का गहरा विश्लेषण किया गया है। Climate Change
अब तक जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के पर्यावरणीय और कृषि पर प्रभावों के बारे में कई अध्ययन सामने आए थे, लेकिन बच्चों की शिक्षा पर इसके प्रभाव पर यह पहला गंभीर अध्ययन है, जो पूरी दुनिया के नीति-निर्माताओं, शिक्षाविदों, और अभिभावकों को गंभीर चिंता में डालने के लिए पर्याप्त है। यह रिपोर्ट सरकारों पर भी दबाव डाल रही है कि वे जलवायु परिवर्तन के बच्चों और शिक्षा पर होने वाले घातक प्रभावों को कम करने के लिए तत्काल प्रभावी नीतियाँ बनाएं और उन्हें लागू करें।
रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत में लगभग पांच करोड़ छात्रों की शिक्षा पर लू और अत्यधिक गर्मी का गंभीर असर पड़ा। ओस्लो विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान के पोस्ट-डॉक्टोरल फेलो डॉ. केटलिन एम. प्रेंटिस और उनके सहकर्मियों ने जलवायु परिवर्तन के इस प्रभाव पर विस्तृत अध्ययन किया है, जो ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में विशेष रूप से दक्षिण एशिया के देशों, जैसे भारत, बांग्लादेश, और कंबोडिया में अप्रैल महीने में आने वाली अत्यधिक गर्म हवाओं (हीटवेव) के कारण शिक्षा व्यवस्था पर पड़े नकारात्मक प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। भारत को जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में एक अत्यधिक संवेदनशील देश माना गया है। Climate Change
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024 में दुनिया के 85 देशों में कुल 24.2 करोड़ बच्चों की पढ़ाई मौसम की चरम स्थितियों के कारण प्रभावित हुई। इसका मतलब यह है कि हर सात में से एक बच्चा जलवायु संकट के कारण कभी न कभी स्कूल नहीं जा सका। शोध में यह भी बताया गया कि बढ़ती गर्मी और अधिक गर्म दिनों ने न केवल बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित किया, बल्कि उनके परीक्षा परिणामों को भी खराब किया। रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इस तरह जारी रहता है, तो वर्ष 2050 तक बच्चों के अत्यधिक गर्मी और लू के संपर्क में आने की संभावना आठ गुना बढ़ सकती है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन न केवल बच्चों की शिक्षा, बल्कि उनके समग्र भविष्य को भी गंभीर खतरे में डाल रहा है। अगर इस संकट से निपटने के लिए तत्काल प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो इसके दीर्घकालिक परिणाम न केवल शिक्षा पर बल्कि बच्चों के समग्र विकास पर भी गहरे असर डालेंगे। जलवायु परिवर्तन का बच्चों पर प्रभाव शारीरिक, मानसिक और शैक्षिक दोनों दृष्टिकोणों से घातक हो सकता है। गर्मी से होने वाली बीमारियाँ और मौतों का खतरा बढ़ जाता है। Climate Change
हैजा, मलेरिया, डेंगू, और जीका जैसी बीमारियाँ बच्चों के जीवन के लिए खतरनाक हो सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने से बच्चों के जन्म के समय कम वजन होने की संभावना भी बढ़ जाती है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रहे विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से बच्चों के स्वास्थ्य पर और भी बुरा असर पड़ सकता है। मानसिक स्वास्थ्य भी इस संकट से प्रभावित होता है। बच्चों में अवसाद, चिंता, नींद संबंधी विकार और सीखने में कठिनाइयाँ जैसी समस्याएँ उभर सकती हैं।
बच्चे वयस्कों की तुलना में जलवायु और पर्यावरणीय बदलावों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वे बाढ़, सूखा, तूफान, और गर्मी जैसी चरम मौसम की घटनाओं से निपटने में वयस्कों से कम सक्षम होते हैं। इसके परिणामस्वरूप, बच्चों के लिए यह संकट उनके अस्तित्व, संरक्षण, विकास, और सामाजिक भागीदारी के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है। जलवायु परिवर्तन के अन्य प्रभावों में बच्चों के अनाथ होने, तस्करी, बाल श्रम, शिक्षा और विकास के अवसरों की हानि, परिवार से अलग होना, बेघर होना, और मानसिक आघात शामिल हैं। यह संकट पूरी दुनिया में मौजूद है, लेकिन विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों में इसका प्रभाव अधिक है। Climate Change
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयासों की कमी ने इस संकट को और भी गंभीर बना दिया है। अमीर और शक्तिशाली देशों द्वारा इस मुद्दे को नजरअंदाज करना जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को और बढ़ावा दे रहा है। पिछले साल में ही जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभावों ने पूरी दुनिया को चिंतित कर दिया है। अगर वैश्विक तापमान में और वृद्धि होती है, तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक भयानक संकट बन सकता है। भारत को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए गंभीर कदम उठाने होंगे।
सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों और परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ मजबूत हों, और बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की पहचान की जाए। जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित देशों को बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक मंचों पर अपनी प्रतिबद्धता बढ़ानी होगी। इसके साथ ही, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए व्यापक शोध और अध्ययन की आवश्यकता है। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इसके प्रभाव दीर्घकालिक हो सकते हैं। Climate Change
समग्र रूप से, जलवायु परिवर्तन ने दुनिया के बच्चों के भविष्य को खतरे में डाल दिया है। अगर हमें इस संकट से बचना है, तो हमें जलवायु परिवर्तन को लेकर तत्काल कार्रवाई करनी होगी। यह केवल पर्यावरण का संकट नहीं है, बल्कि यह बच्चों के अस्तित्व, विकास, और शिक्षा का संकट भी है। हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए ठोस नीतियों और वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है। अगर हम अब भी चुप रहे, तो यह हमारे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ी नासमझी और अपराध साबित होगा।
ललित गर्ग (यह लेखक के अपने विचार हैं)