मुजफ्फरनगर (सच कहूँ/रविंद्र सिंह)। केंद्र सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया। इस बजट पर पूरे देश का अन्नदाता(किसान) आशा लगाए बैठा था कि शायद इस बजट में कुछ ऐसा हो जो देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने वाले वर्ग (किसान) को राहत पहुंचा सके, लेकिन उनके हिस्से में तो सिर्फ कर्ज ही आया। केन्द्रीय बजट को लेकर यह बातें भारतीय किसान यूनियन(भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने कही। उन्होंने कहा कि देश की केंद्र सरकार के जरिए जारी किए गए बजट में गांव,गरीब,किसान,आदिवासी के लिए कुछ नहीं है। वह केवल सरकारों के आंकड़ों में ही नजर आते हैं, लेकिन मूल आधारभूत ढांचे से मीलों दूर है।
बढ़ती हुई महंगाई आज ग्रामीण परिवारों पर बोझ बन रही है। जिससे उनके बच्चों की शिक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। दूसरी तरफ सरकार फसलों के भाव न देकर किसान को कर्ज लेने पर मजबूर कर रही है। जब यह कर्ज बढ़ता चला जाएगा, किसान की जमीन कॉर्पोरेट के हवाले हो जाएगी। इस बजट से यह प्रतीत होता है कि एमएसपी गारंटी कानून और सी -2 प्लस 50 फार्मूले की मांग कर रहे देश के किसान को बजट में सिर्फ कर्ज ही मिला है। यह कॉरपोरेट पूंजीपतियों का बजट है। शिक्षा और चिकित्सा भी सिर्फ आंकड़ों में नजर आती है। जमीनी स्तर से इसका कोई लेना-देना नहीं है। सरकार नए लिबास में पुराने बजट में थोड़ा बहुत बदलाव करके पेश करने के लिए लेकर आई थी। यह बजट आशा से निराशा की ओर लेकर गया है। सरकार ने फिर से एक बार किसानों के साथ विश्वासघात किया है।किसान-मजदूर के लिए यह बजट मात्र छलावा है। देश के किसान इस बजट को सिरे से नकारते है।