अंतर्राष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव की कॉन्फ्रेंस में अमेरिका, बेलारूस के वैज्ञानिकों ने किया मंथन
- देश-विदेश के वैज्ञानिकों ने माना
- वैज्ञानिकों का दावा- कुरुक्षेत्र सरस्वती किनारे ही हुई वेदों और पुराणों की रचना
कुरुक्षेत्र (सच कहूँ/देवीलाल बारना)। Sarasvati River: हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष धुमन सिंह ने कहा कि कुरुक्षेत्र की धरा से बहने वाली पवित्र सरस्वती नदी का इतिहास लगभग 2.5 करोड़ से 3 करोड़ वर्ष पुराना है। इस नदी के किनारे ही कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर ऋषि-मुनियों ने वेदों और पुराणों की रचना की। इस प्राचीन इतिहास पर देश-विदेश के सरस्वती पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने तथ्यों के साथ अपनी मोहर लगाई है। इन तमाम तथ्यों को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय सरस्वती शोध केंद्र के तत्वाधान में चल रही अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में यूएसए, बेलारूस व देश के जाने-माने वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने रखा है।
बोर्ड के उपाध्यक्ष धुमन सिंह किरमच ने शुक्रवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सीनेट हाल में अंतर्राष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव पर चल रही 3 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। बोर्ड के उपाध्यक्ष धुमन सिंह ने कहा कि इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव पर सरस्वती नदी के इतिहास, शोध व अन्य पुरातात्विक विषयों पर चिंतन, मंथन करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस को 3 दिवसीय किया है। अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में चिंतन और मंथन के बाद विद्वानों ने तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया है कि सरस्वती सिंधु सभ्यता की बजाय इस सभ्यता को सरस्वती या सारश्वत सभ्यता कहा जाए, सरस्वती नदी भारत के सनातन इतिहास को दर्शाती है। Sarasvati River
सरस्वती नदी का इतिहास 2.5 से 3 करोड़ वर्ष पुराना है
इस सरस्वती नदी का इतिहास 2.5 से 3 करोड़ वर्ष पुराना है। इसलिए इसे वैदिक कालीन सभ्यता माना गया है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय सरस्वती शोध केंद्र के निदेशक एवं कॉन्फ्रेंस के संयोजक डॉ. ए.आर. चौधरी ने कहा कि करोड़ों वर्ष पूर्व हरियाणा की कोख से बहने वाली पवित्र सरस्वती नदी कुरुक्षेत्र से होकर रण आॅफ कच्छ तक पहुंचती है। इस कॉन्फ्रेंस में चिंतन और मंथन के दौरान यह तथ्य सामने आए है कि कुरुक्षेत्र में ही सरस्वती नदी के किनारे ऋषि-मुनी रहते थे और इन विद्वानों ने ही कुरुक्षेत्र में सरस्वती के किनारे वेदों और पुराणों की रचना की है। Sarasvati River
ये वैज्ञानिक जुड़े कॉन्फ्रेंस से
कांफ्रेंस में बेलारूस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रोफेसी एलए, यूएसए से वैज्ञानिक डाट माउथ कोने, यूएसए से रिवर आॅफ महाभारता और ऋग्वेद जैसी पुस्तकों के प्रसिद्घ लेखक सेंट रिचिड नामुरी रवि जैसे वैज्ञानिक आॅनलाईन कांफ्रेंस के साथ जुड़े। इसके अलावा द्रौपदी ट्रस्ट से यमुना नदी को स्वच्छ बनाने की मुहिम को आगे बढ़ाने वाली वैज्ञानिक डॉ. नीरा मिश्रा, रामायण, महाभारत पर शोध करने वाली शोधकर्ता सरोज बाला, इसरो से वैज्ञानिक एके गुप्ता, भारत पुरातत्व विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक संजय मंजूल, प्लाज्मा शोध संस्थान गांधी नगर से प्रोफेसर शुक्ला, वेदों की ज्ञाता सुब्रोता विनोद, गुजरात में स्टेच्यू आॅफ यूनिटी के वास्तुकार डा. तेजस, जीओलॉजी सर्वे आॅफ इंडिया, हरियाणा पुरातत्व विभाग के ज्ञाता इस कांफ्रेंस के साथ जुड़े हुए है।
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