हार्ट अटैक में पहला एक घंटा, कार्डियक अरेस्ट में मरीज के पास होता है मात्र 6 मिनट का समय | Gurugram News
- माता-पिता से भी बच्चों में आती है ऐसी बीमारी
- दिल में छेद, नसों की समस्या के साथ पैदा होते हैं बहुत से बच्चे
गुरुग्राम (सच कहूँ/संजय कुमार मेहरा)। Cardiac Arrest: पहले कर्नाटक और अब गुजरात में मात्र आठ साल की बच्ची की कार्डियक अरेस्ट से हुई मौत से देश में छोटे बच्चों के माता-पिता टेंशन में हैं। इस हादसे ने देशभर में लोगों में दहशत सी पैदा कर दी है। हालांकि छोटे बच्चों में कार्डियक अरेस्ट के मामले आम नहीं हैं। बड़ों की तुलना में बच्चों में ये केस बहुत कम देखने को मिलते हैं। चिकित्सक इसे वंशानुगत भी बता रहे हैं। बच्चों में कार्डियक अरेस्ट बहुत ही दुर्लभ है। हकीकत यह है कि जो व्यक्ति पूरी तरह से फिट होते हैं, उनको भी कार्डियक अरेस्ट हो सकता है। Gurugram News
कार्डियक अरेस्ट हृदय संबंधी होने वाली विभिन्न समस्याओं में कार्डियक अरेस्ट सबसे खतरनाक माना जाता है। सामान्य तौर पर इसे दिल की धड़कन रुकने के तौर पर समझा जाता है। हृदय संबंधी अन्य समस्याओं के तुलना में कार्डियक अरेस्ट सबसे ज्यादा खतरनाक इसलिए माना जाता है, क्योंकि कई बार यह बिना किसी हिस्ट्री या लक्षण के भी हो सकता है। हार्ट अटैक में पहला एक घंटे को गोल्डन आॅवर माना जाता है। वहीं, कार्डियक अरेस्ट में सिर्फ 6 मिनट का समय मरीज के पास होता है।
5 से 19 साल की उम्र में हो सकता है कार्डियक अरेस्ट
कार्डियक अरेस्ट, दिल का धड़कना रुक जाना या बहुत तेज धडकना होता है। यह एक मेडिकल इमरजेंसी है। कार्डियक अरेस्ट एक से 35 साल के लोगों में अचानक मौत का सबसे आम कारण है।
कार्डियक अरेस्ट युवा एथलीटों के साथ-साथ, खेलों में शामिल न होने वाले युवाओं को भी प्रभावित करता है। कार्डियक अरेस्ट व्यायाम के दौरान, आराम करते समय या नींद के दौरान भी हो सकता है। अगर कार्डियक अरेस्ट के बाद तुरंत मेडिकल ट्रीटमेंट न मिले तो मौत हो सकती है। कार्डियक अरेस्ट से बचने के लिए, हेल्दी डाइट, रेगुलर एक्सरसाइज, पर्याप्त नींद और तनाव रहित जीवन जीने की कोशिश होनी चाहिए।
बच्चों को बचाने के लिए तत्काल दें हाई क्वालिटी सीपीआर | Gurugram News
नेशनल लाइब्रेरी आॅफ मेडिसिन में प्रकाशित शोध के अनुसार वयस्कों की तुलना में बच्चों में कार्डियक अरेस्ट के मामले दुर्लभ हैं। जिसमें बच्चे को बचाने के लिए तत्काल हाई क्वालिटी सीपीआर, बेसिक लाइफ सपोर्ट और पीडियाट्रिक हेल्प की जरूरत होती है। हाई क्वालिटी सीपीआर का अर्थ है एक मिनट में 100 से 120 बार छाती को 1 से 2 इंच तक दबाना और फिर मुंह से सांस देना। जिसे माउथ-टू-माउथ ब्रीदिंग कहा जाता है।
पैदाइशी नसें दबी होने पर भी होती है समस्या: डा. अजय
गुरुग्राम के सिगनेचर अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डा. अजय दुआ बताते हैं कि बच्चों में कार्डियक अरेस्ट के केस बहुत ही कम आते हैं। बच्चों में मोटापे से भी इसका अंदेशा होता है। साथ ही बचपन से बच्चों में कोलेस्ट्रोल संबंधी बीमारियां भी होती हैं। पारिवारिक हिस्ट्री भी इसका कारण हो सकती है। मां-बाप से बच्चों में इस तरह की बीमारी आ सकती है। इसे वंशानुगत कहा जाता है।
उन्होंने कहा कि बहुत से बच्चे दिल में छेद के साथ पैदा होते हैं। कई बच्चे जब पैदा होते हैं तो उनकी नसें एक-दूसरी नस से दबी हुई होती हैं। इससे बच्चों का जीवन खतरे में पड़ जाती है। डा. दुआ के मुताबिक मेडिकल नियम के मुताबिक किसी भी बच्चे की 20 साल से कम उम्र में कोलेस्ट्रोल की जांच भी नहीं की जा सकती। Gurugram News
बच्चों में कार्डियक अरेस्ट बिना छाती में दर्द के भी
व्यस्कों में जहां सीने में दर्द होने को कार्डियक अरेस्ट या फिर हार्ट अटैक का सामान्य लक्षण है। बच्चों में दुर्लभ कार्डियक अरेस्ट बिना किसी लक्षण के भी हो सकती है। बहुत कम मामलों में बच्चों को छाती में दर्द के साथ कार्डियक अरेस्ट होता है। बच्चों में कार्डियक अरेस्ट के अधिकतर मामलों की पहचान तब होती है, जब उन्हें अस्पताल ले जाया जाता है। एक्स-रे, ईसीजी या कार्डियोलॉजिस्ट की जांच के दौरान ही इसका पता चलता है। अगर बहुत गंभीर चोटें लग जाती हैं तो यह भी कार्डियक अरेस्ट का कारण बन सकती हैं। कभी-कभी ड्रग्स का ओवरडोज भी इसका कारण हो सकता है। कुछ व्यक्तियों में यह हार्ट की बीमारी जन्मजात या जेनेटिक होती है। इससे भी अचानक कार्डिएक अरेस्ट हो जाता है।
शारीरिक परीक्षण से ऐसी घटनाएं रोकी जा सकती हैं
स्कूल में खेल कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए बच्चों के लिए आमतौर पर पूर्व भागीदारी परीक्षा और खेल शारीरिक परीक्षण की आवश्यकता होती है। इन शारीरिक परीक्षणों में अक्सर बच्चे के चिकित्सा इतिहास की समीक्षा, शारीरिक परीक्षण और कभी-कभी इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी) या हृदय जांच जैसे परीक्षण शामिल होते हैं। हृदय संबंधी असामान्यताओं के लिए बच्चे की जांच करने से खेल के दौरान अचानक हृदय संबंधी घटनाओं को रोकने और उनकी सुरक्षा को बेहतर ढंग से सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के एक शोध के अनुसार अस्पताल के बाहर बाल चिकित्सा हृदयाघात के लिए जीवित रहने की दर केवल 6.4 प्रतिशत है। शिशुओं के लिए 3.3 प्रतिशत, बच्चों के लिए 9 प्रतिशत और किशोरों के लिए 8.9 प्रतिशत जीवित रहने की दर है। Gurugram News
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