Sweet Potato Farming: 130 दिनों में हो जाएंगे मालामाल, शकरकंद की खेती से कमाएं मुनाफा

Sweet Potato Farming
Sweet Potato Farming: 130 दिनों में हो जाएंगे मालामाल, शकरकंद की खेती से कमाएं मुनाफा

Shakarkandi ki Kheti: शकरकंद आलू की प्रजाति का ही सदस्य है, लेकिन इसकी खेती बीजों से नहीं, बल्कि कंदों यानी जड़ों से की जाती है। शकरकंद की खेती व्यापारिक तौर पर अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए। शकरकंदी मुख्य रूप से अपने मीठे स्वाद और स्टार्ची जड़ों के लिए उगाई जाती है। यह जड़ी-बूटी वाली सदाबहार बेल है। इसके फल खाने योग्य, मुलायम छिलके वाले, पतले और लम्बे होते हैैं। Sweet Potato Farming

यह बहुत किस्म की मिट्टी जैसे की रेतली से दोमट मिट्टी में भी उगाई जा सकती है, पर यह ज्यादा उपजाऊ और अच्छे निकास वाली मिट्टी में बढ़िया पैदावार देती है। इसकी खेती हल्की रेतली और भारी चिकनी मिट्टी में ना करें, क्योंकि इसमें गांठों का विकास अच्छी तरह से नहीं होता हैं। शकरकंदी की खेती के लिए, खेत को अच्छी तरह से तैयार करें। मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए, बिजाई से पहले खेत की 3-4 बार जोताई करें।

किस्में और पैदावार | Sweet Potato Farming

पंजाबी स्वीट पोटेटो-21: इस किस्म की बेल की लम्बाई दरमियानी होती है। इसके पत्तों का आकार चौड़ा और रंग गहरा हरा, तना लम्बा और मोटा, इसकी डंडी लम्बी 4.5 सैं.मी. और पत्तों की लम्बाई 9 सैं.मी. होती है। इसके फल गहरे लाल रंग के होते है, जो 20 सैं.मी. लम्बे और 4 सैं.मी. चौड़े होते है और इनका गुद्दा सफेद रंग का होता है। यह किस्म 145 दिनों में पक जाती हैं। इनके फलों का औसतन भार 75 ग्राम होता है। इसके फल में 35 प्रतिशत सूखा पदार्थ और 81 मि. ली. प्रति ग्राम स्टार्च की मात्रा होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 75 क्विंटल प्रति एकड़ होती हैं। बीच का फासला 60 सैं.मी. और पौधों के बीच का फासला 30 सैं.मी. का रखें।

बीमारियां और रोकथाम | Sweet Potato Farming

फल पर काले धब्बे:
इस बीमारी से फलों पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते है। प्रभावित पौधे सूखना शुरू हो जाते है। प्रभावित फलों पर अंकुरण के समय आंखे भूरे या काले रंग की हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए बीमारी-मुक्त बीजों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले बीजों का मरकरी के साथ उपचार करें।

अगेता झुलस रोग:
इस बीमारी से निचले पत्तों पर गोल धब्बे पड़ जाते है। यह मिटटी में फंगस के कारण फैलती है। यह ज्यादा नमी और कम तापमान में तेजी से फैलता है। इसकी रोकथाम के लिए मैनकोजेब 30 ग्राम या कॉपर आॅक्सीक्लोराइड 30 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में मिलकर बिजाई से 45 दिन बाद 10 दिनों के फासले पर 2-3 बार स्प्रे करें।

धफड़ी रोग:
यह बीमारी खेत और स्टोर दोनों में हमला कर सकती है। यह कम नमी वाली स्थिति में तेजी से फैलती है। प्रभावित फलों पर हल्के भूरे से गहरे भूरे धब्बे दिखाई देते है। इसकी रोकथाम के लिए खेत में हमेशा अच्छी तरह से गला हुआ गोबर ही डालें। बीमारी-मुक्त बीजों का ही प्रयोग करें। बीजों को ज्यादा गहराई में ना बोयें। एक ही फसल खेत में बार-बार उगाने की बजाए फसली-चक्र अपनाएं। बिजाई से पहले बीजों का एमीसान 6@0.25% (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) के साथ 5 मिन्ट उपचार करें।

मुनाफा:
यह फसल 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। जब इसके पौधों पर लगी पत्तियां पीले रंग की दिखाई देने लगें, उस दौरान इसके कंदो की खुदाई कर ली जाती है। अनुमान के मुताबिक, अगर आप एक हेक्टेयर में शकरकंद की खेती करते हैं तो 25 टन तक की पैदावार हासिल कर सकते हैं। बाजार में अगर इसे आप 10 रुपये प्रति किलो में ही बेचेंगे तो भी आराम से सवा लाख रुपये का मुनाफा हासिल कर पाएंगे। Sweet Potato Farming

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