Gurukul Shiksha: भारत के सांस्कृतिक और शैक्षणिक इतिहास में गुरुकुल शिक्षा पद्धति का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह प्रणाली, जो वैदिक काल से चली आ रही है, विद्यार्थियों को न केवल ज्ञान अर्जित करने का माध्यम प्रदान करती थी बल्कि उनका सर्वांगीण विकास भी सुनिश्चित करती थी। आज के यांत्रिक और परिणाम-उन्मुख शिक्षा तंत्र में जब नैतिक मूल्यों और जीवन-कौशल का अभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है, तब गुरुकुल शिक्षा पद्धति की ओर लौटने की आवश्यकता पहले से अधिक प्रासंगिक हो गई है।
गुरुकुल प्रणाली केवल शैक्षिक ज्ञान पर आधारित नहीं थी। यह अपने विद्यार्थियों में नैतिकता, अनुशासन, सह-अस्तित्व और आत्मनिर्भरता के गुणों को विकसित करने पर जोर देती थी। विद्यार्थी अपने गुरुओं के संरक्षण में प्राकृतिक वातावरण में अध्ययन करते थे। यह प्रणाली न केवल उन्हें पाठ्यक्रम आधारित शिक्षा देती थी बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक मूल्यों का भी संचार करती थी।
आज, जब हमारी शिक्षा प्रणाली रोजगार केंद्रित हो गई है और केवल प्रतिस्पर्धा और अंकों पर आधारित हो गई है, तो विद्यार्थियों में नैतिकता, सहिष्णुता और समावेशिता की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान से दूर करती है और उन्हें एक मशीन का हिस्सा बना देती है, जो केवल निर्देशों का पालन करती है। इसके विपरीत, गुरुकुल प्रणाली में शिक्षा को जीवन जीने की कला के रूप में देखा जाता था, जिसमें विद्यार्थी के बौद्धिक, भावनात्मक, और शारीरिक विकास का समग्र ध्यान रखा जाता था।
गुरुकुल शिक्षा पद्धति में विद्यार्थियों को प्रकृति के निकट रखा जाता था, जो उन्हें पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को समझने में मदद मिलती थी। आज, जब पर्यावरणीय संकट और जलवायु परिवर्तन हमारे सामने बड़ी चुनौती के रूप में खड़े हैं, तब गुरुकुल प्रणाली के इस पहलू को अपनाना समय की मांग है। इसके अलावा, इस प्रणाली में छात्रों को स्वावलंबी बनाने के लिए व्यावहारिक कार्यों में भी प्रशिक्षित किया जाता था, जैसे कृषि, कारीगरी, और योग।
हालांकि, आधुनिक समय में इस प्रणाली को पूरी तरह से लागू करना चुनौतीपूर्ण है। वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था और तकनीकी युग में, केवल गुरुकुल प्रणाली पर निर्भर रहना व्यावहारिक नहीं हो सकता। लेकिन यह संभव है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली में गुरुकुल प्रणाली के तत्वों को शामिल किया जाए। इसके लिए नैतिक शिक्षा, योग, और सह-अस्तित्व जैसे विषयों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा सकता है। इसके साथ ही, विद्यार्थियों को प्राकृतिक वातावरण में शिक्षण और व्यावहारिक अनुभवों से जोड़ने के प्रयास किए जा सकते हैं।
सरकार और समाज को मिलकर इस दिशा में कदम उठाने चाहिए। शिक्षा नीति में गुरुकुल प्रणाली के सिद्धांतों को पुनर्जीवित करने के लिए नीतिगत परिवर्तन की आवश्यकता है। शिक्षकों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा केवल अंकों तक सीमित न रहे, बल्कि विद्यार्थियों के जीवन मूल्यों और व्यक्तिगत विकास को भी महत्व दे। गुरुकुल शिक्षा पद्धति हमारी संस्कृति और परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा है। इसे आधुनिक संदर्भ में पुन: जीवंत करना हमारी नई पीढ़ी को एक संतुलित, नैतिक और आत्मनिर्भर समाज की ओर ले जा सकता है। यह केवल शिक्षा का प्रश्न नहीं है, बल्कि एक बेहतर भविष्य की नींव रखने का प्रयास है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)