Supreme Court: अलीगढ़ (एजेंसी)। आज शुक्रवार 8 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) मामले में सुनवाई करते हुए 4:3 के बहुमत से 1967 का फैसला खारिज कर दिया, जिसके तहत अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता क्योंकि इसे एक कानून द्वारा बनाया गया था। इसके विपरीत अदालत ने यह फैसला लेने के लिए तीन जजों की बेंच तैयार कर दी है, जोकि यह फैसला लेगी कि केंद्रीय विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक द्वारा ‘स्थापित’ किया गया था या नहीं। AMU News
एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान पीठ द्वारा सुने गए मामले में विचार किया गया कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान है। अनुच्छेद 30 के अनुसार धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को भारत में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार है।
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रिपोर्ट में बार एंड बेंच के अनुसार, सीजेआई के हवाले से कहा गया कि अजीज बाशा मामले में दिए गए फैसले को रद्द किया जाता है, एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का फैसला वर्तमान मामले में निर्धारित परीक्षणों, मुद्दे पर फैसला करने के लिए एक पीठ के गठन के लिए सीजेआई के समक्ष रखे जाने वाले कागजात और 2006 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की सत्यता के आधार पर तय किया जाना है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने बहुमत का फैसला लिखा, जिस पर जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एससी शर्मा ने असहमति जताई।
5 न्यायाधीशों ने माना था कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं
रिपोर्ट के अनुसार 1967 के एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में, 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। इसने एएमयू अधिनियम, 1920 का हवाला दिया था, जिसने विश्वविद्यालय की स्थापना की और माना कि यह न तो मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था और न ही प्रशासित था – संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक आवश्यकता है। पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल थे। पीठ ने 8 दिनों तक दलीलें सुनने के बाद 1 फरवरी तक अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
आज शुक्रवार को संबंधित मामले में 4 फैसले सुनाए गए, जिनमें से 4 जजों ने बहुमत का फैसला सुनाया, जिसमें सीजेआई शामिल थे, वहीं दूसरी ओर 3 जजों ने उस पर असहमति जताई। असहमति जताने वाले 3 जज जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस शर्मा थे। AMU News
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