Farmers News: भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ एवं बड़े स्तर पर लोगों को आजीविका देने का माध्यम कृषि दुरावस्था से ग्रसित है जिसके चलते सर्वे के अनुसार 40 प्रतिशत किसान इसे छोड़ना चाहते हैं, 27 प्रतिशत इसे लाभप्रद नहीं मानते और 8 प्रतिशत इसे खतरों भरा स्वीकारते हैं। इसी की चरमावस्था के चलते महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ से लेकर पूरे भारत भर के किसान, साहूकारों के कर्ज तले दबकर मृत्यु को वरण कर रहे हैं। यह सबके लिए चिंताजनक है। Agriculture News
भारत एक कृषि प्रधान देश है। आज से कई हजार वर्ष पूर्व से यही काम-धंधा इस देश में होता आ रहा है। पहले यह माना जाता था कि किसी भी प्रकार का खेती करने वाला किसान कभी भूखा मर नहीं सकता। तब यह कहावत थी-उत्तम खेती, मध्यम बान, नीच चाकरी, भीख निदान’ यह विडम्बना है कि पहले जो खेती उत्तम मानी जाती थी, अब ठीक विपरीत स्थिति है।
पहले संयुक्त परिवार का प्रचलन था इसलिए खेत बड़े-बड़े थे। जोत की भूमि अधिक थी। महंगाई नहीं थी। सस्ते का जमाना था। सस्ते में मजदूर मिल जाते थे। कृषि के साथ पशु पालन भी था जिसका दूध परिवार के व गोबर र्इंधन व खाद बन खेत के एवं बैल खेती के काम आते थे। कृषि उत्पाद परिवार एवं मजदूरों के तथा अवशिष्ट पालतू पशुओं एवं खाद के काम आता था। खेती की गांव की ओर से सामूहिक रखवाली होती थी, इसलिए अधिक बार एवं अधिक समय खेत से अधिक फसल उत्पादन लिया जाता था। पशुओं के लिए गांव-गांव में गोचर भूमि थी। इनके लिए गांव की ओर से चरवाहा हुआ करता था। तब कृषि के किसी कार्य के लिए भी किसान धन हेतु साहूकार के फेर में नहीं पड़ता था। ऐसी आवश्यकता भी नहीं पड़ती थी। कृषि उत्पाद परिवार के, मजदूर के, बीज के सब काम आ जाते थे। Agriculture News
तब जैसी स्थिति अब नहीं रही। संयुक्त परिवार पुरानी बात हो गई। परिवार बंटते गए। खेत टुकड़ों में छोटे होते गए। खेती की जोत भूमि कम होने लगी। पशुपालन बीते दिनों की बात हो गई। यह भी विडंबना की बात है किसान खुद अपने खेत से सब्जियां नहीं ले रहे, वे भी आजकल शहरों की मंडियों से सब्जियां खरीद रहे हैं। घर में मनुष्य के रहने के लिए जगह कम पड़ने लगी। विवश किसान बीज, खाद एवं खेती के लिए धन हेतु दर-दर भटकने लगा। दिन-ब-दिन भू-जल स्तर नीचे गिरता जा रहा है। बीज उत्पादकों के लुभावने प्रचार विज्ञापन से प्रभावित किसान ठीक विपरीत उसके उत्पादन विपदा के आखेट होने लगे। Agriculture News
महंगाई का युग, महंगे बीज, महंगी खाद व महंगी मजदूरी के चलते खेती महंगी हो गई। कृषि उत्पाद महंगा हुआ पर मूल्य उसके अनुसार नहीं रहा। यह विचित्र स्थिति है कि सभी उत्पादकों के उत्पादक अपने उत्पाद का मूल्य स्वयं निर्धारित करते हैं। भारत में किसान अपने कृषि उत्पाद व्यापारियों, दलाल, बिचौलिए, कोचिए तथा साहूकार के हाथों उनके मनमाफिक मूल्य अनुसार देकर, बेचकर घाटा उठाता है। पर्यावरणिक बदलाव के चलते कहीं अधिक वर्षा तो कहीं कम वर्षा से किसान की उपज, खेत, मेहनत, धन, श्रम सब बर्बाद हो रहा है। Agriculture News
कुछ राज्यों में किसानों को मुफ्त बिजली मिलती है पर वह अव्यवस्था व लो वोल्टेज की शिकार है। सिंचाई अभाव से एक फसल ले पाना कठिन हो गया है। इससे वर्ष भर आजीविका चला पाना कठिन हो गया है। क्या किसानों को इस त्रासदी से मुक्ति मिल पायेगी? किसानों को भी चाहिए कि वे अब पारंपरिक फसलों की तरफ ध्यान हटाकर नई तकनीक से खेती करें। कृषि वैज्ञानिकों से सलाह व मिट्टी की नियमित जांच करवाते रहें। अब जरूरत है कि केंद्र व राज्य सरकारों को तालमेल स्थापित कर नए सिरे से रणनीति बनानी होगी, ताकि कृषि एक बार फिर लाभदायक पेशा बन सके।
लेखक: डॉ. संतोष द्विवेदी (यह लेखक के अपने विचार हैं)
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