मास्को (सच कहूँ न्यूज)। Innovation by SFedU: रूस के दक्षिणी संघीय विश्वविद्यालय (SFedU) के शोधकर्ताओं ने एक स्वचालित उपकरण का प्रोटोटाइप तैयार करने में सफलता हासिल की है जो शुष्क जलवायु क्षेत्र में भी हवा से पानी निकालने में सक्षम है। यह उपकरण एक विशेष सोर्बेंट – एक धातु-जैविक ढांचा पॉलीमर की सहायता से काम करता है जो रात में कम तापमान पर हवा से जल वाष्प को अवशोषित कर दिन में सूर्य की गर्मी के संपर्क में आने पर संग्रहित जल वाष्प छोड़ देता है।
विश्वविद्यालय प्रतिनधि ने बताया कि SFedU के वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित प्रोटोटाइप उपकरण पहले से ही दक्षिणी रूस में फील्ड परीक्षणों से गुजर रहा है।
जरूरत व उद्देश्य
प्रयोगशाला के प्रमुख इल्या पंकिन ने सच कहूँ समाचार संवाददाता को बताया कि, “शुष्क और मरुस्थलीय जलवायु वाले क्षेत्रों में, साथ ही जल पाइपलाइनों और उपचार सुविधाओं जैसे बुनियादी ढांचे से रहित क्षेत्रों में पेयजल की कमी की समस्या को हल करने के लिए हवा से पानी प्राप्त करने वाले इस स्वचालित उपकरण को डिज़ाइन किया गया है। सबसे पहले, हम अफ्रीकी देशों और दक्षिण-पूर्व एशिया के गरीब देशों के बारे में बात कर रहे हैं जहाँ पानी की सबसे ज्यादा कमी है।”
लागत तथा क्षमता:
उपकरण के केंद्र में मौजूद सोर्बेंट (अवशोषक उपकरण) अपनी अत्यधिक सूक्ष्म संरचना और विशाल आंतरिक सतह क्षेत्र के कारण पानी को कैप्चर (अवशोषित) करता है। यह तब भी जल वाष्प को अवशोषित कर सकता है जब औसत दैनिक नमी 25% से कम हो। सोर्बेंट अपनी जीवन अवधि में 500 बार पानी एकत्र करने का कार्य कर सकता है, जिसके तहत उत्पादित पानी की लागत प्रति लीटर केवल 9-10 रूबल (लगभग $0.12-0.14) पडती है।
उपलब्धियां
विश्वविद्यालय प्रतिनधि ने आगे बताया कि इस जल जनरेटर का विकास इल्या पंकिन के नेतृत्व में एसएफईडीयू के इंटरनेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंटेलिजेंट मैटेरियल्स में नई शैक्षिक प्रौद्योगिकियों की अंतर्राष्ट्रीय प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया था। संश्लेषण विधियों के संशोधन और सोर्बेंट सामग्री के अध्ययन पर सैद्धांतिक परिणाम 2021 में प्रतिष्ठित पत्रिका इनऑर्गेनिका चिमिका एक्टा में प्रकाशित हुए थे। आज तक, इस वैज्ञानिक कार्य को पहले ही 25 से अधिक उद्धरण मिल चुके हैं, जो इसके महत्व और प्रासंगिकता की पुष्टि करते हैं।
प्रेरणा व इतिहास
इस उपकरण का निर्माण सॉर्बेंट सामग्रियों पर वर्षों के अनुसंधान से किया गया। हवा से पानी निकालने का विचार, यहां तक कि रेगिस्तानी परिस्थितियों में भी, वैज्ञानिकों के बीच काफी समय पहले वर्ष 2001 में नेचर जर्नल में प्रकाशित अफ्रीकी बीटल के प्रसिद्ध अवलोकन के बाद उभरा था। ये बीटल्स तापमान में उतार-चढ़ाव के दौरान उनके शरीर पर संघनित होने वाली सुबह की ओस को इकट्ठा करके नामीब रेगिस्तान में जीवित रह सकते हैं। इससे शोधकर्ताओं को हवा से पानी प्राप्त करने की तकनीक विकसित करने की प्रेरणा मिली।
अन्य से भिन्नता:
इल्या पंकिन ने कहा, “हमारा उपकरण वायु नमी के 25% से भी कम होने पर भी पानी को अवशोषित कर सकता है। ऐसे स्तर पर, उच्च दबाव और बड़ी हवा की मात्रा को ठंडा करने के सिद्धांत पर काम करने वाली कुछ मौजूदा प्रणालियां प्रभावी हैं, लेकिन उन्हें बिजली की आवश्यकता होती है, जबकि हमारा इंस्टालेशन पूरी तरह से स्वचालित है।”
इल्या पंकिन ने सच कहूँ समाचार संवाददाता को आगे बताया कि अब, यह प्रौद्योगिकी सबसे कठोर जलवायु परिस्थितियों में लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए वास्तविक दुनिया में अनुप्रयोग के लिए तैयार है।
सहयोग व अविष्कारक टीम
यह कार्य “इनोवेशन प्रमोशन फंड ऑफ द रूसी फेडरेशन” के सहयोग से शुरू किया गया। प्रयोगशाला प्रमुख इल्या पैंकिन के साथ, इंटरनेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंटेलिजेंट मैटेरियल्स के वरिष्ठ शोधकर्ता वेरा बुटोवा (अब बल्गेरियाई एकेडमी ऑफ साइंसेज के इंस्टीट्यूट ऑफ इनऑर्गेनिक केमिस्ट्री में पोस्टडॉक), रिसर्च इंजीनियर ओल्गा बुराचेवस्काया और स्नातक छात्रा क्रिस्टीना वेटलिटिना-नोविकोवा ने विभिन्न समय पर इस परियोजना पर काम किया।
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