चुनाव और युवा : आत्महत्या करने वालों में आर्थिक रूप से वंचित 75 प्रतिशत युवा हैं शामिल || Youth Unemployment
Youth Unemployment: भारत के विदेश मंत्री ने हाल ही में एक प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्र में लिखा कि यह अमृतकाल अर्थात एक सशक्त और समावेशी अर्थव्यवस्था का पहला आम चुनाव है और हमारे युवाओं को इसके महत्व को समझना चाहिए। इसका तात्पर्य क्या है, यह वर्तमान सरकार को समझना होगा किंतु युवाओं के लिए यह स्पष्ट नहीं है क्योंकि शिक्षित या अशिक्षित वर्गों द्वारा इसके प्रभाव को पूर्णत: नहीं समझा गया। सरकार मानव संसाधनों को पोषित कर रही है और जीवन की जरूरतों की आसानी तथा उद्यमिता को बढावा दे रही है किंतु क्या यह पीढ़ी मानती है कि शब्दों और कार्यों में समानता नहीं है।
सामाजिक विश्लेषकों और युवा नेताओं के विचारों में यह चिंता स्पष्टत: दिखायी देती है कि दुर्भाग्य से सरकार समस्या के आयामों से अवगत नहीं है। हालांकि युवा जनसंख्या का सर्वाधिक गतिशील वर्ग माना जाता है। भारत में विश्व की सर्वाधिक युवा जनसंख्या है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के जनसंख्या आकलन के संबंध में प्रतिनिधि समूह की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर 25 से 29 आयु वर्ग के युवाओं की संख्या 2021 में कुल जनसंख्या का 27.2 प्रतिशत था 2036 तक इनकी संख्या कम होकर 22.7 प्रतिशत रह जाएगी किंतु संख्या की दृष्टि से यह अभी काफी अधिक 34.5 करोड है। किंतु यह दु:खद तथ्य है कि आम युवा चुनावी प्रक्रिया में रूचि नहीं लेता है और यह उसे अपनी आवाज को सुनाने के साधन के रूप में नहीं मानता।
सकल घरेलू उत्पाद की उच्च वृद्धि दर के माध्यम से इस बात को न्यायसंगत ठहराने का प्रयास किया जाता है किंतु ग्रामीण युवा कृषि को अलाभप्रद मान रहे हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे रोजगार (Youth Unemployment) उपलब्ध नहीं है। जेन नेक्सट में हताशा और निराशा है हालांकि इन विषयों पर इन चुनावों में चर्चा हो रही है किंतु इससे युवाओं में आशा नहीं जगी है कि नई सरकार उनके मुद्दों का निराकरण करेगी और इसका कारण भारत में बेरोजगारी के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की हालिया रिपोर्ट है जिसमें पाया गया है कि भारत में कुल बेरोजगारों में 83 प्रतिशत युवा हैं। इन बेरोजगार लोगों में युवाओं की संख्या 66 प्रतिशत है।
वस्तुत: विश्व में भारत में सर्वाधिक बेरोजगारी दर है। यहां पर हेडलाइन दर 23 प्रतिशत है। जिसके चलते भारत यमन, ईरान, लेबनान, सीरिया और ऐसे अन्य देशों की श्रेणी में आ गया है किंतु ये देश एक तेजी से बढ रही अर्थव्यवस्था या पांचवीं सबसे बडी का दावा नहीं करते हैं। हमारे छोटे पड़ोसी बंगलादेश में यह मात्र 12 प्रतिशत है। 20 से 24 वर्ष के आयु वर्ग मे बेरोजगारी दर 44 प्रतिशत है। इसलिए इस बात पर हैरानी नहीं होती है कि जिन लोगों का भविष्य दांव पर लगा है उनकी मतदान में कोई रूचि नहीं है।
वर्ष 2024 के चुनावों में लगभग 38 युवा मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं। बिहार, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कम संख्या में लोग मतदाता के रूप में पंजीकृत हो रहे हैं। एसोसिएशन फोर डेमोक्रेटिक रिफार्म ने स्पष्ट किया है कि चुनावी प्रक्रिया के बारे में युवाओं में संशय है। उनमें उदासीनता का कारण यह है कि अधिकतर राजनीतिक दलों में पर्याप्त युवा नेता नहीं है। राजनीतिक नेतृत्व उभरती सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के बारे में चिंता प्रदर्शित नहीं करते हैं। बिहार में युवा मतदाताओं की कम संख्या के बारे में एक्शन फोर अकाउंटेबल गवर्नेस के राजीव कुमार का कहना है कि हालांकि बिहार में राजनीतिक जागरूकता है किंतु युवाओं में राजनीतिक नेतृत्व की प्रतिबद्धता के बारे में हताशा और निराशा है। इसलिए राजनीतिक दलों की गारंटी या वायदे से युवा पीढी प्रभावित नहीं हो रही है क्योंकि वे वास्तविक इरादों पर आधारित नहीं है।
सरकार द्वारा भ्रष्टाचार का मुकाबला करने की बातें की जाती हैं और इससे युवा पीढी इस सबंध में ठोस कार्यवाही के बजाय इसे एक नारे के रूप में देखती है। प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया है कि पिछले एक दशक में विभिन्न विकास नीतियों कार्यान्वयन पर 30 लाख करोड रूपए खर्च किए गए और लाभार्थियों को सीधे उनके खातों में पैसे दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस के शासन से अलग है जिसने कभी दावा किया था कि यदि दिल्ली से एक रूपया भेजा जाता है तो गंतव्य तक केवल 1 पैसा पहुंचता है। आप कल्पना कीजिए कि यदि उनके नियंत्रण में 30 लाख करोड रूपए होंगे तो इसके क्या परिणाम होंगे। जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार यथावत है। क्या युवा इससे खुश होंगे? इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि कारपोरेट जगत आटोमेशन की दिशा में बढ रहा है जिसके कारण रोजगार के अवसरों में और कटौती होगी।
राजनीतिक दलों को इस बारे में विचार करना चाहिए कि देश के प्रतिभाशाली युवा अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग क्यों नहीं कर रहे हैं। इसका एकमात्र उपाय यह है कि ऐसी रणनीति या योजना बनाए जो उन्हें प्रेरित करे और युवा पीढी लाभप्रद कार्यो में संलिप्त हो जिससे सामंजस्यपूर्ण सामाजिक आर्थिक विकास होगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि रिक्त पडे सरकारी पदों को भरने के अलावा निजी सेक्टर में भी पर्याप्त पदों में भर्ती करे और अपनी श्रम शक्ति से अत्यधिक कार्य न करवाए।
जैसा कि कुछ अर्थशास्त्रियों ने सुझाव दिया है कि देश में बेरोजगारी (Youth Unemployment) भत्ता शुरू किया जाना चाहिए। जब बड़ी परियोजनाएं जिनके लाभार्थी युवा होते हैं, वे चलाई जा रही हैं तो फिर गरीब या आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए भत्ते के कार्यान्वयन में कोई समस्या नहीं हो सकती है और इसके लिए यदि आवश्यक हुआ तो अत्यधिक धनी वर्ग पर 1 प्रतिशत कर लगाया जाना चाहिए। किसी राष्ट्र की प्रगति उसकी युवा पीढ़ी पर निर्भर करती है। अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है कि वह युवा पीढ़ी की आवश्यकताओं की ओर ध्यान दे क्योंकि यही वह वर्ग है जो देश के भावी विकास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
-धुर्जति मुखर्जी (यह लेखक के अपने विचार हैं)