– Project Chetna –
विश्व जनसंख्या समीक्षा 2023 के अनुसार, भारत में हर महीने 64,851 लोग लापता हो जाते हैं। इस तथ्य से प्रेरित होकर एक युवा छात्र ने इसके बारे में कुछ करने का फैसला किया। अक्षय रिडलान (जो 2019 में यूपीएससी के अभ्यर्थी थे) परीक्षा की तैयारी के लिए हर सुबह अखबार पढ़ते थे। तभी उनकी नजर लापता लोगों की खबर पर पड़ी। तब वह केवल 20 वर्ष के थे। अपने प्रियजनों से बिछड़े हुए लोगों के परिवारों का दु:ख देखकर उन्हें बहुत कष्ट हुआ। इस समस्या को प्रभावी ढंग से समाप्त करने के लिए उन्होंने प्रौद्योगिकी-आधारित समाधान बनाने का निर्णय लिया। अक्षय ने 12 सितंबर 2023 को प्रोजेक्ट ‘चेतना’ (Project Chetna) लॉन्च किया और इसके माध्यम से वह एक क्यूआर टैग लेकर आए, जिसे एक पेंडेंट के अंदर गर्दन के चारों ओर पहना जा सकता है।
स्कैन करने पर ये क्यूआर कोड इसे पहनने वाले व्यक्ति के बारे में संपर्क विवरण और चिकित्सा जानकारी प्रदान करते हैं। इन टैगों का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले कमजोर रोगियों और नागरिकों की मदद करना है। अक्षय कहते हैं, ‘जब लोग खो जाते हैं, तो यह क्यूआर टैग उनकी चिकित्सा स्थिति, आपातकालीन संपर्क और घर का पता जैसी आवश्यक जानकारी प्रदान कर सकता है। दरअसल, क्यूआर टैग डिमेंशिया से पीड़ित लोगों के लिए बीमा है। मैंने यह तंत्र इसलिए बनाया ताकि पहचान की प्रक्रिया तेज हो और लापता नागरिक जल्द ही घर आ सकें। आपको बस लॉग इन करना है, रजिस्टर पर क्लिक करना है, जिस व्यक्ति के लिए आप इसे बना रहे हैं उसका व्यक्तिगत विवरण भरना है और आपको क्यूआर पेंडेंट मिल जाएगा। कोई भी व्यक्ति जिसके पास फोन है वह कोड को स्कैन कर जानकारी प्राप्त कर सकता है।’
अक्षय ऐसी तकनीक भी बना रहे हैं, जो किसी के भी क्यूआर स्कैन करने पर आपको अलर्ट कर देगी। उदाहरण के लिए, यदि मुंबई से कोई व्यक्ति भटककर बेंगलुरु चला गया है। अगर वहां कोई क्यूआर स्कैन करेगा, तो आपको नोटिफिकेशन मिल जाएगा। इससे लापता होने वाले लोगों की जान बचाने में मदद मिलेगी। उन्होंने अपने प्रोजेक्ट का नाम ‘चेतना’ रखा क्योंकि इसका उद्देश्य उन लोगों की मदद करना है जो अपनी चेतना खो चुके हैं। क्यूआर आधारित डिजिटल पहचान प्रणाली में प्रत्येक पेंडेंट बनाने में अक्षय को 200 रुपये का खर्च आता है और उन्होंने अब तक 100 पेंडेंट मुफ्त में दिए हैं। अक्षय ने इससे पहले फरवरी 2023 में पालतु कुत्तों के लिए भी ऐसे क्यूआर टैग बनाए थे। उनके कुत्ते के लापता होने के बाद उन्हें ऐसा करने की प्रेरणा मिली। यह विशेष क्यूआर कोड जानवर का नाम, लिंग, देखभाल करने वाले का नाम, फोन नंबर और टीकाकरण/नसबंदी का इतिहास बताता है। हालांकि ये दोनों नवाचार उपयोगी है, लेकिन बड़े पैमाने पर सफल होने के लिए इन्हें बहुत अधिक जागरूकता की आवश्यकता है।