सब्जियां उगाकर मालामाल हुआ डबवाली का किसान जसपाल || Vegetable Farming
अनिल गोरीवाला। जहां किसान जमीन से पैदावार लेने के लिए अनेक प्रकार की पेस्टिसाइड का प्रयोग कर आमदनी वसूल करने में लगा है। वहीं, डबवाली का किसान जसपाल सिंह प्रति एकड़ भूमि से लाखों रुपए की वार्षिक आमदनी ले रहा है। किसान जसपाल सिंह पिछले 20 वर्षों से अपने 6 एकड़ जमीन में सब्जियां बोकर (Vegetable farming) हर तीन माह की अंतराल पर लाखों रुपए की पैदावार उठा रहा है। इतना ही नहीं, इस किसान की प्रेरणा से आस-पास के किसानों ने भी अपने खेतों को सब्जी का हब बना दिया है।
किसान जसपाल सिंह के अनुसार खेत में सब्जी बोने का कार्य किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है। अनुमान है कि डबवाली सब्जी मंडी में 25 प्रतिशत तक सब्जियां इसी क्षेत्र से पहुंच रही हैं। क्षेत्र के किसानों को सब्जी बेचने के लिए अन्य मंडी की तरफ रुख नही करना पड़ता, अपितु किसानों का सब्जी विक्रेताओं से पहले ही अनुबंध हो जाता है। किसान जसपाल सिंह द्वारा 6 एकड़ जमींन में चप्पन कद्दू, गोभी, टमाटर, पेठा, तोरी, तरबूज की काश्त की गई है। किसान ने बताया कि सब्जी बोने की तकनीक कोई मुश्किल नहीं है, परन्तु इसमें खेत की बुआई, निराई, गुडाई का कार्य सही समय पर होना नितांत आवश्यक है।
वैरायटी: -
जसपाल सिंह द्वारा पिछले 12 वर्षों से गोभी की मन्नेर किस्म की काश्त की जा रही है। वर्तमान में 1 एकड़ में मन्नेर किस्म का उत्पादन सवा लाख रुपए तक हुआ है। इस गोभी किस्म का समय गर्मी के मौसम में 3 माह व सर्दी के मौसम में ढाई माह है। इस अवधि में गोभी पूरी तरह से तैयार हो जाती है। यह किस्म जून से शुरू होकर अप्रैल तक बोई जाती है। जिसका बाजार का भाव 40 रुपए प्रति किलो तक संभावित रहता है। सब्जी के पौधों पर मौसम का प्रभाव अवश्य दिखाई देता है, इसलिए पौधे की समयानुसार देखभाल जरूरी है।
तोरी की सत्या व अनिता नामक कम्पनी की किस्म की पैदावार से किसान जसपाल सिंह प्रति एकड़ ढाई लाख की पैदावार ले रहा है। जिसका बाजारी भाव 15 रुपए से लेकर 60 रुपए प्रति किलो से हिसाब मिल जाता है। यह दोनों किस्म जनवरी से जून तक गर्मियों में तैयार हो जाती है। बैंगन की चूं-चूं माइको नामक वैरायटी भी अच्छी पैदावार के लिए कारगर है। प्रति एकड़ में प्रति वर्ष डेढ़ लाख रुपए की आमदन हो रही है।
पनीरी लगाने की विधि
खेत को समतल कर उसमें तव्वियां व कल्टीवेटर से जमींन को तैयार कर इसमें मेढ़ बना लें। हाथों से पनीरी को रोपित किया जाता है। मेंढों में पौधों की वृद्वि के अनुसार सिंचाई की जाती है।