प्रदूषण से भारत में गरीब सर्वाधिक प्रभावित हैं। विनिर्माण, उत्पादन, औद्योगिक गतिविधियों, सेवाओं, परिवहन और अन्य कार्यकलापों को प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा रहा है और इन पर कर लगाए जा रहे हैं जिससे महंगाई और जीवन की लागत में वृृद्धि हो रही है। इसके अलावा दिल्ली में प्रदूषण एजेंसियों द्वारा प्रदूषण के संबंध में आंकड़ों को प्रकट न करने से भी अनेक प्रश्न उठ रहे हैं। इसलिए यह प्रश्न उठाया जा रहा है कि क्या सरकारें अर्थव्यवस्था पर अनावश्यक लागत थोप रही है। Pollution
प्रदूषण अपने आप में एक बड़ा व्यवसाय बन गया है और इससे गरीब सर्वाधिक प्रभावित हो रहा है। अकेले पेट्रोल पर लगभग 13.6 लाख करोड़ के उपकर और अतिरिक्त उत्पाद शुल्क लगाए जा रहे हैं ताकि इसकी खपत में कमी हो। इसके पूर्व के पांच वर्षों में इससे 13 लाख करोड़ रूपए संग्रहित किए गए। Pollution
प्रश्न यह भी उठता है कि इन प्रमुख प्रदूषण पर निगरानी रखने वाली एजेंसियां आईआईटी, कानपुर आदि ने प्रदूषण के मामले में आंकड़े जारी करने बंद क्यों कर दिए हैं। इसका कारण यह है कि नौकरशाही और दिल्ली सरकार में टकराव चल रहा है। जिसके चलते ऐसा लगता है कि वे इन आंकड़ों के बारे में स्वयं आश्वस्त नहंी है।
विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि संपूर्ण विश्व में प्रदूषण लागत बढाने का एक औजार बन गया है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की सरकारों ने इस संबंध में एक और तरीका निकाला है। वह यह कहकर लोगों की कारें जब्त कर रही हैं कि कार का जीवन समाप्त हो गया है और इस तरह लोगों को प्रताड़ित कर रही हैं कि वे इस संबंध में सामाजिक लागत पर भी ध्यान नहंी दे रही हैं। Pollution
वर्ष 2019 में नेशनल ग्रीन एयर कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष 2022 तक अल्ट्रा फाइन पार्टिकुलेट के स्तर में 20 से 30 प्रतिशत की कमी करने का लक्ष्य रखा गया। केन्द्र सरकार द्वारा सितंबर 2022 में इस लक्ष्य को वर्ष 2026 तक 40 प्रतिशत करने का विस्तार किया गया किंतु वर्ष 2022 में भी कुछ शहरों में प्रदूषण का स्तर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वार्षिक औसत सुरक्षित सीमा से अधिक रहा है। दुकानदारों को दोष दिया जा रहा है कि वे प्लास्टिक के माध्यम से प्रदूषण फैला रहे हैं। किसानों को पराली जलाने के नाम पर प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है।
वस्तुत: बड़े कारपोरेट बहुराष्ट्रीय कंपनियां जो शीतल पेयों का विनिर्माण करते हैं वे सबसे बड़ी प्लास्टिक प्रदूषक हैं और इसमें अन्य उद्योग तथा ऑटोमोबाइल सेक्टर भी शामिल हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कारों और ट्रैक्टरों से 8 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्टी के अनुसार वायु प्रदूषण में उद्योगों का हिस्सा 51 प्रतिशत है और इसकी लागत लगभग 7 लाख करोड़ हैं क्योंकि इससे श्रमिकों की उत्पादकता और राहत प्रभावित होते हैं। Pollution
वस्तुत: भारत ने वर्ष 2070 तक प्रदूषण के मामले में पश्चिमी मानदंडों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है किंतु उसे गरीब लोगों की कारों और टैज्क्टरों के बारे में उदारता से सोचना चाहिए। प्रत्येक नई कार या ट्रैक्टर के निर्माण और पुरानी कारों को नष्ट करने से अधिक प्रदूषण होता है और इससे गरीब लोग और गरीब लोग हो रहे हैं क्योंकि इससे उनकी गतिशीलता प्रभावित होती है और इससे अधिक प्रदूषण बढ़ता है।
वस्तुत: बड़े अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय हर जगह सबसे बड़े प्रदूषक हैं। भारत की शीर्ष 12 कंपनियां जिनमें एक सरकारी कंपनी भी हैं, उन्हें सर्वाधिक प्रदूषण करने वाला घोषित किया गया है। ब्रेक फ्री फ्राम प्लास्टिक द्वारा 2022 में किए गए एक ऑडिट के अनुसार भारत में पाया जाने वाला सबसे आम प्लास्टिक उत्पाद फूड पैकेजिंग, घरेलू उत्पाद और अन्य पैकेजिंग मैटेरियल हैं। उत्तर भारत में चीनी मिलें और अन्य उद्योग सर्वाधिक जल और वायु प्रदूषण पैदा करती हैं। वे खुलेआम नदियों में प्रदूषक छोड़ रहे हैं और केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड के मानदंडों का उल्लंघन कर रहे हैं। Pollution
तथाकथित कठोर मानदंडों से किराया बढा है, पार्किंग शुल्क बढ़ा है और यह समझ नहंी आता है कि शुल्क बढ़ाकर किस तरह से प्रदूषण पर नियंत्रण लगता है। सेन्टर फोर पालिसी रिसर्च ने वर्ष 2019 में कहा था कि पर्यावरणीय विनियामक तंत्र को मानदंडों के पालन और कार्यान्वयन में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इंडिया स्पेंड ने वर्ष 2014 से वर्ष 2017 तक प्रदूषण के बारे में रिपोर्टों और आंकड़ों का विश्लेषण किया और यह बताता है कि केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकारों ने पर्यावरण विनियमनों का कड़ाई से पालन नहीं कराया है और वे इस मामले में उदासीन रहे हैं।
एसोसिएशन फोर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जेएसडब्ल्यू स्टील 2020 में चुनावी ट्रस्टों को चंदा देने वाला सबसे बडा चंदादाता था। टाटा समूह की प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट ने अपना 75 प्रतिशत चंदा सत्तारूढ दलों को दिया है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों ने 206 प्रदूषण करने वाले उद्योगों में से 146 उद्योगों को सामान्य जांच से छूट दी है और उन्हें स्वत: निगरानी तथा तृतीय पक्ष प्रमाण का विकल्प दिया है।
केन्द्र की बिजनेस रिफोर्म एक्शन प्लान जिसे वर्ष 2014 से लागू किया जा रहा है, उसने उद्योगों के संबंध में पर्यावरण संरक्षण कम करने के लिए प्रोत्साहन दिया है। विश्व बैंक का कहना है कि विकास के नाम पर अनियमित औद्योगिकीकरण के कारण लोग अनेक तरह से प्रभावित हो रहे हैं। स्थानीय लोग, आदिवासी समुदायों का बलपूर्वक विस्थापन हो रहा है और स्थानीय पर्यावरण तथा आजीविका के स्रोतों के प्रदूषण के कारण उन्हे खराब स्थितियों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
भारत में विश्व के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 10 शहर हैं और भारत में विश्व में सर्वाधिक वायु प्रदूषण है। यह तथ्य विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उजागर किया है। भारत के पूर्व आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु की राय है कि इनमें से अनेक समस्याओं का मुख्य कारण बड़े व्यवसायों के अनुकूल नीतियां अपनाना है। इसका तात्पर्य यह है कि उद्योगों का लाभ बढ रहा है और उसकी कीमत गरीब लोगों पर विभिन्न तरह के प्रभारों के रूप में थोपा जा रहा है और यह सब कुछ प्रदूषण को निंयत्रित करने के नाम पर किया जा रहा है और इसके चलते मुद्रा स्फीति निरंतर बढती जा रही है। अर्थात गरीब लोगों पर भारी लागत थोपी जा रही है।
पिछले 15 माह से मुद्रा स्फीति की दर बढती रही है और इससे लोगों की वित्तीय व्यवस्था डगमगाई है। भारतीय रिजर्व बैंक भी मुद्रा स्फीति के बारे में अत्यधिक चिंतित है। डालर के मुकाबले रूपया लगभग 83 रूपए है और यदि रूपया कमजोर होता गया जो जीवन की लागत बढती जाएगी। बैटरी और विंड पैनल अपशिष्ट भी एक बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं। 8 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया कि सरकारें महत्वाकांक्षी सामुहिक वचन-वायदे कर रही हैं किंतु वे इस संबंध में सही कदम नहीं उठा रहे है। जिसके चलते ये सामुहिक वायदे और संकल्पों का कार्यान्वयन नहीं किया जा रहा है।Pollution
संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि यूरोप इस संबंध में 1979 से इस संबंध में कदम उठा रहा है किंतु यूनान और स्पेन सर्वाधिक प्रदूषक देश रहे हैं। प्रदूषण बढता जा रहा है और किसी तरह इस पर अंकुश लगाने के लिए लोगों पर अधिक लागत थोपी जा रही है। प्रदूषण के सबसे बड़े राजस्व संग्राहक होने के बावजूद इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की गयी है। विश्व समुदाय को इस संबंध में अपनी विफलता स्वीकार करनी चाहिए और गरीबों को अच्छे दिन दिखाने के नाम पर उन पर थोपी गयी लागत को हटाना चाहिए। Pollution
शिवाजी सरकार, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
(यह लेखक के अपने विचार हैं)