राजू, ओढ़ां Thanela disease: देश की अर्थव्यवस्था में पशुधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। करीब 20.5 मिलीयन लोग अपनी आजीविका के लिए पशुधन पर निर्भर है। एक आंकड़े के मुताबिक पशुओं में होने वाले थनेला रोग से देश में डेयरी सेक्टर में हर वर्ष करीब 7165 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। थनेला रोग एक ऐसा रोग है जिसकी अभी तक देश में कोई वेक्सीन नहीं है। पशुओं में ये रोग किटाणु, विषाणु व फफूंदी की वजह से उत्पन्न होता है। इस रोग की वजह से पशुपालकों को न केवल दुग्ध उत्पादन में नुकसान उठाना पड़ता है, बल्कि पशु की कीमत भी घट जाती है। थनेला रोग के लक्षण, बचाव व अन्य सावधानियों को लेकर पशुपालन विभाग कालांवाली के वेटनरी सर्जन डॉ. मनीष कुमार से विशेष बातचीत की गई। उन्होंने बताया कि थनेला रोग की अभी तक वैक्सीन नहीं आई है, इसलिए सावधानी बेहद जरूरी है। Thanela disease
डॉ. मनीष बताते हैं कि पशुओं में थनेला रोग मौसम में बदलाव के दौरान ठंड में ज्यादा होता है। इससे सर्वप्रथम थन गर्म होने के साथ-साथ उनमें छिछड़ियां बन जाती हैं और प्रभावित थन का दूध खारा हो जाता है। दूध दुहते समय पशु दर्द महसूस करता है। अगर पशु की समय पर देखभाल न की जाए तो उसके थन में पस पड़ जाती है। बाद में थन कठोर होने के कारण उसका दुग्ध उत्पादन पूर्णत: बंद हो जाता है। पशु बीमार पड़ जाता है और खान-पान कम कर देता है। इस स्थिति में पशुपालक को दोहरा नुकसान उठाना पड़ता है। Thanela disease
बचाव व उपचार :- पशु को जिस जगह बांधा जाता है वो जगह साफ-सुथरी होनी चाहिए। दूध दुहने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से धोएं। थनों को गुनगुने पानी से ऊपर तक धोएं और फिर तोलिये को हल्के गर्म पानी में भिगोकर थनों को सहलाएं। पशु को दुहने के बाद उसे एक घंटे तक बैठने न दें। क्योंकि दूध दुहने के बाद पशु के थनों के छिद्र बंद होने में एक घंटा ले लेते हैं। ऐसे में पशु जब बैठता है तो उसके छिद्रों में किटाणु अंदर प्रवेश कर जाते हैं। पशु को दुहने के बाद 10 ग्राम बीटाडीन व 10 ग्राम लिक्विड फेराफिन पानी एक 1:1 में डालकर उसमें थनों को डुबाएं, ताकि इससे किटाणु नष्ट हो जाएं। पशु दुहने से पहले नियमित रूप से हथेली पर दूध लेकर चखें। अगर दूध का स्वाद बदला लगता है तो ये थनेला रोग के प्रारंभिक लक्षण हैं। प्राय: लोग पशुओं का दूध अंगूठे के दबाव से निकालते हैं जो अनुचित है। इससे पशु के थनों में गांठ बन जाती है। दूध हमेशा मुट्ठी के माध्यम से ही निकालें। Thanela disease
दिन में 3-4 बार निकालें दूध :- पशु यदि थनेला रोग से प्रभावित है तो उसके थन को वैसे ही न छोड़ें। पशु के बच्चे को उस थन से दूध न पिलाएं। उस थन से दिन में 3-4 बार दूध निकालकर उसे खाली कर दें। सबसे पहले स्वस्थ थनों से दूध निकालें। देखा जाता है कि कई बार पशुपालक प्रभावित थन की धार धरती पर निकालते हैं। ऐसा न करें, क्योंकि जब पशु वहां बैठेगा तो किटाणु अन्य थनों को भी प्रभावित करेंगे। इसलिए प्रभावित थन से दूध अलग बर्तन में निकालें ।
पशुओं में बांझपन कोई लाइलाज बीमारी नहीं: डॉ. मनीष कुमार
पशु में कई बार बांझपन की समस्या देखने को मिलती है। बांझपन के कई कारण होते हैं, जिसमें सर्वप्रथम खनिज तत्वों की कमी का होना, बच्चेदानी में संक्रमण होना, हॉर्मोन का असंतुलित होने के साथ-साथ कई बार पशु में जन्मजात दिक्कत भी होती है। इसके अलावा उचित रूप से कृत्रिम गभार्धान न होने तथा पशु के पूरी तरह से हीट में न आने के कारण भी बांझपन की समस्या आ जाती है। सायलेंट हीट ज्यादातर भैंस में होती है। बांझपन कोई लाइलाज बीमारी नहीं है। पशु पर थोड़ा सा अतिरिक्त ध्यान देने के बाद ये समस्या ठीक हो जाती है। पशु के पूरी तरह से हीट में आने के बाद ही गर्भाधान करवाएं। कई बार 2 से 3 बार कृत्रिम गभार्धान करवाने के बाद भी अगर पशु बार-बार रिपीट होता है तो उसकी बच्चेदानी में संक्रमण हो सकता है। इसका इलाज करवाएं। पशु को क्रॉस करवाते समय अच्छे नस्ल सांड का ही चयन करें।