Israel Hamas War: वर्तमान में पूरी दुनिया किसी ने किसी रूप से अशांति के दौर से गुजर रही है। चहुंओर हिंसा,अराजकता,घुसपैठ व आतंकवाद के शोर से जनता कराह रही है। किसी भी देश में जब ऐसा माहौल बन जाता है तो उसे देश की आंतरिक व बाह्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। आमजन जहां भय के साए में अपना गुजर बसर करने के लिए मजबूर हो जाता है तो संबंधित देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ पूरी दुनिया के अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ता है। इतिहास गवाह है कि जब-जब वैश्विक स्तर पर किन्हीं भी दो देशों के बीच किसी भी मुद्दे को लेकर जंग हुई हो तब उसका आखिरी समाधान बातचीत से ही हुआ है। जंग की शुरुआत में यह बात किसी को समझ नहीं आती। सभी अपने-अपने अहं में डूब कर एक- दूसरे को परास्त करने की कोशिश में लग जाते हैं। पिछले दो सालों से वैश्विक स्तर पर ऐसा ही हो रहा है।
एक जंग खत्म हुई नहीं दूसरी शुरू हुई | Israel Hamas War
अभी रुस व यूक्रेन युद्ध जहां रुकने का नाम नहीं ले रहा है तो इसी बीच इजराइल व फिलिस्तीन के बीच नई जंग छिड़ गई। फिलिस्तीन समर्थित आतंकवादी संगठन हमास ने इसराइल पर ऐसे वक्त पर हमला बोला जब इजराइल के लोग यहूदियों के पवित्र त्यौहार सिमचत टोरा मना रहे थे। दोनों देशों के बीच यह संग्राम गाजा पट्टी नामक स्थान को लेकर चल रहा है। इस गाज़ा पट्टी नामक स्थान पर दोनों देश अपना-अपना दावा जताते आए हैं। वैसे तो इस गाज़ा पट्टी को लेकर विवाद चलते रहते है। पर 2021 में इसी मामले में इज़राइल व हमास के बीच 11 दिवसीय युद्ध हो चुका है। इस बार की जंग पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक है। हमास की बमबारी में रॉकेट दागे जाने से जहां इजराइल में भारी नरसंहार हुआ है। वहीं जवाबी कार्रवाई में फिलस्तीनी नागरिक भी इस युद्ध में जान गवां रहे हैं। हमास के हमले में तो इज़राइल की महिलाओं के साथ दरिंदगी के मामले भी सामने आ रहे हैं,जो इज़राइल के लिए ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर चिंता की बात है।
दो हिस्सों में बंटी दुनिया | Israel Hamas War
लड़ाई चाहे रूस-यूक्रेन युद्ध की हो या फिलिस्तीन-इज़राईल के बीच पर इसका नुकशान वैश्विक स्तर पर ही हो रहा है। फिलिस्तीन-इज़राईल के बीच जारी जंग के बीच एक तरफ जहां मुस्लिम देश दो धड़ो में बंटते नजर आ रहे हैं। तो वही पूरी दुनिया भी इस वक्त दो हिस्सों में बंट गई है। इससे पहले अफगानिस्तान पर 20 साल बाद तालिबानी कब्जे की घटना भी सभी को याद होगी। जब हथियाबंद तालिबानियों के सामने अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति को अपना देश छोड़ना पड़ा था तो वहीं अफ़ग़ानिस्तान सरकार की समर्थित संयुक्त राज्य अमेरिका को भी एक अल्टीमेट के बाद अफगानिस्तान से अपनी फौज हटानी पड़ी थी। तब तालिबानी जहां इस हमले को अपनी आजादी की लड़ाई मान रहे थे तो अमेरिका ने इस हमले को आतंकवादी हमला करार दिया। उसके बाद अपने ही देश की गिरती अर्थव्यवस्था के कारण श्रीलंका में भी घरेलू कलह हुई थी। श्रीलंका में वहां की जनता ने अपने राष्ट्रपति के खिलाफ लाखों की संख्या में एकत्रित होकर कई दिनों तक प्रदर्शन किए। तब श्रीलंका की आंतरिक सुरक्षा भी खतरे में रही। राष्ट्रपति को अपनी जनता के विरोध के चलते देश छोड़ना पड़ा था।
भारत व कनाडा के रिश्ते भी सही नहीं
वर्तमान में कई दिनों से भारत व कनाडा के बीच भी रिश्ते सही नहीं चल रहे है। जब कनाडा ने भारत की तरफ आँख उठाई तो भारत ने कनाडा के राजनयिकों को देश छोड़ने के आदेश देने पड़े। भारत व कनाडा के बीच भी अभी तक रिश्तों में सुधार नहीं आया है। जबकि कनाडा की कुल जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा भारत के मूल निवासी हैं। इसी बीच एक कलह सुलझी नहीं थी कि हमास ने इज़राइल पर हमला बोलते हुए हजारों की संख्या में रॉकेट दागे। देखते ही देखते इज़राइल ने अपनी सुरक्षा का हवाला देते हुए युद्ध की घोषणा कर दी। अपनी सुरक्षा करना सबका अधिकार भी है। इजराइल के समर्थन में वैश्विक महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका व भारत सहित विभिन्न देश आ चुके हैं।
सभी देशों के पास जमा है हथियारों का जखीरा | Israel Hamas War
यदि रूस-यूक्रेन युद्ध व इज़राइल-फिलिस्तीन युद्ध का शीघ्रता से समाधान नहीं निकाला गया तो वह दिन दूर नहीं जब यह जंग विश्व युद्ध के रूप में बदल सकती है। यहाँ यह भी याद रहे देश छोटा हो या बड़ा वर्तमान में सभी देशों के पास हथियारों का जखीरा है। जिस तरह से जंग में गोला बारूद का प्रयोग जारी है,इसे एक दूसरे देश पर दबाव की राजनीति कह सकते हैं। पर दबना कोई भी नहीं चाहता और ना ही पीछे हटना चाहता। क्योंकि युद्ध में आमने-सामने आने वाले देशों के लिए पीछे हटना नाक का सवाल बन जाता है।
इसलिए विश्व शांति के लिए आगे आना होगा
आमजन के बीच भी जब कभी छोटी से बड़े स्तर की लड़ाई हो जाती है तो इसका समाधान या तो कानूनी प्रक्रिया से होता है या फिर किसी तीसरे व्यक्ति या पंचायत की मध्यस्थता से होता है। यह भी सभी को याद होगा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1945 में विश्वशांति बहाली सहित सुरक्षा व आर्थिक मुद्दों को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया गया था। अब समय आ गया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे संगठनों को मध्यस्थता करते हुए इन देशों के बीच शांति बहाली के प्रयास करने चाहिए। हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ अपने स्तर पर सुरक्षा के इस अहम मुद्दे पर नजर बनाए हुए हैं। लेकिन दूसरी तरफ दुनिया की नजर भी संयुक्त राष्ट्र संघ पर टिकी हुई है।
वहीं उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन(नाटो) एक सैन्य गठबंधन है। इस संगठन ने भी सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है, जिसके अंतर्गत सदस्य राज्य/देश पर बाहरी आक्रमण की स्थिति में सहयोग करने के लिए सहमत होंगे,स्थापना के वक्त नाटो की मूल प्रस्तावना में ऐसा लिखा गया। लेकिन चिन्तनीय स्थिति यह है कि इसी नाटो संगठन में शामिल होने के नाम से ही रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है। हथियारों की जंग में रूस अपने आप में शक्तिशाली देश है। पर जिस पर आक्रमण किया जा रहा है, उसे भी कभी कमजोर नहीं माना जाना चाहिए। रूस की नाराजगी के बावजूद भी अमेरिका सहित विभिन्न देशों की मदद यूक्रेन को मिलती आ रही है।
शिक्षा के भी बिगड़े हालात
रूस-यूक्रेन युद्ध से वहां की जनता प्रभावित होने के साथ-साथ वैश्विक प्रभाव भी पड़े हैं। क्योंकि यूक्रेन को मेडिकल साइंस की पढ़ाई के लिए हब माना जाता है। विश्व के कोने-कोने से मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन का रुख अपनाने वाले अब अपना कोर्स पूरा करने के लिए मुंह तक रहे हैं। भारत से भी ऐसे हजारों बच्चे थे जो अपनी एमबीबीएस सहित विभिन्न प्रकार की मेडिकल साइंस की पढ़ाई करने के लिए यूक्रेन गए हुए थे। भारत सरकार के विशेष ऑपरेशन से इन बच्चों को वहां से सुरक्षित तो निकाल लिया गया था। पर उनके मेडिकल साइंस के सपने अभी भी अधूरे हैं।
24 घण्टे मंडरा रहे संकट के बादल
यहां सिर्फ एजुकेशन की ही बात नहीं है,बल्कि युद्ध की स्थिति में खाद्य आपूर्ति के साथ-साथ संबंधित देश की आंतरिक व बाह्य सुरक्षा दोनों पर 24 घंटे संकट मंडराता रहता है। संबंधित देश की जनता को हमेशा भय के साए में जीना पड़ता है। वर्तमान समय में वैश्विक चिंतन करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को मध्यस्थता करते हुए शांति बहाली की ओर आगे बढ़ना चाहिए नहीं तो इन युद्धों के भविष्य में भयंकर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
डॉ संदीप सिंहमार
वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार।