Nepal-China: चीन ने नेपाल के साथ 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें बुनियादी ढांचे, शिक्षा, कृषि और प्रौद्योगिकी पर जोर दिया गया है। नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड चीन के दौरे पर हैं। चीन नेपाल को बहुत उदारतापूर्वक प्रस्ताव दे रहा है। इसे जी-20 शिखर सम्मेलन की चर्चा की पृष्ठभूमि में समझा जा सकता है। जी-20 शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हिस्सा न लेकर अपने प्रतिनिधि को भेजा। वास्तव में जी-20 सम्मेलन के सफल आयोजन से भारत का कद बढ़ा है क्योंकि भारत संयुक्त घोषणा पत्र जारी करने में सफल रहा। Nepal-China
इसी तरह भारत की सिफारिश पर अफ्रीकी संघ को भी जी-20 में शामिल किया गया। भारत के बढ़ते प्रभाव ने कई पड़ोसी देशों को परेशानी में डाल दिया है। भारत के साथ चीन के रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं। कुछ मुद्दों पर चीन का रवैया भारत विरोधी बना हुआ है। चीन अरुणाचल और सिक्किम पर दावा करता रहा है। लद्दाख में चीनी सेना के हमले में 20 भारतीय जवान भी शहीद हो गए। कई कमांडर स्तर की बैठकों के बावजूद भी मामला पूरी तरह से सुलझ नहीं सका है। चीन हमेशा बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में अपनी पैठ मजबूत कर भारत को घेरने की कोशिश करता रहा है।
भारत ने भी चीन के प्रभाव को रोकने के लिए नेपाल सहित अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। नेपाल भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण देश है। यह भारत की कूटनीतिक सफलता है कि तमाम विवादों के बावजूद भारत ने नेपाल के साथ अपने रिश्ते मजबूत किए हैं। नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड को चीन समर्थक और कामरेड विचारधारा वाला नेता माना जाता था, लेकिन प्रचंड ने इस वर्ष मई-जून में भारत का दौरा कर यह बता दिया था कि नेपाल चीन का पिछलग्गू नहीं है। China-Nepal
प्रचंड की भारत यात्रा जहां भारत के लिए सकारात्मक रही, वहीं चीन ने अपनी पैठ मजबूत करने के लिए नेपाल के साथ 12 नए समझौते किए। इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन नेपाल में भारत के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रहा है। ताजा घटनाक्रम भारत के लिए एक नई कूटनीतिक तैयारी की मांग करता है। दरअसल, भारत-नेपाल संबंध केवल राजनीतिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक भी हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से नेपाल भारत के अधिक निकट है। भारत सरकार को इस पड़ोसी देश के साथ रिश्ते मजबूत करने के लिए कदम उठाने चाहिए। Nepal-China
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