G20 Summit: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व और सदस्यता में वृद्धि का मुद्दा एक अंतराल के बाद पुन: चर्चा में आ गया है। जी-20 की दिल्ली शिखर बैठक से पहले और उसके बाद यूएनएससी के भीतर सुधारों को लेकर जिस तरह से वैश्विक नेताओं की प्रतिक्रिया आ रही है, उससे लगता है वर्ल्ड लीडर इसे लेकर गंभीर है। G20 Summit
जी-20 समिट में शामिल होने के लिए नई दिल्ली आए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पीएम मोदी के साथ हुई द्विपक्षीय बैठक के दौरान कहा कि ग्लोबल गवर्नेस में ज्यादा लोगों की साझेदारी और प्रतिनिधित्व होना चाहिए। हम यूएनएससी में भारत को परमानेंट मेंबर बनाए जाने का समर्थन करते हैं। बैठक से पहले यूएन चीफ एंटोनियो गुटरेस ने भी कहा कि यूएनएससी की मेंबरशिप का फैसला उनके हाथ में नहीं है, लेकिन वो चाहते हैं कि यूएनएससी में सुधार हो और इसमें भारत भी शामिल हो। G20 Summit
और अब बैठक के बाद जिस तरह से पाकिस्तान के खास मित्र तुर्किये ने भारत का समर्थन किया है, उससे मामले की गंभीरता को समझा जा सकता हैै। तुर्किये के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन ने कहा कि अगर भारत जैसा देश यूएनएससी का स्थायी सदस्य बनता है, तो तुर्किये को गर्व होगा। दुनिया पांच से भी बड़ी है। हम सुरक्षा परिषद में सिर्फ इन पांच को नहीं रखना चाहते है। G20 Summit
भारत लंबे समय से यूएनएससी की परमानेंट सीट के लिए दावा कर रहा है
पिछले डेढ-दो दशकों से इस बात की चर्चा लगातार बल पकड़ रही है कि संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में कई बहुपक्षीय संस्थान बदलते हुए भू-राजनीतिक परिदृश्य में तालमेल बैठाने में असफल हुए हैं। ये संस्थान बड़ी शक्तियों के बीच आम सहमति विकसित करने और संघर्ष को रोकने में विफल रहे है। ऐसी ही एक संस्था संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिष्द अर्थात यूएनएससी है। ग्लोबल पर्सपेक्टिव में इस स्पेस को भरने के लिए हाल के दौर में कई वैकल्पि समूहों का उभार हुआ है। इनमें से कई ऐसे समूह है, जिनमें भारत न केवल शामिल है, बल्कि अहम भूमिका में है।
अब चूंकि, जी-20 शिखर बैठक की मेजबानी भारत के पास थी, और भारत लंबे समय से यूएनएससी की परमानेंट सीट के लिए दावा कर रहा है। भारत के अलावा, ब्राजील, जर्मनी और जापान भी स्थायी सदस्यता का दावा कर रहे हैं, लेकिन ‘कॉफी क्लब‘ (यूएनएससी में सुधार का विरोध करने वाले राष्ट्रों का अनौपचारिक समूह) के अड़ियल रूख के कारण इन देशों को परमानेंट सीट नहीं मिल पा रही है। ऐसे में यह पहले से ही तय था कि दिल्ली शिखर बैठक के दौरान भारत इस मुद्दे को प्रमुखता के साथ उठाएगा। भारत ने ऐसा किया भी।
दरअसल, 1945 में जिस समय संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई थी उस समय संयुक्त राष्ट्र में 51 और सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी और छह निर्वाचित अस्थायी कुल 11 सदस्य थे। साल 1965 में महासभा ने संकल्प 1991 पारित कर चार्टर में संशोधन करते हुए अस्थायी सदस्यों की संख्या 6 से बढ़ाकर 10 कर दी और सदस्य देशों को भौगालिक आधार पर प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान किया गया। ये बदलाव एक सीमा तक तो उपयोगी साबित हुआ लेकिन पी-5 (पांच परमानेंट सदस्य) की वीटो पावर में संशोधन न किए जाने के कारण सुधार की पूरी कवायद बेकार हो गई ।
संयुक्त राष्ट्र 1945 में बनाया गया एक ‘फ्रोजेन मैकेनिज्म‘ बन कर रह गया
यूएनएससी में न्यायसंगत प्रतिनिधित्व का सवाल और सदस्यता में वृद्धि का मुद्दा यूएन की वार्षिक बैठकों में हमेशा उठता रहा है। भारत सहित दुनिया के कई अन्य देश इस बात की मांग करते आए हैं कि बदलती वैश्विक व्यवस्था के अनुरूप यूएनएससी में सुधार कर भारत, ब्राजील, जापान और जर्मनी को स्थायी सदस्य बनाया जाए। लेकिन महासभा आज तक किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पायी है। इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले छह दशकों से चार्टर में सुधार को लेकर कोई कदम नहीं उठाया जा सका है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी वॉयस आॅफ द ग्लोबल साउथ समिट में कहा था कि संयुक्त राष्ट्र 1945 में बनाया गया एक ‘फ्रोजेन मैकेनिज्म‘ बन कर रह गया है। एस. जयशंकर ने तो यहां तक कह दिया है कि यूएनएससी पांच लोगों की तरह है, जो ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठे हैं, और नहीं चाहते कि अन्य लोग उसमें प्रवेश करें। उन्होंने टिकट की कीमत बढ़ाने और अन्य प्रतिबंध जैसी बाधाएं डाल दी है। सच तो यह है कि यूएन में सुधार की भारत की मांग को यूएनएससी की स्थायी सदस्यता पाने की आकांक्षा से जोड़कर देखा जाता रहा है। इसका परिणाम यह हुआ कि अलग-अलग मौकों पर विभिन्न देश संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता दिलाने में भारत को समर्थन का आश्वासन तो देते रहे है, लेकिन वे इस मसले पर गंभीर नहीं हुए है। G20 Summit
आज भारत 1945 वाला भारत नहीं है | G20 Summit
जहां तक यूएनएससी में भारत की स्थायी सदस्यता का सवाल है, मैं समझता हूं भारत को इस मामले में ज्यादा लामबंदी की जरूरत नहीं है। क्योंकि आज जहां भारत खड़ा है, वहां उसे यूएनएससी की नहीं बल्कि यूएनएससी को भारत की जरूरत होनी चाहिए। आज भारत 1945 वाला भारत नहीं है। आज वह दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करता हैं। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी ताकत और चांद के दक्षिणी धू्रव पर पहलकदमी करने वाला पहला देश बन चुका है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को गंभीरता से लिया जाता है।
सार्क, आसियान, बिम्सटेक, एससीओ, ईब्सा, ब्रिक्स, क्वाड, जी-20 जैसे संगठन वर्तमान वैश्विक व्यवस्था को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं, भारत इन संगठनों में अहम भूमिका में है। ऐसे में यूएनएससी की परमानेंट सीट पर भारत का होने का मतलब यूएनएससी के सम्मान में वृद्धि होना है। दूसरा, जिस तरह से पूरी यूएनएससी पर पी-5 देशों का नियंत्रण है, उसे देखते हुए भी भारत जैसे बड़े देश के लिए यह आकर्षण का कोई खास केन्द्र नहीं होना चाहिए।
जब तक यूएन चार्टर में परिवर्तन कर वीटो प्रक्रिया को वोटिंग प्रकिया में नहीं बदला जाता तब तक सुरक्षा परिषद् से उसकी वास्तविक भूमिका की उम्मीद नहीं की जा सकती है। यूके्रन युद्ध ने इस अंतरराष्ट्रीय संस्था की बढ़ती हुई अप्रासंगिकता को एक झटके में उजागर कर दिया। पूरी दुनिया गवाह है कि कैसे यूएनएससी के एक परमानेंट मैम्बर (रूस) ने अपने पड़ोसी देश पर आक्रमण किया उसकी क्षेत्रीय अखंडता से खिलवाड़ किया और दुनिया की ‘पुलिस मैन’ कहलाने वाली संस्था मूकदर्शक बनी रही। G20 Summit
संक्षेप में कहें तो बहुधु्रवीय विश्व व्यवस्था में आज भी कुछ देश इस मुगालते में हैं कि दुनिया उनकी जेब में है, और वे इसको जैसे चाहे चला सकते हैं। लेकिन अब जी-20 के नए अध्यक्ष ब्राजील ने यूएनएससी में सुधार को लेकर किसी रोडमैप तक पहुंचने की बात कही है, उसे देखते हुए लगता है कि निकट भविष्य में शायद यूएनएससी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अनुरूप व्यवहार करती दिखे। G20 Summit
डॉ. एन.के. सोमानी, अंतर्राष्टÑीय मामलों के जानकार
(यह लेखक के अपने विचार हैं)