सामान्य ट्रायल के बाद चुने हुए विद्यार्थियों को खेल अध्यापक के द्वारा अभ्यास करवाया जाना था ताकि प्रतियोगिता में ज्यादा से ज्यादा पुरस्कार जीत सकें।
(Little Genius) जीवन के पापा का फिर तबादला हुआ, इसलिए नई जगह जाकर स्कूल में दाखिला लिया गया। नए दोस्त बनने लगे। सोहन जीवन का सहपाठी था। उसकी और जीवन की मित्रता होते देर नहीं लगी। पढ़ाई में दोनों अच्छे थे। दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे, उनकी आपस में खूब पटने लगी थी। कुछ ही महीनों में उनके परिवार भी एक-दूसरे को जानने लगे, मिलने-जुलने लगे। उनके सहपाठियों में उनकी मित्रता ने पहचान बना ली। अध्यापक किसी काम को कहते तो वे दोनों लपककर उसे करने को तैयार रहते।
स्कूल में सहज प्रतिस्पर्धा का माहौल होता ही है। कुछ दिन बाद स्कूल में वार्षिक खेल प्रतियोगिता का आयोजन होना था। उसके बाद स्कूल के खिलाड़ियों का एक समूह तैयार किया जाना था, जिसे कुछ महीने बाद शिमला में आयोजित होने वाली अंतर्विद्यालय खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेना था। अध्यापकों के कहने पर सभी कक्षाओं के इच्छुक विद्यार्थियों ने अपने नाम लिखवाए। सामान्य ट्रायल के बाद चुने हुए विद्यार्थियों को खेल अध्यापक द्वारा अभ्यास करवाया जाना था ताकि प्रतियोगिता में ज्यादा से ज्यादा पुरस्कार जीत सकें। खेल या शौक के सन्दर्भ में सभी की रूचियां समान नहीं होतीं। जीवन की दिलचस्पी खेलों में कम डांस, पेंटिंग और डिबेट में ज्यादा थी। सोहन के कहने पर वह ट्रायल में चला तो गया, लेकिन क्वालिफाई नहीं कर पाया। सोहन पहले से खेलता था, सफल रहा और अन्य विद्यार्थियों के साथ अभ्यास के लिए जाने लगा। Little Genius
अब सहपाठी जीवन को यह कहकर चिढ़ाने लगे कि तुम्हारा मित्र तुमसे आगे निकल गया। तुम्हें खेलना नहीं आता, अब तो तुम्हारी दोस्ती खत्म। जीवन ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया, चुपचाप सुनता रहा। शाम को घर पहुंचकर उसने अपनी मम्मी से बात की। स्कूल की बातें वह रोजाना मम्मी से शेयर करता था।
मम्मी उसे उचित सुझाव देती थीं। इस बार भी पूरी बात सुनकर मम्मी ने कहा, ‘देखो बेटा, संसार में सब एक जैसे नहीं होते। यह जरूरी नहीं कि हर विद्यार्थी, हर काम करे या सभी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर
पुरस्कार जीते। एक बच्चा एक काम में बेहतर होता है, दूसरा किसी दूसरे काम में किसी की दिलचस्पी फुटबॉल तो किसी की टेबल टेनिस में होती है।
वहीं दूसरे की मिमिक्री या चित्रकारी में, हां अगर हम कोशिश करें तो….
‘मैं किसी खेल में भी कोशिश करना चाहता हूं’ जीवन ने कहा। ‘हां, क्यों नहीं, कुछ सीखने या करने की अगर ठान लो तो क्या मुश्किल है? तुम्हारे दादा कहा करते थे ‘मेहनत का रास्ता मुश्किल है, मगर यह हर मुश्किल का हल है।’
सोहन खेल प्रतियोगिता से लौटकर आया तो कक्षा और स्कूल में उसकी चर्चा होती रही, क्योंकि वह तीन इनाम जीतकर लाया था। जीवन ने जाकर उसे बधाई दी, लेकिन पता नहीं क्यों उसने अच्छे से बात नहीं की। संभवत: उसे सफलता का अभिमान हो गया था। Little Genius
जीवन को यह अच्छा नहीं लगा। उसने फिर मम्मी से बात की, उस दिन पापा भी वहीं बैठे हुए थे। उन्होंने कहा, ‘अच्छे मित्रों को ऐसा नहीं करना चाहिए। सफलता का अभिमान नहीं करना चाहिए। भविष्य में कोई और कोशिश करेगा तो वह भी जीत सकता है।’
जीवन ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह खेलों में भी हिस्सा लेगा। इस बारे में उसने पापा से कहा तो उन्होंने समझाया, ‘खेलना भी जरूरी है बेटा, ताकि हमारा शरीर स्वस्थ रहे, स्वस्थ शरीर से ही सब कुछ संभव है, लेकिन यह जरूर समझना चाहिए कि जीवन में जो कुछ भी हमें मिलना है, वह पढ़ाई के दम पर ही मिलना है। पहले पढ़ाई, बाकी सब बाद में । हां, अगर आप खेल में दिलचस्पी रखते हो तो जरूर खेलना चाहिए।’
जीवन को बैडमिंटन देखना अच्छा लगता था, उसने पापा से कहा, ‘मुझे तो बैडमिंटन पसंद है, आप भी तो यही खेलते हो, क्या मैं कल से, आपके साथ बैडमिंटन सीखने क्लब चल सकता हंू?’ पापा उसको सहयोग देने को तैयार थे, बोले, ‘कल से क्यों बेटा, आज से ही क्यों नहीं? मेरे पास एक एक्स्ट्रा रैकेट है, उसे ले लो, थोड़ी देर बाद चलते हैं।’
कुछ ही देर बाद जीवन और उसके पापा दोनों खेलने निकल पड़े। मम्मी ने खुश होकर दोनों को ‘आॅल द बेस्ट’ कहा। वह जानती थीं कोशिश, सफलता की पहली सीढ़ी होती है। Little Genius
यह भी पढ़ें:– Indian Railway : रेलवे में बड़े क्रांतिकारी सुधार की उम्मीद