National Education Policy: शिक्षा ज्ञान रूपी ऐसा हथियार है, जिसके बल पर कोई भी देश उन्नति की ओर अग्रसर होता है। पर जिस प्रकार किसी भी हथियार को चलाने के लिए विशेष ट्रेनिंग की जरूरत होती है,उसी प्रकार नई शिक्षा नीति को देशभर में लागू करने के लिए बेहतर प्रशिक्षण की व्यवस्था करने की सख्त जरूरत है। पुराने ढर्रे पर चल रही प्रशिक्षण व्यवस्था नई शिक्षा नीति लागू करने में सबसे बड़ी बाधा बन रही है। आज भारत देश चाहे नई शिक्षा नीति बनने के 3 वर्ष पूरे कर रहा हो, इस उपलक्षय में दिल्ली में प्रगति मैदान में अखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन भी चल रहा है। इस शिक्षा सम्मेलन का उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने किया, यह अच्छी बात है।
वास्तव में यह पल देशभर के लिए किसी बड़ी खुशी से कम नहीं है। लेकिन नई शिक्षा नीति में जिस कौशल विकास की बात कही गई है, उसे लागू करना देशभर के शिक्षण संस्थानों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है। यह चुनौती सिर्फ और सिर्फ ट्रेनिंग की वजह से है, क्योंकि हमारे देश में नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार कर इसे लागू करने के लिए राज्यों को दे दिया गया है। पर इसे लागू करने वाले शिक्षकों को नई शिक्षा नीति की ट्रेनिंग कैसे दी जाएगी, इसकी व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है? दूसरी तरफ पहले से ही देश के सभी जिलों में जिला स्तर पर चल रहे प्रशिक्षण संस्थानों में वही पुराने शिक्षक वही पुराना ढर्रा है। इसमें अभी तक कोई बदलाव न कर पाना चिंता का विषय है। यदि वर्तमान स्थिति की बात करें तो नई शिक्षा नीति के तहत प्रशिक्षण की व्यवस्था अभी तक देशभर के कुछ ही शिक्षण संस्थान व विश्वविद्यालय कर पाए हैं। सिर्फ इतना बदलाव देखने को मिला है। National Education Policy
डिप्लोमा इन एजुकेशन व बैचलर इन एजुकेशन के स्थान पर नई शिक्षा नीति के कोर्स लागू किए जा रहे हैं। लेकिन 90 फीसदी शिक्षण संस्थानों में अभी भी डिप्लोमा इन एजुकेशन, बैचलर इन एजुकेशन व मास्टर इन एजुकेशन उन्हीं पुराने तौर-तरीकों से चलती आ रही है, जो वर्षों पुराने हैं। ऐसी स्थिति में प्रशिक्षण संस्थानों में जहां से देश भर के भावी शिक्षक प्रशिक्षण लेते हैं, उनके शिक्षकों को पहले प्रशिक्षण देने की सख्त जरूरत है। जब तक उन्हें नई शिक्षा नीति के बारे में विवरणात्मक रूप से नहीं पता होगा तब तक वे भावी शिक्षकों को उचित ट्रेनिंग नहीं दे सकेंगे। देश की राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में राष्ट्रीय स्तरीय आखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन चल रहा है। उससे इस सम्मेलन में आने वाले शिक्षकों व विद्यार्थियों को फायदा तो मिलेगा। लेकिन जब तक प्रशिक्षण के लिए बनाए गए सभी शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों को शिक्षा नीति के अनुरूप प्रशिक्षित नहीं किया जाएगा तब तक नई शिक्षा नीति के फायदों की उम्मीद नहीं की जा सकती। National Education Policy
नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार होने के बाद लागू करने की प्रक्रिया देशभर के राज्यों में इसी प्रकार चलती रहेगी। पर इस नई शिक्षा नीति को मूर्त रूप देने के लिए देश के शिक्षा मंत्रालय व राज्यों के शिक्षा मंत्रालयों को प्रशिक्षण व्यवस्था के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। नई शिक्षा नीति के अनुरूप एक ट्रेनिंग सेल का गठन कर आॅनलाइन या आॅफलाइन मोड में शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट भविष्य की शिक्षा के लिए बहुत अच्छा तैयार किया गया है। यदि इस शिक्षा नीति के नियमों के तहत पढ़ाई करवाई जाए तो वास्तव में भारत देश की तस्वीर बदल सकती है। क्योंकि यही एक ऐसी शिक्षा नीति है,जिसमें विद्यार्थियों को अपने बलबूते पर अपनी मर्जी के अनुसार विषय चुनने की इजाजत दी गई है। पर इस बात का भी ख्याल रखना होगा जो विद्यार्थी भविष्य में शिक्षक बनना चाहते हैं,उनके विषय संयोजन पर भी ध्यान देना होगा।
विषय संयोजन के बिना शिक्षक बनने की चाह अधूरी रह सकती है। नेशनल काउंसिल फॉर एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग द्वारा करवाए गए एक सर्वे के अनुसार देशभर में 60 फीसदी भावी शिक्षक ऐसे हैं, जिन्होंने स्नातक स्तरीय डिग्री हासिल करने के बाद डिप्लोमा इन एजुकेशन या बैचलर इन एजुकेशन तो उत्तीर्ण कर ली है, पर उनके पास जानकारी ना होने की वजह से सब्जेक्ट संयोजन नहीं है। यही सब्जेक्ट संयोजन शिक्षक बनने के लिए सबसे बड़ी बाधा बन जाती है।
उदाहरण के तौर पर यदि किसी को सामाजिक विज्ञान का अध्यापक बनना है तो उसके पास इतिहास व भूगोल में से कोई एक विषय होना अनिवार्य है। इसके अलावा इतिहास,भूगोल, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीतिक विज्ञान व लोक प्रशासन में से दूसरा विषय चुनना होता है। यदि किसी भी शिक्षक के पास इन विषयों का संयोजन नहीं है तो वह जब तक शिक्षक नहीं बन सकता जब तक वह अपने सब्जेक्ट का संयोजन पूरा नहीं करता। अब यहां बात आती है सब्जेक्ट संयोजन कैसे बने? ऐसे विद्यार्थी जिनके पास सब्जेक्ट कंबीनेशन नहीं होता उन्हें दोबारा फिर एडिशनल तौर पर स्नातक स्तरीय पढ़ाई करनी पड़ती है। इसके बाद जाकर वे शिक्षक पद के लिए योग्य माने जाते हैं।
ऐसा हम नहीं बल्कि हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था कह रही है। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने पूरे देश के लिए ऐसे नियम बनाए हैं। इसी नियम को वर्तमान में केंद्र सरकार लागू भी कर चुकी है। स्वायत्त संस्थाएं केंद्रीय विद्यालय संगठन व नवोदय विद्यालय संगठन जैसे स्कूलों में भी शिक्षकों की भर्ती इसी एजुकेशन सिनेरियो के अनुसार हो रही है। यही एक सबसे बड़ी बात है जो भी भावी शिक्षक को बनना चाहता है,उसे बारहवीं/इंटर स्तर पर ही संयोजन के सब्जेक्ट दिए जाने चाहिए ताकि भविष्य में उसे किसी भी प्रकार की समस्या का सामना ना करना पड़े। शनिवार को देश की राजधानी दिल्ली में शिक्षा सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर बल दिया की शिक्षा से ही देश का भाग्य बदलेगा।
उनकी यह बात 100 फीसदी सही है। पर बात घूम कर वहीं आती है। प्रशिक्षण… जब तक देश भर के शिक्षण महाविद्यालयों में नई शिक्षा नीति के अनुरूप प्रशिक्षित शिक्षक नहीं होंगे, तब तक नई शिक्षा नीति को लागू करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। भारत देश के पहले विधि मंत्री बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने भी यह बात कही थी कि शिक्षा वह शेरनी का दूध है, जिसे जो पिएगा वही दहाड़ेगा। पर यह शेरनी का दूध मिले कैसे? पहली बात तो प्रशिक्षण नहीं है। दूसरी बात वर्तमान में शिक्षा प्रतिवर्ष महंगी होती जा रही है। महंगी शिक्षा गरीब तबके के लोगों व मध्यम स्तर के लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही है। जब तक आमजन की पहुंच में शिक्षा नहीं होगी, तब तक शिक्षा को पाना बड़ा ही मुश्किल कार्य है। National Education Policy
डॉ. संदीप सिंहमार, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)
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