प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) की फ्रांस की दो दिन की यात्रा संपन्न हो गई है। पेरिस पहुंचने पर लेस इकोस को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने अपनी यात्रा के प्रयोजन और उनके तथा फ्रांस के राष्ट्रपति एमानुएल मैक्रो के बीच होने वाली वार्ता की रूपरेखा को रेखांकित किया। इस लेख को लेखते समय प्रधानमंत्री की फ्रांस यात्रा संपन्न हो गई है। पेरिस पहुंचने पर फ्रांस के प्रधानमंत्री अलीसाबेथ बोर्न ने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया। उसके बाद उनका औपचारिक स्वागत किया गया और गार्ड आॅफ आॅनर दिया गया। उन्होंने सीनेट के प्रेजीडेंट गेरार्ड लैचर से भी मुलाकात की। Narendra Modi
संयुक्त राज्य अमेरिका की आधिकारिक यात्रा के तरंत बाद मोदी की इस फ्रांस यात्रा को रणनीतिक माना जा रहा है। भारत-फ्रांस रणनीतिक साझीदारी के 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं और मोदी ने फ्रांस के समाचार पत्र को दिए गए अपने साक्षात्कार मे कहा कि भारत-फ्रांस संबंध अगले 25 वर्षों के लिएसुदृढ होंगे और हम इन संबंधों की स्वर्ण जयंती की ओर बढ रहे हैं। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था को पुनर्गठित करने पर बल दिया।
उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में ग्लोबल साउथ को उसका उचित स्थान नहंी दिया गया है। पश्चिम और ग्लोबल साउथ के बीच खाई बढती जा रही है। मोदी ने इस बात पर भी प्रश्न उठाए कि विश्व के मामलों को सर्वशक्तिमान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा संचालित किया जा रहा है और इसमें विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भारत स्थाई सदस्य के रूप में शामिल नहंी है। भारत की अंतर-निहित शक्ति लोकतंत्र और विविधता को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने प्रस्ताव किया कि भारत पश्चिम और ग्लोबल साउथ के बीच एक सेतु का कार्य कर सकता है।
फ्रांस ने प्रधानमंत्री मोदी को असाधारण सम्मान दिया | Narendra Modi
भारतीय मूल के लोगों को एक सभागार में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि तमिल विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। उन्होंने वहां उपस्थित लोगों के समक्ष घोषण् की है कि तमिल के प्रसिद्ध कवि तिरूवल्लूर की प्रतिमा फ्रांस में स्थापित की जाएगी। उन्होंने कहा कि तमिलनाडू के इस महान संत और कवि की प्रतिमा को फ्रांस में स्थापित करना भारत का सम्मान होगा। उन्होंने कहा कि यह बड़े गौरव की बात है कि विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा भारतीय है। फ्रांस ने प्रधानमंत्री मोदी को प्रसिद्ध बैस्टिल डे समारोह में मुख्य अतिथ बनाकर उन्हें असाधारण सम्मान दिया है।
भारतीय प्रधानमंत्री को इस तरह का सम्मान देने के अलावा इस समारोह में भारत की तीनों सेनाओं का एक दल भी सैन्य परेड में भाग लेगा। भारतीय वायु सेना के तीन विामनों का एक दस्ता फ्लाई पास्ट परेड में भाग लेगा और इस सबको देखते हुए मोदी ने कहा कि यह यात्रा विशेष है। फ्रांस के मीडिया से मोदी की बातचीत से यह लगता है कि उनकी इस यात्रा का उद्देश्य रक्षा साझीदारी को बढाना है। अपनी यात्रा से पूर्व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि रक्षा खरीद परिषद ने फ्रांस से 26 राफेल-एम लड़ाकू विमानों की खरीद को स्वीकृति दी है। इन युद्धक विमानों को विमानवाहक पोत से संचालित किया जा सकता है। Narendra Modi
इसके अलावा फ्रांस से तीन और स्कोर्पीन क्लास डीजल इलेक्टिक पनडुब्बियां भी खरीदी जाएंगी। प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान यह एक बड़ा रक्षा सौदा है। मोदी की यात्रा के दौरान अन्य रक्षा सौदे भी किए गए। उन्होंने पांचवीं पीढी के उन्नत मीडियम लड़ाकू विमानों के लिए फाइटर जेट इंजन का संयुक्त विकास और विमानवाहक पोत से संचालित युद्धक विमानों के लिए ट्विन इंजन जेट आधारित विमानों का विकास भी शामिल है। रक्षा मंत्रालय का कहना है कि ये सौदे आत्मनिर्भ्ज्ञर भारत के उददेश्यों और दोनों देशों के उद्योगों और कारोबार के बीच आपूर्ति श्रृंखला के समेकन हेतु सुरक्षा साझीदारी की पुनर्गठन की दिशा में किए जा रहे हैं।
भारत-फ्रांस साझीदारी के द्विपक्षीय सहयोग में अनेक आयाम और रणनीतिक कारक हैं और इनमे ंसबसे महत्वपूर्ण रक्षा, असैनिक, परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष, साइबर सिक्योरिटी, अक्षय उर्जा, आतंकवादरोधी कदम, खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान आदि शामिल है। द्विपक्षीय संबंध सुदृढ पारस्परिक विश्वास और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर साझी सोच पर आधारित है। ऐसे बढते पारस्परिक विश्वास के चलते भारत और फ्रांस द्विपक्षीय साझीदारी से वैश्विक चुनौतियों का सामना करने की दिशा में बढ रहे हैं। Narendra Modi
मोदी ने इस बात पर बल दिया कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के बारे में उनके दृष्टिकोण से फ्रांस के राष्टपति भी सहमत हैं। इसके अलावा भारत और फ्रांस हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में सुरक्षा के बारे में भी बातचीत कर रहे हैं और क्वाड की स्थापना के बाद चीनी नेतृत्व की नाराजगी के बाद इस ओर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान गया है। भारत और फ्रांस इस क्षेत्र में सामुद्रिक अर्थव्यवस्था, सामुद्रिक प्रौद्योगिकी, मत्स्य पालन, पत्तन और नौवहन की दिशा में कार्य करना चाहते हैं।
राष्ट्रपति मैक्रो ने फ्रांस की हिन्द प्रशान्त रणनीति को रेखांकित किया जिसमें ये उक्त बातें शामिल थी। भारत के हित फ्रांस की रणनीति से मेल खाते हैं क्योंकि भारत स्वतंत्र, खुला, समावेशी, नियम आधारित हिन्द प्रशान्त क्षेत्र के पक्ष में हैं जो उसके आर्थिक विकास और वैश्विक समुदाय के लाभ के लिए आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि इस इस वर्ष 8 जून को भारत फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात की नौसेनाओं ने ओमान की खाड़ी में त्रिपक्षीय अभ्यास किया।
इस अभ्यास का उद्देश्य सामुद्रिक सुरक्षा सुदृढ करना और तीनों देशों की नौसेनाओं के बीच समन्वय स्थापित करना था। भारत और फ्रांस अन्य देशों में भी परियोजनाओं पर कार्य कर रहे हैं। उदाहरण के लिए वर्ष 2021 में हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में सामुदिक सुरक्षा और सामुद्रिक अर्थव्यवस्था पर ध्यान केन्द्रित करते हुए भारत, फा्रंस और आस्ट्रेलिया की त्रिपक्षीय साझीदारी शुरू की गई। भारत और फ्रांस की रणनीतिक साझीदारी सुुदृढ़ होती जा रही है। हिन्द प्रशानत क्षेत्र में फा्रंस की उपस्थिति उनके द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने के साथ साथ उसे एक चुनौतीपूर्ण आयाम भी प्रदान करते हैं।
दोनों नेताओं की बातचीत के दौरान अपने-अपने देशों में धर्मनिरनपेक्षता को बनाए रखने की चुनौती पर भी चर्चा हुई। धर्मनिरपेक्षता को फा्रंसीसी भाषा में लाइसाइट कहा जाता है जिसका मतलब है राज्य से चर्च का पृथक रहना और इसका मूल फं्रासीसी भाषा है तथापि दोनों देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों को लेकर तनाव बढ़ रहा है। दोनों नेताओं के लिए उपयुक्त होगा कि वे इस समस्या के समाधान के लिए अपने अनुभवों को साझा करें। हालांकि सदंर्भ अलग-अलग हैं किंतु धार्मिक उपद्रव के परिणाम एक जैसे होते हैं। Narendra Modi
भारत और फ्रांस अपने सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक नीतियों में नए प्रयोग कर अपने बहुलवाद का पुनर्निर्माण करेंगे। कुल मिलाकर मोदी की यात्रा से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध और सुदृढ़ होंगे और इसके चलते वे विश्व के मामलों में साझा रूख अपना सकते हैं। यूरोपीय संघ ने हाल ही में एक संकल्प पारित कर भारत सरकार से कहा है कि वह मणिपुर हिंसा पर तत्काल अंकुश लगाए। इस मुद्दे पर भारत ने यूरोपीय संघ से वार्ता करने से इंकार कर दिया है। यह सच है कि इस बारे में यूरोपीय संघ का रूख तकनीकी रूप से एक संप्रभु देश के आंतरिक मामलो में हस्तक्षेप के समान है।
वर्ष 2002 में गुजरात दंगों के समय भी ऐसा किया गया। तथापि भारत को कोई ऐसा अवसर नहीं देना चाहिए कि कोई बाहर की शक्तियां उसके आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करे। फ्रांस धार्मिक मामलों या विशेष आर्थिक संधि जिसके बारे में अभी वार्ता चल रही है, के संबंध में भारत और यूरोपीय संघ के बीच मतभेदों को सुलझाने में सहायता कर सकता है।
डॉ. डीके गिरी, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)