Delhi Flood: वैसे हर बारिश में गांव हो या शहर कमोबेश नए संघर्ष की यात्रा कर ही लेते हैं, मगर इस बार मामला कुछ ज्यादा जटिल रहा। हिमाचल, उत्तराखंड सहित कई पहाड़ी राज्यों के साथ मैदानी इलाके भी हालिया बारिश और बाढ़ (Flood) से अच्छी खासी तबाही से जूझ रहे हैं। इसी तबाही का शिकार फिलहाल दिल्ली भी है। रिकॉर्ड तोड़ बारिश और यमुना के जल स्तर का रिकॉर्ड स्तर जिस तरह टूटा है उससे दिल्ली में केवल आमजन तक ही नहीं बल्कि मंत्रियों और सांसदों के घर तक बारिश का पानी पहुंचा है।
वैसे देखा जाए तो दिल्ली पहली बार न तो त्रस्त हुई है न त्रासदी देखी है बल्कि यह लगभग हर साल के मौसम में कम-ज्यादा होता रहा है। हां, यह बात और है कि इस बार दिल्ली की सड़कें ताल-तलैया और पोखर में तब्दील हो गए। सवाल है कि जिस दिल्ली में दो सरकारें रहती हैं, जो देश की आबोहवा को बदलने की ताकत रखती है वह दिल्ली बारिश के चलते खुद डूबती दिखी। गौरतलब है कि दिल्ली की आबादी दो करोड़ से अधिक है और 1947 में यहां महज सात लाख की जनसंख्या थी। समय के साथ बढ़Þती आबादी और निर्माण कार्यों में तेजी आई और एक मेगा शहर का स्वरूप अख्तियार करते हुए दिल्ली इमारतों, सड़कों, रिहायशी भवनों, कल-कारखानों और बड़े-बड़े ओवर ब्रिज से बोझिल हो गई और इसी निरंतरता के साथ जन घनत्व में भी प्रसार हुआ, मगर कई समस्याओं ने इसे चारों तरफ से घेर भी लिया।
1976 की बनी जल निकासी की योजना ज्यों की त्यों
मसलन कचरे का ढ़ेर, ई-कचरा, जल निकासी की समस्या आदि ने एक नए तरीके की पीड़ा भी इस दिल्ली को दी है। कहा जाता है कि दिल्ली के जल निकासी के लिए जो योजना 1976 में बनायी गई थी वही आज भी निरंतरता लिए हुए है। खास यह है कि इसे महज 20 साल के लिए बनाया गया था जो लगभग 50 साल पूरे कर रही है। अब यह बात समझना सहज है कि दिल्ली बारिश में क्यों हाफने लगती है।
हालिया स्थिति को देखें तो दिल्ली में आया जल प्रलय योजनाकारों और सरकारों दोनों पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। दिल्ली के कई इलाकों में यमुना के बढ़ते पानी के कारण बाढ़ की स्थिति पैदा हो गयी। यमुना का जल स्तर 208 मीटर से अधिक का छलांग लगाते हुए रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया है। आईटीओ, निगमबोध घाट, कश्मीरी गेट सहित कई इलाकों में जल भराव तीन फिट से ऊपर चला गया जिसके चलते सरकारें अलर्ट मोड में चली गयी। निचले इलाकों से लोगों को निकाला जा रहा है।
देखा जाये तो 1978 के बाद पहली बार यमुना का जलस्तर इतना बढ़ा। जान-माल का काफी नुकसान हो रहा है, लाल किले में भी यमुना का पानी घुस गया। मेट्रो को भी कुछ इलाकों में बंद करना पड़ा, सड़कों पर लम्बा जाम इत्यादि समस्याएं यह बताती हैं कि दिल्ली पानी-पानी तो खूब हुई हैं और इसके पीछे बेतरजीब तरीके से हुई बसावट, सरकार की घोर लापरवाही तथा इंतजाम की कमी देखी जा सकती है। यमुना के निचले इलाकों में 37 हजार से अधिक अवैध बाशिंदे हैं जिन्हें विस्थापित करना स्वाभाविक है। यमुना के जल स्तर के बढ़ने के पीछे हथिनीकुण्ड बैराज से पानी छोड़ना भी है यह बैराज हरियाणा में है। Delhi Flood
दिल्ली की सड़कों पर नाव चला करेंगी
वैसे बैराज से पानी छोड़ा जाना हर बारिश में अपने ढंग की आवश्यकता है। दूसरा बड़ा कारण यहां की बूढ़ी हो चुकी जल निकासी व्यवस्था है। दिल्ली के ड्रेनेज सिस्टम के साथ 11 विभाग शामिल हैं जिन्हें एक मेज पर बैठकर नया मास्टर प्लान तैयार करना ही होगा। यदि ऐसा नहीं सम्भव हुआ तो दिल्ली की सड़कों पर कार और मोटरगाड़ी की बजाये नाव चला करेंगी। फिलहाल दिल्ली पुलिस ने बाढ़ प्रभावित इलाकों में धारा 144 लागू कर दी है। वैसे देखा जाये तो यह चौथी बार है जब यमुना का जलस्तर 207 मीटर के पार पहुंचा है।
भारी बारिश के चलते उत्तर भारत में ट्रेन का आवागमन भी बेपटरी हुआ है। 500 से अधिक ट्रेने आंशिक व पूर्ण रूप से रद्द हो चुकी हैं। टिकट रद्द होने और रिफण्ड के चलते रेलवे भी घाटे की ओर अग्रसर है। हालांकि ऐसे मौके कई बार रहे हैं और मौसम ठीक होने की स्थिति में ट्रेनें फिर पटरी पर दौड़ती रही हैं। खास यह भी है कि एक ओर जहां हिमाचल और पंजाब में बाढ़ से हालत गम्भीर है और दिल्ली में भी बारिश और बाढ़ ने नई समस्या खड़ी की है। वहीं झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में बारिश की कमी महसूस कर रहे हैं।
पूरे भारत के पड़ताल किया जाये तो अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और तमिलनाडु को देखा जा सकता है। देखा जाये तो ये 8 राज्य इन दिनों बारिश से बेहाल हैं जबकि देश के 11 ऐसे राज्य जो कम बारिश से युक्त हैं। बिहार में बारिश सामान्य से 33 फीसद कम है और किसान इस कमी से परेशान हैं साथ ही गर्मी और उमस की समस्या बरकरार है। झारखण्ड में मानसून कमजोर रहा हालांकि आगे सक्रियता बढ़ने की सम्भावना है। झारखण्ड में 43 फीसद और ओडिशा में 26 प्रतिशत कम बारिश दर्ज हुई है। असम को छोड़ दिया जाये तो पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में मानसूनी बादल कम ही बरसे हैं।
हरियाणा के 9 जिलों के 6 सौ गांव में पानी भर गया | Delhi Flood
फिलहाल 12 जुलाई तक हुई 4 दिन की बारिश से देश के अंदर सौ से ज्यादा की बाढ़ और बारिश से मौत हुई। 10 हजार से अधिक पर्यटक हिमाचल प्रदेश में जहां-तहां फंस गये। हरियाणा के 9 जिलों के 6 सौ गांव में पानी भर गया। उक्त आंकड़े यह दर्शातें हैं कि हालिया बारिश और बाढ़ का परिप्रेक्ष्य से पूरा देश नहीं घिरा है बल्कि कुछ राज्य तक यह मामला है जिसमें देश की राजधानी दिल्ली भी खूब पानी-पानी हुई है। Rain
बारिश पर किसी का जोर नहीं मगर बढ़ रहे पृथ्वी के तापमान, जलवायु परिवर्तन और मानव द्वारा सृजित या निर्मित अनेक वे कारक जो पृथ्वी के बदलाव को बड़े बदलाव में तब्दील करने में लगे हैं उसको कमतर किया जा सकता है। इतना ही समय रहते शहरों के जल निकासी को दुरूस्त करना, बारिश से पहले साफ-सफाई करना, अवैध कॉलोनी को न बसने देना, नाला-खाला आदि पर अतिक्रमण से रोक और बेहतरीन मास्टर प्लान बनाकर बाढ़ से बचा जा सकता है। दिल्ली देश का वह चित्र है जहां से पूरे देश के मानचित्र की सेहत सुधरती है। ऐसे में बारिश और बाढ़ के चलते इसका बीमार होना सही नहीं है। Delhi Flood
बदले परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण के अन्तर्गत यह समझने में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए कि शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, सुरक्षा समेत अनेक बुनियादी व समावेशी विकास के निहित अर्थों में बाढ़ से बचाव भी शामिल है। बाढ़ और बारिश से जान-माल की हानि को कम करना, आवागमन को सुचारू बनाए रखना तथा जीवन को पटरी से उतरने से रोकना सरकार की जिम्मेदारी है। ऐसे में दिल्ली हो या देश का कोई भी शहर हवा में काम करने के बजाये जमीन पर उतर कर अपने शहर को समझना, उसके अनेक प्रबंधन को उसी जमीन पर उतारना ताकि नौबत कुछ भी आ जाये बारिश कितनी भी हो बाढ़ से बचा जा सके। हालांकि यह काम कठिन है मगर नामुमकिन नहीं है। सबके बाद दो टूक यह कि इसकी शुरूआत सबसे पहले दिल्ली से ही होनी चाहिए। Delhi Flood
डॉ. सुशील कुमार सिंह, वरिष्ठ स्तंभकार एवं प्रशासनिक चिंतक (यह लेखक के अपने विचार हैं)