प्रेमी वरुण कुमार इन्सां सुपुत्र मा. बाजोराम गांव जफरपुर, डाकघर चरथावल जिला मुजफ्फरनगर (यूपी)। पूज्य गुुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने ऊपर हुई अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:-
घटना 8 अप्रैल 2005 की है। उस दिन शुक्रवार का दिन था। मैंने डीएम आॅफिस में अपनी डयूटी पर जाना था। सुबह नहाने के बाद जैसे ही मैंने अपना बनियान आदि सुखाने के लिए तार पर डाला तो तार ने मुझे पकड़ लिया। तार में बिजली का तेज करंट चल रहा था। एकदम से मेरी चीख निकल गई। चीख सुनकर मेरी पत्नी दौड़ी आई। मैंने उसे किसी लकड़ी के डंडे आदि से तार को हटाने का इशारा किया। उसने जैसे ही डंडा तार पर मारा, तार दूसरी तरफ से टूट गया। जिधर से करंट का प्रवाह चल रहा था, वह तो ज्यों का त्यों ही चल रहा था। मैंने अपनी घरवाली को दूर रहने को कहा।
उसके बाद हमारे आस-पड़ौस के काफी लोग इकट्ठे हो गए। हालांकि मैं पूरी तरह से बेहोश था लेकिन अंदर से मैं पूरे होश में था। मुझे सबकी आवाज सुनाई दे रही थी। कौन क्या क्या कह रहा था, मुझे सबकी बात ज्यों की त्यों सुन रही थी। मुझे चारपाई पर डाल दिया गया। सभी को यही था कि मैं मर चुका हूं। हमारे गांव के डॉक्टर को घर पर ही बुला लिया गया। उसने देखा, चैक किया और कहा इसमें कुछ भी नहीं है। डॉक्टर यह कहकर जाने लगा तो हमारे कुछ लोगों के यह कहने पर रूक गया कि डॉक्टर साहिब, थोड़ा देख लो, कोशिश तो करो। उसने घी से मालिश करने को कहा।
इस दुर्घटना का दृष्टांत पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने मुझे एक दिन पहले यानी 7 अप्रैल को उस रात सपने में बता दिया था। पूज्य पिता जी ने वचन किया, बेटा, ‘तुम्हारे साथ काल शरारत कर सकता है, घबराना नहीं।’ वैसे तो मैं पूरी तरह से बेसुध-बेहोश था लेकिन सुनाई भी सब कुछ दे रहा था। मैं बोलना चाह रहा था, पर अंदर से आवाज बाहर नहीं आ रही थी। अचानक पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के मुझे दर्शन हुए। पूज्य गुरू जी मुझे अपने साथ लेकर चल पड़े। वह बहुत खतरनाक और बहुत ही डरावना व भयानक रास्ता था। मैंने अपनी आंखों से देखा एक जगह मुर्दों की हड्डियों के ढेर लगे हुए थे। रक्त मवाद, (पूं-राध) के वहां पर तालाब भरे थे। और मैंने देखा कि लोग (जीव) कट-कट के उन तालाबों में गिर रहे थे।
चहुं ओर हाय-हाय, कुर्लाहट, त्राहि-त्राहि कूक पुकार मची हुई थी। ऐसे भयानक दृश्यों को देख कर रूह भी कांप उठती है। वो तड़पती रूहें अपने पास से गुजरने वाली रूहों को कूक-कूक कर कहती हैं कि ऐ जाने वालो, हमें भी यहां से निकाल लो! हमें भी अपने साथ ले चलो।’ उस दुर्दशा में बिलखती उन जीवात्माओं की चीख पुकार सुनकर मैं थोड़ा रूक सा गया, तो पूज्य हजूर पिता जी ने फरमाया कि बेटा, आगे चलो! ये वो जीव हैं जो अपने गुरू, पीर-फकीर के वचन नहीं मानते, इसीलिए ये ऐसी सजाएं पा रहे हैं। सचमुच ही वह बहुत भयानक व दर्दनाक दृश्य था। रूह बार-बार कांप उठती थी उसे देखकर। वहां से पूज्य पिता जी मुझे एक ऐसी जगह ले गए। वहां की सुंदरता बेमिसाल थी। इतना जबरदस्त सुंदरता का नजारा कि जो कहने-सुनने से परे था। पूज्य हजूर पिता जी शाही स्टेज पर विराजमान हुए।
बहुत ज्यादा संख्या में लोग वहां पर मौजूद थे। वे पूज्य गुरू जी का बहुत ही बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। उनमें पूज्य गुरू जी के दर्शनों का उतावलापन दिखाई दिया। पूज्य गुरू जी ने सबकी राजी खुशी पूछी और सभी को अपने पावन आशीर्वाद से नवाजा। अपने सतगुरु मालिक प्यारे के दर्शन पाकर हर कोई खुश, बागोबाग था। फिर पूज्य हजूर पिता जी ने फरमाया कि चलो बेटा, चलें। इतना आनंद, चैन, इतना सुकून और इतनी खुशियां थी वहां कि बस उन्हीं में ही डूब जाएं। मैंने प्रार्थना की, पिता जी, ये सब छोड़ने को दिल नहीं करता। पिता जी, मेरे को तो यहीं रहने दीजिए और यह कहकर मैं पूज्य पिता जी के पवित्र चरणों से लिपट गया कि पिता जी, मैं तो यहां से नहीं जाऊंगा। पूज्य प्यारे पिता जी ने वचन फरमाया कि ‘बेटा, अभी तो तुझसे बहुत सेवा लेनी है।
चल, अब चलते हैं।’ पूज्य गुरू जी ऐसे वचन करके मुझे जाने के लिए कह रहे थे, और इतने में मेरी (बेहोश पड़े की) आंख खुल गई। मैंने देखा, परिवार के लोग मेरे शरीर की मालिश कर रहे थे, कई लोग खड़े देख रहे थे कि अब क्या होगा! क्या प्राण वापस आएंगे! मैंने उन लोगों से कहा कि अब मैं बिल्कुल ठीक हूं। प्यारे पूज्य हजूर पिता जी की रहमत का यह प्रत्यक्ष करिश्मा देखकर हर आदमी हैरान था। जिसने सुना वह भी मुझे देखने के लिए दौड़ा आया। पूज्य पिता जी की दया मेहर के इस दृश्य से प्रभावित होकर मेरे गांव के बहुत संख्या में लोगों ने अगले सत्संग पर पहुंच कर पूज्य गुरू जी से नाम शब्द, गुरूमंत्र लिया। इस तरह हमारे गांव में हर तरफ पूज्य गुरू जी की महिमा, पूज्य गुरू जी की दया-मेहर, रहमत की चर्चा होने लगी।
प्रेमी जी आगे लिखते हैं, हमारा सारा परिवार डेरा सच्चा सौदा से नाम-लेवा सत्संगी प्रेमी है और समय-समय पर दरबार में तन-मन से, पूरी तन्मयता से सेवा करते हैं। पूज्य पिता जी के वचनानुसार कि अभी बहुत सेवा लेनी है, उसी वर्ष 5 दिसम्बर को ब्लॉकों के नवीनीकरण के समय साध-संगत ने मुझे ब्लॉक प्रेमी सेवक की सेवा सौंप दी, पूज्य पिता जी की रहमत से जो आज भी वह सेवा पूरी तनदेही से निभा रहा हूं। प्यारे पिता जी के पवित्र चरणों में यही प्रार्थना है कि हे मालिक। आप जी के हुक्मानुसार एक-एक स्वास सेवा सुमिरन में लगे और आखिरी स्वास तक आप जी के चरणों से जुड़े रहें जी।
स्त्रोत : डेरा सच्चा सौदा के पवित्र ग्रन्थ, संकंलन : सच कहूँ टीम
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