नई दिल्ली। Rbi New Rule: मजबूरीवश बैंकों का कर्ज न लौटा पाने वाले लोगों और जानबूझ कर बैंकों का कर्ज न लौटाने वाले धोखेबाजों (loan defaulter) को रिजर्व बैंक (RBI) ने सबसे बड़ी राहत की खबर दी है। अब ऐसे खुदगर्ज डिफॉल्टर बैंकों के साथ कर्ज की शर्तों में बदलाव के लिए बातचीत कर सकते हैं और अपने न अदा किए गए कर्ज को लेकर बैंक के साथ सेटिंग भी कर सकते हैं। बैंक ऐसे खुदगर्ज डिफॉल्टरों को 12 महीने की कूलिंग अवधि के बाद दोबारा भी लोन मुहैया करा सकते हैं।
बता दें कि विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी (Rbi New Rule) जैसे सैकड़ों विलफुल डिफॉल्टरों पर बैंक सख्ती दिखा रहे हैं। रिजर्व बैंक के ऐसे समय में इस यूटर्न पर कई विशेषज्ञों ने आरबीआई को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है।
वर्णनीय है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने दबाव वाली संपत्तियों से अधिकतम वसूली सुनिश्चित करने के लिए बैंकों को धोखाधड़ी वाले खातों और इरादतन या जानबूझकर चूक के मामलों का निपटारा समझौते के जरिये करने की अनुमति दे दी है। आरबीआई ने ये मंजूरी देते हुए कहा है कि इसके लिए निदेशक-मंडल स्तर पर नीतियां बनाई गई हैं। इसी के तहत कुछ जरूरी शर्तें भी निर्धारित की गई हैं। इन शर्तों में कर्ज की न्यूनतम समयसीमा, जमानत पर रखी गई संपत्ति के मूल्य में आई गिरावट जैसे पहलू भी शामिल होंगे।
बैंकों के लिए नए नियम | Rbi New Rule
आरबीआई ने जानकारी देते हुए बताया कि बैंकों का निदेशक-मंडल इस तरह के कर्जों में अपने कर्मचारियों की जवाबदेही की जांच के लिए भी एक प्रारूप तय करेगा। आरबीआई की अधिसूचना के अनुसार, रिजर्व बैंक से विनियमित वित्तीय इकाइयां इरादतन चूककर्ता या धोखाधड़ी के रूप में वगीर्कृत खातों के संबंध में ऐसे देनदारों के खिलाफ जारी आपराधिक कार्रवाई पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर समझौता समाधान या तकनीकी बट्टे-खाते में डाल सकती हैं।
इसके तहत समाधान नीति में बैंक एक गणना-पद्धति भी निर्धारित करेगा ताकि जमानत पर रखी गई संपत्ति के वसूली-योग्य मूल्य की गणना की जा सके। इससे यह तय हो पाएगा कि संकट में पड़े कर्जदार से न्यूनतम खर्च पर अधिकतम कितनी वसूली की जा सकेगी। इसके अनुसार, विनियमित इकाइयों के बहीखाते में चिह्नित ऐसे किसी भी वसूली दावे को मौजूदा दिशानिदेर्शों के अनुसार पुनर्गठित कर्ज माना जाएगा।
दोबारा लोन की स्कीम
रिजर्व बैंक के प्रावधानों के अनुसार अगर कर्जदार समझौता करते हैं तो संबंधित कर्जदार को नया लोने देने का ‘कूलिंग पीरियड’ रखा जाएगा, ताकि बैंकों का जोखिम कम हो सके। कृषि के लिए लोन लेने से अलग कर्जों में यह समय 12 महीनों का हो सकता है। इस प्रकार यदि पहले कोई जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाता था तो जहां पहले उसे लोन प्राप्त करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता था, वहीं अब वह 1 वर्ष के बाद कूलिंग अवधि पूरी करने पर दोबारा बैंक से लोन प्राप्त कर सकता है।