देश में विभिन्न वर्गों से संबंधित संगठनों व प्रशासन के बीच टकराव शांत होने की बजाए उग्र होता जा रहा है। पंजाब-हरियाणा में भले ही किसानों का संघर्ष या सरकारी कर्मचारियों का प्रदर्शन हो, अक्सर ही उग्र रूप धारण कर लेता है। यहां तक कि कई बार हालात तनावपूर्ण भी बन जाते हैं। आजादी के 75 वर्ष बाद धरना-प्रदर्शनों में ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होना बेहद चिंता का विषय है। इस मुद्दे पर राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक रुप से चर्चा होनी चाहिए। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, जो गर्व की बात है। कुछ खामियों के बावजूद भारतीय लोकतंत्र की ढ़ेरों उपलब्धियां भी हैं, लेकिन जहां तक लोकतंत्र का संबंध है यह केवल सरकार चुनने, चुनाव करवाने तक सीमित नहीं है। (Democracy)
लोकतंत्र (Democracy) में हर विचारधारा का सम्मान होना चाहिए। लोकतंत्र में विवेक, विचार और मंथन अति आवश्यक है, जहां विवेक से तर्कों पर चर्चा की जाती है। लोकतंत्र शारीरिक व भौतिक लड़ाई का नहीं बल्कि यह विचारधारा की लड़ाई है। यह भी यथार्थ है कि अंग्रेजों के शासनकाल के संघर्ष और वर्तमान दौर के संघर्षों को एक तराजू में नहीं तोला जा सकता। विदेशी शासकों की कार्यशैली और आजाद देश के शासनकाल में जमीन-आसमान का अंतर है। संविधान स्वतंत्र देश के नागरिकों को व्यक्तिगत व सामूहिक रुप से विरोध-प्रदर्शन करने का अधिकर देता है। विरोध के साथ-साथ संवाद को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। सरकारें भी अपनी जिम्मेवारी से भाग नहीं सकतीं।
सरकारों को चाहिए कि विरोध-प्रदर्शन करने वाले संगठनों के साथ बातचीत कर उनकी मांगों को सुना जाए और समस्याओं का समाधान भी निकाला जाए। यह आजकल आम देखा गया है कि शुरुआती दौर में धरना-प्रदर्शन करने वालों पर कोई ध्यान ही नहीं दिया जाता, जब वे सरकार के जवाब के इंतजार में थक जाते हैं फिर उग्र होने की स्थिति पैदा होती है और अंत में सरकार संगठनों की कुछ मांगों को मान लेती है और धरना एक बार खत्म हो जाता है, लेकिन धरने की शुरुआत और खत्म होने के बीच जो कानून व्यवस्था बिगड़ने से आमजन को समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है तो सरकारों और संगठनों में तालमेल व बातचीत के तौर-तरीकों पर सवाल उठता है। (Democracy)
यदि ऐसे संवेदनशील मामलों को सरकार गंभीरता से ले तो धरने-प्रदर्शनों को शुरुआती दौर में ही खत्म करवाया जा सकता है। यह भी वास्तविक्ता है कि विचार शक्ति का कोई मुकाबला नहीं। इस सिलसिल में अन्ना हजारे का आंदोलन एक स्पष्ट उदाहरण है, जिन्होंने शांतप्रिय तरीके से सरकार को हिला दिया था। लोकतंत्र में धरने, विरोध-प्रदर्शन की अहमियत को बरकरार रखने के साथ संवाद को मजबूत किया जाना ही लोकतंत्र की वास्तविक जीत है। सरकारों को भी केवल अनुभवों या राजनीतिक नफे-नुक्सान से ऊपर उठकर जनहित को पहल देनी चाहिए। (Democracy)
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