दोनों करते थे मारपीट, पिता ने तंग आकर बाक्सिंग रिंग में उतारा, बनें चैंपियन
पानीपत, (सन्नी कथूरिया)। जय और वीरू का नाम आते ही 1975 में रिलीज हुई शोले फिल्म के अभिनेता अमिताभ बच्चन और धमेंद्र की जोड़ी जहन में घूमती है जिनकी जोड़ी दोस्ती के लिए मिसाल थी। फिल्म में दोनों एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे। वहीं रियल की जिंदगी में ऐसी ही जोड़ी पानीपत स्थित विराट नगर के जुड़वा भाई जय और वीरू की है। फर्क सिर्फ इतना है कि ये दोनों जुड़वां भाई हैं। पांच साल की उम्र में एक-दूसरे के साथ मारपीट करने वाले एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे। इससे उनके पिता बलविंद्र परेशान हो गए थे।
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दोनों के अड़ियल रवैये में बदलाव हो और उनके गुस्से का उबाल उतारने के लिए उन्होंने दोनों को बाक्सिंग रिंग में उतारने का फैसला किया। इसके लिए दोनों को पानीपत स्थित शिवाजी स्टेडियम में बाक्सिंग कोच सुनील पंवार के पास अभ्यास के लिए छोड़ दिया। कोच दोनों की तब तक फाइट करवाते जब तक वे थक कर निढ़ाल नहीं हो जाते। इससे उनका गुस्सा कम हुआ और उम्र बढ़ने के साथ-साथ दोनों का व्यवहार भी बदला।
वीरू से 30 सेकेंड बड़ा जय
फिर दोनों ने मारपीट छोड़ खेल पर ध्यान केंद्रित किया। अब 13 वर्ष की उम्र में दोनों भाई न सिर्फ एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं, बल्कि बाक्सिंग में भी एक के बाद एक पदक जीत रहे हैं। वीरू से 30 सेकेंड बड़ा जय जिला स्तरीय बाक्सिंग प्रतियोगिता में दो स्वर्ण पदक और राज्य स्तर पर रजत पदक जीत चुका है। वहीं छोटा वीरू भी जिला चैंपियन है। दोनों भाइयों का शिवाजी स्टेडियम में शुरू हो रही राज्यस्तरीय बाक्सिंग एकेडमी में चयन भी हो गया है।
फोटोग्राफी का काम करने वाले बलविंद्र ने बताया कि उनकी सबसे बड़ी बेटी रिया है, जोकि बीकॉम में पढ़ती है। उससे छोटा बेटा अवि बीमार रहता है। उन्होंने बताया कि छोटे बेटे जय व वीरू बचपन में बहुत शरारती थे। दोनों घर में एक-दूसरे के साथ दिन भर मारपीट करते थे, जिससे परिवार का जीना मुहाल हो गया था। एक दिन वे शिवाजी स्टेडियम में गए, जहां दोनों बच्चे बाक्सिंग करने लगे।
बाक्सिंग (Boxing) ने बेटों की जिंदगी ही बदल दी
यह देख कोच सुनील पंवार ने उन्हें सलाह दी कि अपने बच्चों को बॉक्सिंग में डाल दो और अभ्यास के लिए भेज दिया करो। इस उन्होंने कोच की बात मान ली और दोनों बेटों को स्टेडियम में अभ्यास के लिए भेजने लगे। इस दौरान दोनों ने बाक्सिंग का खूब अभ्यास किया जिससे उनका गुस्सा खत्म हो गया। अब बेटे घर में भी शांत रहते हैं। बाक्सिंग ने बेटों की जिंदगी ही बदल दी है। इससे परिवार को भी राहत मिली है।
स्टेडियम में 120 खिलाड़ी बाक्सिंग का अभ्यास करते हैं। प्रारंभ के दो साल तक जय व वीरू सबसे शरारती थे। हर रोज दोनों की पिटाई होती थी। धीरे-धीरे उम्र बढ़ी और खेल के प्रति लगाव हुआ तो दोनों ने शरारत कम कर दी। जो तकनीक सिखाई जाती है, उस पर दोनों अमल करते हैं। मुकाबले में दोनों भाई एक-दूसरे का पक्ष लेते हैं।
कोच का साथ न होता तो बाक्सिंग (Boxing) नहीं कर पाते
जय बताते हैं कि वह और वीरू राजकीय माडल संस्कृति स्कूल के नौवीं कक्षा के छात्र हैं। दोनों भाई खेल के साथ-साथ पढ़ाई में भी मदद करते हैं। पिता के फोटोग्राफी के काम से घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से चलता है। कोच सुनील पंवार ही उनकी खुराक, जूतों व खेल पोशाक का प्रबंध करते हैं। कोच का साथ न होता तो वे दोनों भाई बाक्सिंग नहीं कर पाते। अब दोनों भाइयों का लक्ष्य सब जूनियर नेशनल बाक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने का है।