डॉ. संदीप सिंहमार।
भारत देश में आमजन को अपने गंतव्य तक पहुंचने के (Odisha Train Accident) लिए रेल, सड़क मार्ग, हवाई मार्ग, जल मार्ग का प्रयोग करना पड़ता है। यातायात के यही सभी साधन विश्वसनीय भी हैं ,क्योंकि यह सभी केंद्र सरकार के अधीन आते हैं। यदि हम विश्व स्तरीय बात करें तो फिर भी इन्हीं मागोें का उपयोग किया जाता है। यह माना जा सकता है कि जलमार्ग का उपयोग अधिकतर आयात निर्यात के लिए किया जाता है तो ट्रेन का सफर इन सभी में से आमजन के लिए सुगम माना गया है, क्योंकि सबसे आसानी से उपलब्ध होने वाला व्यवस्था साधन रेलवे को ही माना जाता है।
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यहाँ हम बात करें तो भारत देश में रेल मार्ग की शुरूआत गुलामी के दिनों में हुई थी। हादसे तब भी होते थे। लेकिन आजाद भारत की बात करें तो अब तक भारत देश में इतने ज्यादा रेल हादसे हो चुके हैं कि यदि हम गौर फरमाएं तो सोचने वाला हर व्यक्ति दांतों तले उंगली दबा सकता है कि आखिर सरकारी विभाग इन हादसों के बाद जागता क्यों नहीं? एक जिम्मेदारी क्यों नहीं तय की जाती? यदि हम यह कहें …‘तो सिस्टम ही कुछ ऐसा है कोई मरता है तो मरने दे’ इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यह पंक्तियां रेलवे विभाग पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं।
14 घंटे बीत जाने के बावजूद भी रेस्क्यू अभियान पूरा नहीं हो पाया
हादसे जब भी हुए अधिकतर लोग गरीब मरे क्योंकि अमीर लोग यातायात के इस विश्वसनीय साधन में यात्रा तय करने में कम विश्वास करते हैं। यह माना कि उड़ीसा के बालेश्वर में जो दर्दनाक हादसा हुआ, उसमें से एक मालगाड़ी व दों एक्सप्रेस ट्रेन थी। हादसे के 14 घंटे बीत जाने के बावजूद भी अब तक एनडीआरएफ स्थानीय प्रशासन द्वारा रेस्क्यू अभियान पूरा नहीं हो पाया है। मरने वालों की संख्या भी 244 के पार पहुंच चुकी है। रेलवे विभाग की माने तो यह आंकड़ा अभी और बढ़ सकता है। देश के रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव भी मौके पर पहुंच चुके हैं। पर हुआ क्या? वही जो पहले होता आया है?
सिर्फ जान गंवाने वालों के परिवारों को मुआवजा राशि देने से इन हादसों पर रोक नहीं लग सकती और क्या मुआवजा देने से जिन्दगी वापिस आ जाएगी। इन दर्दनाक हादसों पर रोक लगाने के लिए स्टेशन मास्टर से लेकर रेल मंत्री तक की जिम्मेदारी होनी चाहिए। देश के पूर्व प्रधानमंत्री एवं तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री के समय को याद कीजिए। जब वे रेल मंत्री थे तो उनके समय में भी एक बड़ा रेल हादसा हुआ था। इस रेल हादसे की जिम्मेदारी उन्होंने खुद लेते हुए तुरंत अपने पद से 1956 में इस्तीफा तक दे दिया था। यहां उन्होंने अपने पद की गरिमा बचाते हुए इंसानियत दिखाने का कार्य किया था। लेकिन रेल हादसा तब भी नहीं रुका था।
यह हादसा हुआ क्यों? उस केंद्र बिंदु पर कोई नहीं पहुंच पाया
अब यहां हम किसी के भी इस्तीफे की बात नहीं कर रहे। बल्कि बात कर रहे हैं, इस देश के बड़े रेल हादसे की टेक्निकली जांच की। टेक्निकल जांच में जिसकी भी लापरवाही मिले, उसे इसकी सजा जरूर मिलनी चाहिए। यह तो पक्का तय है कि इस तरह के हादसे बड़ी लापरवाही की वजह से होते हैं। लेकिन इस लापरवाही का जिम्मेदार कौन है? उसकी जाँच जरूर करनी होगी। सिर्फ यह बात कहने से कि जान गंवाने वालों के प्रति हमारी गहरी संवेदना है, इससे काम नहीं चलने वाला। ओडिशा में एक दिन का राजकीय शोक भी घोषित कर दिया गया। पर अभी तक रेस्क्यू अभियान के साथ-साथ उस केंद्र बिंदु पर कोई नहीं पहुंच पाया कि यह हादसा हुआ क्यों?
रेलवे विभाग की चार दशक पहले की सबसे बड़ी घटना भी अपनी उम्र का अर्धशतक पूरा करने वाले लोगों को जरूर याद होगी। तब 6 जून 1981 को बिहार में एक पुल पार करते हुए ट्रेन बागमती नदी में गिर गई थी। इस हादसे में 750 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। हादसे यहीं नहीं थमे इसके बाद भी चलते रहे और हमारे देश के सत्तासीन सिर्फ संवेदना व्यक्त करते रहे। पर ऐसे हादसों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब देश के सबसे विश्वसनीय यातायात के साधन से लोगों का विश्वास राजनीति की तरह उठ जाएगा। उड़ीसा के इस हादसे के बाद भी राजनीति का एक नया खेल शुरू होने वाला है। मीडिया में पक्ष-विपक्ष की बयानबाजी होगी और लोगों को इमोशनल करने का काम कर गुमराह किया जाएगा। पर कोई भी ये नहीं बताएगा हादसे का टेक्निकल नतीजा क्या हुआ? इस बात पर गहन मंथन करने की जरूरत है।
आजाद भारत में अब तक कई बड़े रेल हादसे हुए हैं, इन दर्दनाक हादसों में हजारों लोगों की जान जा चुकी है।
कब-कब हुए देश में बड़े रेल हादसे
1956 में महबूबनगर रेल हादसे में 112 लोगों की मौत हुई थी। हादसा होने पर तत्कालीन रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसे तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकार नहीं किया। तीन महीने बाद ही अरियालूर रेल दुर्घटना में 114 लोग मारे गए। उन्होंने फिर इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इस्तीफा स्वीकारते हुए संसद में कहा कि वह इस्तीफा इसलिए स्वीकार कर रहे हैं कि यह एक नजीर बने। इसलिए नहीं कि हादसे के लिए किसी भी रूप में शास्त्री जिम्मेदार हैं। पर हादसे क्यों हुए इस ओर तब भी गौर नहीं किया गया।
- 23 दिसंबर 1964 को पम्बन-धनुषकोडि पैसेंजर ट्रेन चक्रवात का शिकार हो गई थी। इस हादसे में 126 यात्रियों की मौत हो गई थी।
- 6 जून, 1981 को देश में सबसे बड़ी रेल दुर्घटना हुई थी। इस दिन बिहार में पुल पार करते समय एक ट्रेन बागमती नदी में गिर गई थी, जिसमें 750 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।
- 20 अगस्त, 1995 को फिरोजाबाद के पास पुरुषोत्तम एक्सप्रेस खड़ी कालिंदी एक्सप्रेस से टकरा गई थी। इस घटना में 305 लोगों की मौत हुई थी।
- 26 नवंबर, 1998 को जम्मू तवी-सियालदह एक्सप्रेस पंजाब के खन्ना में फ्रंटियर गोल्डन टेंपल मेल के पटरी से उतरे तीन डिब्बों से टकरा गई थी, जिसमें 212 लोगों की मौत हो गई थी।
- दो अगस्त, 1999 को गैसल ट्रेन दुर्घटना हुई थी, इस हादसे में ब्रह्मपुत्र मेल उत्तर सीमांत रेलवे के कटिहार डिवीजन के गैसल स्टेशन पर अवध असम एक्सप्रेस से टकरा गई थी। इस दुर्घटना में 285 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और 300 से अधिक घायल हो गए। पीड़ितों में सेना, बीएसएफ और सीआरपीएफ के जवान शामिल थे।
- 9 सितंबर, 2002 को रफीगंज ट्रेन हादसा- हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस रफीगंज में धावे नदी पर एक पुल के ऊपर पटरी से उतर गई थी, जिसमें 140 से अधिक लोगों की मौत हो गई।
- 28 मई, 2010 को जनेश्वरी एक्सप्रेस ट्रेन पटरी से उतर गई थी। मुंबई जाने वाली ट्रेन झारग्राम के पास पटरी से उतर गई थी और फिर एक मालगाड़ी से टकरा गई थी, जिससे 148 यात्रियों की मौत हो गई थी।
- 20 नवंबर, 2016 को पुखरायां ट्रेन पटरी से उतर गई थी। इस हादसे में 152 लोगों की मौत हो गई थी और 260 घायल हो गए थे।
रेल हादसों में जान गंवाने वाले नागरिकों को दैनिक ‘सच कहूँ’ की ओर से श्रद्धांजलि