रूहानियत के शहनशाह, मस्त रब्बी फकीर ने अपनी नूर बरसाती पावन दृष्टि डाली तो सृष्टि निहाल हो गई। पवित्र मुख से इलाही वचनों की बरसात से तपते हृदयों को ऐसी ठंडक पहुँचाई कि भवसागर में चक्कर लगाती रूहों को किनारा मिल गया। जो भी सच्चे रूहानी रहबर के पावन दर्श-दीदार करता उसका सिर सजदे में झुक जाता। जब पवित्र कर कमल पावन आशीर्वाद के लिए उठते तो दिल का चमन खिल उठता। वीरान हुई रूह के आंगन में बहार आ गई। रूह का सतगुरु से ऐसा मिलाप हुआ कि गम, दु:ख, दर्द, चिंता पंख लगाकर उड़ गए।
इलाही नज़ारों की शुरुआत का गवाह बना यह शुभ दिन 28 मई 1948। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने 29 अप्रैल 1948 को डेरा सच्चा सौदा की नींव रख इस रूहानियत व इन्सानियत के पवित्र दरबार का निर्माण करवाने के बाद मई में पहला सत्संग फरमाया। यह दिन समाज, देश व पूरे विश्व के लिए आत्मिक, सामाजिक खुशियों का ख़जाना लेकर आया। देश के बंटवारे से बदहाल हुई जनता को जरूरत थी एक महान आध्यात्मिक व सामाजिक अगुवाई की। सांप्रदायिकता ने मनुष्य को मनुष्य का दुश्मन बना दिया था। धर्म, जात व क्षेत्र के भेदभाव ने समाज को बुरी तरह बांटा हुआ था। शाह मस्ताना जी महाराज ने आपसी नफ़रत को मिटा कर प्रेम और भाईचारे की गंगा बहा दी।
सर्व धर्म संगम की मिसाल | (Satsang Bhandara)
शाह मस्ताना जी महाराज ने लोगों को रूहानियत की इस सच्ची शिक्षा के साथ जोड़ा कि परमात्मा एक है और पूरी मानवता उसकी औलाद है। इस उपदेश का कमाल था कि समाज में समानता और भाइचारे की गंगा बह चली। सभी धर्मों के लोग इकट्ठा बैठ कर अल्लाह, वाहेगुरु, राम, गॉड के गुण गाने लगे। आप जी ने फरमाया कि परमात्मा के नाम लाखों हैं पर वो एक है। सभी धर्मों का संदेश एक ही है।
अमली जिंदगी का सबक
डेरा सच्चा सौदा का मूल सिद्धांत ही ये है कि ज्ञान के साथ-साथ कर्म जरूरी है। प्रभु की भक्ति करने से ही प्रभु मिलता है। इसलिए जो ज्ञान प्राप्त किया है उस पर अमल करने वाला ही प्रभु की दया-मेहर का हकदार है। दिखावा करने वाला खाली रह जाता है। सिर्फ बातें करने से प्रभु नहीं मिलता।
नशा विरोधी मुहिम
डेरा सच्चा सौदा अपनी स्थापना के समय से ही नशों के खिलाफ है। पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज, पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने अपने रूहानी सत्संगों के माध्यम से लाखों लोगों को नशों से छुटकारा दिलवाया। सच्चे दाता रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां डेप्थ मुहिम के माध्यम से करोड़ों लोगों का नशा छुड़वा चुके हैं और ये मुहिम जारी है।
हर दिन भलाई को समर्पित
डेरा सच्चा सौदा के करोड़ों श्रद्धालु मानवता की भलाई को समर्पित हैं। पूरी दुनिया में प्रतिदिन इन भलाई कार्यों की चर्चा रहती है। घरों में बैठे लाचारों को राशन देने से लेकर सड़कों पर घूम रहे मंदबुद्धियों का सहारा बन रहे हैं। आज के इस स्वार्थी युग में जहां किसी के पास रेलवे स्टेशन का रास्ता बताने का समय नहीं है, वहीं डेरा श्रद्धालु मंदबुद्धियों का इलाज व सार-संभाल करके उनको हजारों किलोमीटर दूर उनके घरों तक पहुँचा कर आते हैं। ऐसे मानवता भलाई कार्यों का आंकड़ा 157 हो चुका है।
युवाओं को नई दिशा:-
वर्तमान दौर में युवा पीढ़ी के लिए जहां पैसा और निजी ज़िंदगी ही सब कुछ है, वहीं डेरा सच्चा सौदा के युवा श्रद्धालुओं ने समाज सेवा को ज़िंदगी का मकसद बनाया हुआ है। नशे व बुरे कर्मों से दूर ये श्रद्धालु दुनिया भर में रक्तदान, गरीबों की मदद, पौधारोपण जैसे भलाई कार्यों में निरंतर लगे हुए हैं।
भारतीय संस्कृति का परचम
डेरा सच्चा सौदा ने भारतीय संस्कृति की शान को पुनर्जीवित करते हुए बुजुर्ग माता-पिता की संभाल, सम्मान पर जोर दिया है। परिवारों में बढ़ रही दूरी को खत्म करके प्यार-मोहब्बत को कायम किया है। पूरे परिवार का इकट्ठे बैठकर खाना खाना,प्रतिदिन शाम 7 से 9 बज (2 घंटे) मोबाइल फोन बंद करके बातचीत करना, बच्चों को समय व अच्छे संस्कार देने जैसे संदेश परिवारों में खुशियां और अपनापन का माहौल पैदा कर रहे हैं।
गजब की भलाई
आज-कल किसी का बेटा-बेटी नशे में लिप्त हो जाए तो कोई हौसला भी देने नहीं आता, पर पूज्य गुरु जी की प्रेरणा पर चलते हुए डेरा श्रद्धालु नशा करने वाले को ढूंढते फिरते हैं कि किसी तरह उनका नशा छुड़वाया जा सके। और नशा छोड़ने वाले को सेफ मुहिम के तहत वेव प्रोटीन, ड्राई फ्रूट सहित पौष्टिक आहार भी दिया जाता है। उन्हें इस बात की पीड़ा है कि नशा करने वाला जिस माँ का बेटा है, जिस उस माँ की आँखों में आँसू ना बहें बल्कि उसका बेटा हष्ट-पुष्ट और तंदुरुस्त हो जाए। फिर ऐसे श्रद्धालुओं को उन माताओं का आशीर्वाद तो मिलना ही है।
जोड़ने वाली संस्था
पूरी दुनिया में तोड़ने और टकराव का रूझान है, जो तबाही की ओर जा रहा है। नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी, सभ्याचार और समाज से टूट रही है। डेरा सच्चा सौदा मनुष्य को मनुष्य से, मनुष्य को समाज से, धर्म के साथ, सभ्याचार के साथ जोड़ रहा है। यह जुड़ाव ही कल्याणकारी है क्योंकि पूरा विश्व ही एक परिवार है, यह धर्मों का सार है। आधुनिक मशीनीकरण के युग में मनुष्य के पास पैसा कमाने के लिए, सुख के साधन बनाने के लिए ही समय है पर मनुष्य के पास मनुष्य बनने का समय नहीं है। ये समय सिर्फ सच्चे संतों के पास है और डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां हमेशा और हर हाल में मानवता के कल्याण के लिए अपनी इस मुहिम में जुटे हैं, क्योंकि उनको इन्सानियत का दर्द है और यही डेरा सच्चा सौदा का मिशन है।
ऐसे पड़ा ‘सच्चा सौदा’ नाम
जब आश्रम बनकर तैयार हो गया तो पूजनीय सार्इं शाह मस्तना जी महाराज ने साध-संगत को इकट्ठा किया और उनसे मुखातिब होकर पूछा कि अब हम इस आश्रम का नाम रखना चाहते हैं, क्या नाम रखा जाए? सभी चुप हो गए। पूज्य शहनशाह जी ने स्वयं ही तीन नाम तजवीज (सुझाव) किए- 1. रूहानी कॉलेज 2. चेतन कुटिया 3. सच्चा सौदा। पूज्य शहनशाह जी ने साध-संगत से पूछा कि इन तीनों में से कौन सा नाम रखें? तब एक भक्त ने खड़े होकर कहा-सच्चा सौदा। इस प्रकार एक भक्त के मुंह से कहलवाकर पूजनीय साईं जी ने इस पवित्र जगह का नाम सच्चा सौदा अर्थात् डेरा सच्चा सौदा रख दिया।
उस समय पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने वचन फरमाए कि यह वह सच्चा सौदा है, जो आदिकाल से चला आ रहा है। यह कोई नया धर्म, मज़हब या लहर नहीं है। सच्चा सौदा का भाव है सच का सौदा। इसमें सच है भगवान, ईश्वर, इसरार, वाहेगुरु, अल्लाह, ख़ुदा, गॉड और सच्चा सौदा है उसका नाम जपना अर्थात् नाम का धन कमाना। दुनिया में भगवान के नाम के सिवाय सब सौदे झूठे हैं। कोई भी वस्तु इस जहान में सदा स्थिर रहने वाली नहीं है। ईश्वर, वाहेगुरु, ख़ुदा, गॉड के नाम का सौदा करना ही सच्चा सौदा है।
डेरा सच्चा सौदा के बारे में सार्इं जी के ‘‘पावन वचन’’
यह वह सच्चा सौदा है, जो आदिकाल से चला आ रहा है। यह कोई नया धर्म, मज़हब या लहर नहीं है। सच्चा सौदा का भाव है सच का सौदा। इसमें सच है भगवान, ईश्वर, इसरार, वाहेगुरु, अल्लाह, ख़ुदा, गॉड और सच्चा सौदा है उसका नाम जपना अर्थात् नाम का धन कमाना। दुनिया में भगवान के नाम के सिवाय सब सौदे झूठे हैं। कोई भी वस्तु इस जहान में सदा स्थिर रहने वाली नहीं है। ईश्वर, वाहेगुरु, ख़ुदा, गॉड के नाम का सौदा करना ही सच्चा सौदा है।
बुरा करने वालों का भी हो भला
डेरा सच्चा सौदा का बुनियादी असूल ही यही है कि सभी का भला करो, यहां उनका भी भला किया जाता है, जो हमेशा डेरा सच्चा सौदा के बारे में बुरा सोचते रहते हैं। साध-संगत चाहे रक्तदान करे, जरूरतमंदों को राशन बांटे या सड़क हादसों में घायल लोगों की संभाल करे, इस दौरान साध-संगत किसी भी जात-पात, धर्म या वैर-विरोध नहीं देखती।
‘शाह सतनाम जी धाम’ बारे वचन | (Satsang Bhandara)
सत्संगी हंंसराज गांव शाहपुर बेगू ने बताया कि सन् 1955 की बात है। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज गांव नेजिया खेड़ा में सत्संग फ रमाने के लिए जा रहे थे। पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज गांव के नजदीक एक टीले पर विराजमान हो गए, जहां अब शाह सतनाम जी धाम में अनामी गुफा (तेरा वास) है। सभी सत्ब्रह्मचारी सेवादार तथा अन्य सेवादार अपने पूज्य मुर्शिदे-कामिल की हजूरी में आकर बैठ गए।
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने सभी सेवकों को फरमाया, ‘‘आप सभी हमारे साथ मिलकर इस पवित्र स्थान पर सुमिरन करो।’’ सभी ने बैठकर पन्द्रह-बीस मिनट तक सुमिरन किया। फिर पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने हँसते हुए फरमाया, ‘‘बल्ले! इत्थे रंग-भाग लग्गणगे।’’ इस पर पूजनीय मस्ताना जी महाराज ने फरमाया, ‘‘भई! रंग-भाग तां लग्गणगे, पर नसीबां वाले देखेंगे। बाग-बगीचे लग्गणगे। लक्खां संगत देखेगी।’’
शुरुआत
शुरुआत शाही, रखी नींव इलाही, ‘शाह मस्ताना जी साईं’, 29 अप्रैल 1948 को।
सजदा करें, शुक्र करें, नमन करें, धन धन करें ‘2 जहां के वाली’ को।
चल आया जो अनामी मंजिल से, बनाया धाम ‘सच्चा सौदा’ पीर खुदा ने दिल से।
‘सचखंड का नमूना’, ‘मानवता का दम’ ये, बना ये ‘खुदा’ के हुक्म से।
जपाता ‘नाम’, बताया सत्य भेद ‘‘जिंदाराम’’।
बांटे सुख खुशी, काटे दुख 84, दिया रूहानी आराम।
सत्संग किया था पहला ‘शाह मस्ताना जी धाम’ में, दी रब्बी ताकत ‘मौला’ शाही नाम में।
सो मई माह में सत्संग भंडारा, ले आया ये ‘संदेश रुहानी’ प्यारा।
15 वां ‘गुरु खत’ न्यारा।
किया था सत्संग पहला
‘शाह मस्ताना जी’ ने मई माह के आखिरी रविवार को।
एमएसजी ‘सत्संग भंडारा’
किया करेंगे मनाया करेंगे मई माह के आखिरी रविवार को।
-सुरेन्द्र इन्सां, 6ईईऐ पदमपुर, श्रीगंगानगर।