समय पर इलाज नहीं तो लकवे का खतरा
हिसार (सच कहूँ/संदीप सिंहमार)। आमतौर पर टीबी को फेफड़ों से जुड़ी समस्या ही माना जाता है, लेकिन यह दूसरे हिस्सों में भी पहुंच सकता है। फेफड़े (Lungs) में एक बार टीबी के बैक्टीरिया पहुंचने के बाद अगर आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर है तो यह शरीर के दूसरे अंगों में भी पहुंच सकती है। वहीं, अगर आपकी रीढ़ तक टीबी पहुंचती है तो यह बेहद गंभीर और दर्दनाक परिणाम ला सकती है।
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लगातार पीठ में अहसनीय दर्द और हाथ-पैरों में कमजोरी या सूज़न महसूस हो तो आपको तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। डॉ. तरूण छाबड़ा गंगा अस्पताल फॉर स्पेशल सर्जरी अस्पताल के डॉ. तरुण छाबड़ा ने बताया कि रीड़ की हड्डी में होने वाला टीबी इंटर वर्टिबल डिस्क में शुरू होती है। फिर रीढ़ की हड्डी में फैलता है। समय पर इलाज न किया जाए तो लकवा होने की आशंका रहती है।
युवा ज्यादा पीड़ित
युवाओं में ज्यादा पाया जाता है। इसके लक्षण भी साधारण हैं, जिसके कारण अक्सर लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। रीढ़ की हड्डी में टीबी होने के शुरुआती लक्षण कमर में दर्द रहना, बुखार, वजन कम होना, कमजोरी या फिर उल्टी है। इन परेशानियों को लोग अन्य बीमारियों से जोडक़र देखते हैं, लेकिन रीढ़ की हड्डी में टीबी जैसी गंभीर बीमारी का संदेह बिल्कुल नहीं होता। पिछले कुछ साल में कुछ ऐसे मामले सामने आए है, जिसमें गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में स्पाइनल टीबी देखा गया।
हड्डियां गलाना शुरू कर देती है टीबी | (Hisar News)
रीढ़ की हड्डी में टीबी न केवल कमर तोड़ती है, बल्कि हाथ पैरों में कमजोरी, लकवे की शिकायत भी करती है। इसमें हड्डियां (Bones) गल जाती हैं और उनमें पस भर जाती है, जो हाथ पैरों की नसों को दबाती है, जिनमें दवाई भी नहीं पहुंचती है। कुछ मरीजों के पस निकालने के लिए सर्जरी करनी पड़ सकती है।
जो लोग सही समय पर इलाज नहीं करवाते या इलाज बीच में छोड़ देते हैं, उनकी रीढ़ की हड्डी गल जाती है, जिससे स्थाई अपंगता आ जाती है। किसी भी आयु वर्ग के लोग रीढ़ की हड्डी के टीबी का शिकार हो सकते हैं। टीबी बैक्टिरिया, शरीर के दूसरे हिस्सों जैसे दिमाग, पेट और अन्य हड्डियों को भी प्रभावित कर सकता है।
अब पूर्ण रूप से इलाज संभव: डॉ. तरूण छाबड़ा
डॉ तरुण छाबड़ा ने बताया कि अब रीढ़ की हड्डी में टीबी का पूर्णत: इलाज उपलब्ध है। ऐसे में लक्षणों को जल्दी पहचान कर उनका सही समय पर निदान हो सकता है और इलाज शुरू हो जाए तो इससे ज्यादा नुकसान करने से पहले ही रोका जा सकता है। इसके इलाज में रीढ़ की हड्डी का पहले एमआरआई, सीटी स्कैन और फिर बोन बायोप्सी जांच के जरिए भी टीबी के संक्रमण का पता लगाया जाता है।
शुरूआती दौर में इसका दवाईयों से इलाज संभव है। यदि संक्रमण ज्यादा फैला हो तो पस की समस्या अधिक हो तो ऐसे में एसपिरेशन प्रक्रिया के जरिये पस को बाहर निकाल दिया जाता है। गंगा हॉस्पिटल फॉर स्पेशल सर्जरी से डॉ. तरूण छाबड़ा ने बताया कि टीबी की दवाई अब सब जगह उपलब्ध है और यह काफी असरकारक होती है। यह लंबे समय तक जरूर चलती है, लेकिन इसका पक्का इलाज हो जाता है।
ये है मुख्य लक्षण
पीठ में अकडऩ, रीढ़ में असहनीय दर्द, रीढ़ में झुकाव, पैरों और हाथों में हद से ज्यादा कमजोरी और सुनापन, हाथों और पैरों को मांसपेशियों (Muscles) में खिंचाव, रीढ़ में सूजन। हाल ही में नोएडा वासी 26 वर्षीय युवती आरती एवं दनौदा गांव से एक युवक का रीढ़ की हड्डी का ‘डिकम्पै्रशन’ और ‘स्कूर फिक्शन’ से सफल इलाज हुआ है। सही समय पर इलाज ही सफलता का कारण है, वरना इस बीमारी में अपंगता आ सकती है।