सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में बहुचर्चित फिल्म ‘The Kerala Story’ पर बैन के फैसले पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने बंगाल सरकार से कहा कि फिल्म देखने वालों की सुरक्षा भी तय की जाए। इससे पहले तामिलनाडु सरकार ने भी फिल्म पर पाबंदी लगाई थी। दरअसल, यह फिल्म लड़कियों के धर्म परिवर्तन और उन्हें आतंकी संगठन ‘आईएसआईएस’ में शामिल करवाने से संबंधित है। इससे पहले ’द कश्मीर फाइल्स’ भी खूब चर्चा में रही थी। वास्तव में देश भर में दो प्रमुख विचारधाराओं के बीच टकराव जारी है।
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कांग्रेस और भाजपा राजनीतिक दल होने के साथ-साथ इनकी विचारधारा भी है। दोनों पार्टियों में राजनीति के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर मत भिन्नता का एक लंबा इतिहास रहा है। यही नहीं, दोनों दल एक दूसरे को इतिहास, कला, शिक्षा जैसे मुद्दों पर भी घेरते रहे हैं। दरअसल, फिल्मों का संबंध मनुष्य व समाज से जुड़ा हुआ है। राजनीति भी समाज का अभिन्न अंग होता है, इसीलिए कई फिल्मों की विषय-वस्तु राजनीति पर भी आधारित होती है। फिल्मों को मनोरंजन के लिए बनाया जाता हैं और यह भी वास्तविक्ता है कि फिल्मों को पूरी तरह राजनीति से रहित भी नहीं समझा जा सकता, लेकिन इसका तात्पर्य यह भी नहीं कि कोई फिल्म केवल राजनैतिक प्रचार होती है। फिल्मों में किसी राजनीतिक मुद्दे को उठाना कोई गलत बात नहीं, लेकिन फिल्म राजनीति मात्र नहीं है।
समाज की वास्तविक्ता को प्रदर्शिन करना ही कालाकार का धर्म है, (‘The Kerala Story’) भले ही उसमें धार्मिक या राजनीतिक प्रसंग भी क्यों न हो, फिर भी फिल्म तो फिल्म ही होनी चाहिए। मानवीय मन पर सामाजिक गतिवधियों का गहरा असर होता है। कला, साहित्या या फिल्मों के माध्यम से सामाजिक परिस्थितियों को प्रदर्शित किया जाता है। कलाकार को मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति से रोकना प्रकृति व समाज के खिलाफ है। कांग्रेस व भाजपा के दावों में क्या यथार्थ है, राजनीतिक चर्च का विषय हो सकता है किंतु फिल्मों के लेखकों, संगीतकारों, स्क्रिपट राइटरों, डॉयरेक्टरों का यह दायित्व है कि वे कला को कला तक ही सीमित रखें, भले ही फिल्म का विषय कोई राजनीतिक मुद्दा भी क्यों न हो।
फिल्में ऐतिहासिक सामग्री, तथ्यों की जांच व (‘The Kerala Story’) राजनीतिक हितों से रहित होनी चाहिए, ताकि समाज व दर्शकों में सकारात्मक संदेश जाए। कला स्वतंत्र होती है, जिसका सरोकार मानवीय संवेदनाओं से जुड़ा होता है। यही नहीं कला का संबंध किसी पार्टी, संगठन, विचारधारा के दायरे से ऊपर उठकर देश काल की सीमाओं से पार होता है। यही क्षमता ही कला के बहुमूल्य और अर्मत्व होने का आधार है। अपने इन्हीं गुणों व विशेषताओं के साथ ही कला हजारों वर्ष बाद भी जीवंत है।