कर्नाटक चुनाव के नतीजे 13 मई को आएंगे। उसी दिन उत्तर प्रदेश निकाय (Karnataka Election) चुनाव के नतीजे भी घोषित होंगे। लेकिन सबकी नजर दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण राज्य कर्नाटक विधान सभा चुनावों के नतीजों पर टिकी है। ये चुनाव जहां भाजपा की नाक का सवाल बने हुए हैं, तो वहीं कांग्रेस भी कर्नाटक चुनाव को लेकर काफी उत्साहित दिखाई देती है। यह माना जा रहा है कि कर्नाटक के चुनाव परिणामों का असर अगले साल होने वाले आम चुनाव व कुछ राज्यों में इस साल होने वाले महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा।
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ऐसे में कर्नाटक चुनाव के नतीजे देश की राजनीति में बड़े बदलाव का कारण (Karnataka Election) बन सकते हैं। हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि इन चुनावों में भाजपा काफी मजबूत स्थिति में दिख रही हैं, वहीं कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष की ताकत का भी पता चल जाएगा। यदि परिणामों पर चर्चा करें तो अगर कांग्रेस जीतती है, पार्टी को बल मिलेगा, विपक्ष दोगुने उत्साह के साथ आगामी चुनावों की रणनीति बनाएगा।
राष्ट्रीय दलों ने चुनाव जीतने के लिए सब-कुछ दांव पर लगा दिया
इसमें कोई दो राय नहीं है कि दोनों राष्ट्रीय दलों भाजपा व कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिए सब-कुछ दांव पर लगा दिया है। यही वजह है कि दोनों दल आसमान से तारे तोड़ लाने के सब्जबाग जनता को दिखा रहे हैं। दरअसल, भाजपा जीत के लिए समान नागरिक संहिता व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे मुद्दे लेकर सामने आई है। पार्टी कह रही है कि समान नागरिक संहिता लैंगिक न्याय और मुस्लिम महिलाओं के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करेगी।
दरअसल, इस राज्य में भाजपा ने 13 फीसदी मुस्लिम आबादी पर ज्यादा फोक्स किया। हालांकि, मुस्लिमों के लिए चार फीसदी ओबीसी कोटा खत्म करने के भाजपा सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। लेकिन पार्टी की कोशिश है कि कांग्रेस को एकमुश्त मुस्लिम वोट पड़ने से कैसे रोका जाए। जहां तक भाजपा व कांग्रेस के चुनावी घोषणा-पत्रों का सवाल है तो दोनों ही लोकलुभावने वादे पूरे करने में आगे हैं। भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में वादा किया है कि बीपीएल परिवारों को साल में तीन गैस सिलेंडर उगादी, गणेश चतुर्थी और दीवाली पर मुफ्त दिए जाएंगे। साथ ही पोषण योजना के तहत प्रत्येक बीपीएल परिवार को हर दिन आधा लीटर नंदिनी दूध तथा हर महीने पांच किलो मोटा अनाज दिया जाएगा।
1999 से हर चुनाव में बीजेपी दोहरे अंकों में सीटें जीतती रही है
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी रेवड़ियां बांटने में पीछे नहीं रही है। उसने राज्य सरकार द्वारा संचालित बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा, परिवार की महिला मुखिया को दो हजार रुपये मासिक सहायता, दो सौ यूनिट तक बिजली मुफ्त तथा 18 से 25 वर्ष की आयु वर्ग के स्नातक बेरोजगारों को तीन हजार तथा डिप्लोमा धारकों को डेढ़ हजार बेरोजगारी भत्ता देने का वादा चुनाव घोषणा पत्र में किया है। जनता दल (एस) ने भी अपने घोषणा पत्र में कृषक समुदाय तथा महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए लोक लुभावनी घोषणाएं की है।
वहीं दूसरी ओर राज्य में धार्मिक कट्टरवाद को समाप्त करने की बात कह कर कांग्रेस ने संघ परिवार के संगठन बजरंग दल व प्रतिबंधित पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। उल्लेखनीय है कि राजग सरकार ने पीएफआई पर पहले ही पांच साल का बैन लगा रखा है। कांग्रेस की इस घोषणा ने भाजपा को नया अस्त्र दे दिया है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं। 1999 से अब तक के हर चुनाव में बीजेपी वहां दोहरे अंकों में सीटें जीतती रही है। उस समय अपनी लोक शक्ति पार्टी को एनडीए में शामिल करके हेगड़े ने अपना लिंगायत वोट बैंक बीजेपी को ट्रांसफर करवा दिया था। 1999 में 13 सीटों से बढ़ते बढ़ते 2019 में बीजेपी 25 सीटों तक जा पहुंची।
दक्षिणी भारत के राज्यों ने अक्सर अलग तरीके से मतदान किया है
कर्नाटक चुनाव में बजरंगबली का मामला भी बड़ा मुद्दा बनकर कांग्रेस के लिए नई मुसीबत बना रहा। इस तरह से बेहद दिलचस्प हो चले कर्नाटक के चुनाव में ध्रुवीकरण और लोकलुभावन नीतियां बड़ी चुनौती पैदा कर रही हैं। दोनों पार्टियां अपने लक्षित वर्ग को भुनाने के लिए जमीन-आसमान एक कर रही हैं। कांग्रेस के गढ़ रहे कर्नाटक में पार्टी अपनी खोई विरासत फिर हासिल करने को बेताब है, वहीं भाजपा अपने इस दक्षिण के द्वार को किसी कीमत पर बंद नहीं होने देना चाहती। जिसके चलते चुनाव के अंतिम चरण में प्रवेश करने के बाद दोनों पार्टियां ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही थी। बहरहाल, कमजोर तबकों के सशक्तीकरण के नाम पर मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का खेल बदस्तूर जारी है। अब राजनीतिक दल मुफ्त की रेवड़ियों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कवायद में जुटे हैं।
कर्नाटक में यदि कांग्रेस को जीत मिली तो, यह इस साल दूसरे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के लिए बूस्टर डोज साबित हो सकती है। दक्षिणी भारत के राज्यों ने अक्सर उत्तरी भारत के राज्यों की तुलना में अलग तरीके से मतदान किया है। वैसे कर्नाटक के चुनाव महाराष्ट्र या तेलंगाना जैसे पड़ोसी राज्यों को प्रभावित नहीं करते। हालांकि जानकार इससे बिल्कुल अलग राय रखते हैं।
कांग्रेस को जल्द से जल्द एक नैरेटिव तैयार करना होगा
कर्नाटक में बीजेपी को कभी भी अपने दम पर बहुमत नहीं मिला। यदि इस बार ऐसा हो गया, तो वह पूरे देश में बता सकेगी कि उसके पास दक्षिण भारत में चुनावी स्वीकार्यता का सबूत है। वह यह साबित करने की कोशिश भी करेगी कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का कोई असर नहीं हुआ। इससे समूचे विपक्ष का मनोबल गिरेगा, ठीक वैसे ही जैसे उत्तर प्रदेश के विधानसभा नतीजों का उनके मनोबल पर प्रभाव पड़ा था। असल में कांग्रेस को जल्द से जल्द एक नैरेटिव तैयार करना होगा।
यदि वह चुनाव दर चुनाव हारती जाती है, तो वह अपने पक्ष में पॉजिटिव नैरेटिव तैयार नहीं कर पाएगी। अभी पिछले वर्ष ही कांग्रेस को पंजाब में हार का सामना करना पड़ा, वहीं मेघालय और त्रिपुरा में भाजपा ने परचम लहराया। यही कारण है कि यह चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत अहम है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस चुनाव में यदि कांग्रेस की हार होती है, तो यह उसके लिए बहुत बड़ा झटका साबित हो सकता है। यदि इस चुनाव में बीजेपी हारती है, तो इसका मतलब यह होगा कि वो दक्षिण भारत में कोई प्रगति नहीं कर पाई है। लेकिन यदि बीजेपी जीतती है, तो इस जीत से दक्षिणी पड़ोसी राज्यों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कार्यकर्ताओं को पर्याप्त ऊर्जा मिलेगी।
राजेश माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)