नई दिल्ली। भारतीय इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रतिज्ञा के लिए ( Maharana Pratap) अमर है। वे उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। वह तिथि धन्य है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर ‘मेवाड़-मुकुट मणि’ राणा प्रताप का जन्म हुआ। वे अकेले ऐसे वीर थे, जिसने मुगल बादशाह अकबर की अधीनता किसी भी प्रकार स्वीकार नहीं की। वे हिन्दू कुल के गौरव को सुरक्षित रखने में सदा तल्लीन रहे। 7 फीट 5 इंच लंबाई, 110 किलो वजन। 81 किलो का भारी-भरकम भाला और छाती पर 72 किलो वजनी कवच। दुश्मन भी जिनके युद्ध-कौशल के कायल थे।
जिन्होंने मुगल शासक अकबर का भी घमंड चूर कर दिया। 30 सालों तक लगातार कोशिश के बाद भी अकबर उन्हें बंदी नहीं बना सका। ऐसे वीर योद्धा Maharana Pratap की 9 मई यानी आज जयंती है। वहीं पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की बेटी हनीप्रीत इन्सां ने वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जयंति पर ट्वीट कर लिखा कि मातृभूमि के सच्चे सपूत, शौर्यता, साहस व समर्पण के प्रतीक, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन।
मातृभूमि के सच्चे सपूत, शौर्यता, साहस व समर्पण के प्रतीक, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी की जन्म जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन व श्रद्धांजलि। #MaharanaPratapJayanti pic.twitter.com/5U0QaFntk0
— Honeypreet Insan (@insan_honey) May 9, 2023
हल्दीघाटी का युद्ध | Maharana Pratap
हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ते हुए महाराणा। यह युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में मेवाड़ तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व Maharana Pratap ने किया था। भील सेना के सरदार, पानरवा के ठाकुर राणा पूंजा सोलंकी थे।इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे- हकीम खाँ सूरी।
लड़ाई का स्थल राजस्थान के गोगुन्दा के पास हल्दीघाटी में एक संकरा पहाड़ी दर्रा था। महाराणा प्रताप ने लगभग 3,000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों के बल को मैदान में उतारा। मुगलों का नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह ने किया था, जिन्होंने लगभग 5,000-10,000 लोगों की सेना की कमान संभाली थी। तीन घण्टे से अधिक समय तक चले भयंकर युद्ध के बाद, Maharana Pratap ने खुद को जख्मी पाया जबकि उनके कुछ लोगों ने उन्हें समय दिया, वे पहाड़ियों से भागने में सफल रहे और एक और दिन लड़ने के लिए जीवित रहे। मेवाड़ के हताहतों की संख्या लगभग 1,600 पुरुषों की थी। मुगल सेना ने 3500-7800 लोगों को खो दिया, जिसमें 350 अन्य घायल हो गए। इस युद्ध में मेवाड़ के महाराणा प्रताप विजय हुए थे, जैसे ही साम्राज्य का ध्यान कहीं और स्थानांतरित हुआ, प्रताप और उनकी सेना बाहर आ गई और अपने प्रभुत्व के पश्चिमी क्षेत्रों को हटा लिया।
इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने किया। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की। वहीं ग्वालियर नरेश ‘राजा रामशाह तोमर’ भी अपने तीन पुत्रों ‘कुँवर शालीवाहन’, ‘कुँवर भवानी सिंह ‘कुँवर प्रताप सिंह’ और पौत्र बलभद्र सिंह एवं सैकडों वीर तोमर राजपूत योद्धाओं समेत चिरनिद्रा में सो गया।
शत्रु सेना से घिर चुके Maharana Pratap को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया और महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। हल्दीघाटी के युद्ध में और देवर और चप्पली की लड़ाई में महाराणा प्रताप को सर्वश्रेष्ठ राजपूत राजा और उनकी बहादुरी,पराक्रम,चारित्र्य, धर्मनिष्ठा,त्याग, के लिए जाना जाता था। मुगलों के सफल प्रतिरोध के बाद, उन्हें “हिंदुशिरोमणी” माना गया।
यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें 17,000 लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिन्ताजनक होती चली गई। 24,000 सैनिकों के 12 साल तक गुजारे लायक अनुदान देकर भामाशाह भी अमर हुआ।
इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ। पर देखा जाए तो इस युद्ध में Maharana Pratap सिंह विजय हुए। अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितनी देर तक टिक पाते, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, ये युद्ध पूरे एक दिन चला ओेैर राजपूतों ने मुग़लों के छक्के छुड़ा दिया थे और सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध आमने सामने लड़ा गया था। महाराणा की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल सेना भागने लग गयी थी।