सरसा (सकब)। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि यह कलयुगी संसार एक जलते, बलते भट्ठ के समान है। काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार व मन-माया ऐसी आग हैं, जिसके भी अंदर यह सुलगती है वह इन्सान कभी चैन नहीं ले सकता। जिस प्रकार किसी गीली लकड़ी में आग लगाने से उसमें आग कम व धुआं अधिक सुलगने लगता है।
इस दौरान इन्सान का सांस लेने में बुरा हाल हो जाता है, लेकिन काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह की आग जिस भी मनुष्य में सुलगती है, वह उस इन्सान को इतना गिरा देती है कि उसके लिए इन्सानियत, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, राम कोई कुछ मायने नहीं रखता। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान काम, वासना की आग में हमेशा सुलगता रहता है, हमेशा दु:खी व परेशान रहता है। इन्सान को काम-वासना जब आती है तो फिर उसके सामने चाहे मां, बहन, बेटी कोई भी हो वह सबको बर्बाद कर डालता है व खुद भी बर्बाद हो जाता है। इसी प्रकार मोह, ममता में जो जीव अंधे हो जाते हैं, उन्हें किसी के अच्छे-बुरे की खबर नहीं रहती। उन्हें तो केवल अपना ही अपना नजर आता है और वो अपनों को ही शैतान बना डालते हैं, जिससे बाद में सारी उम्र दु:खी रहते हैं। आप जी फरमाते हैं कि लोभ-लालच सभी पापों का बाप है। जहां भी इन्सान के मन में लोभ, लालच जाग गया बाकि पाप उसके अंदर खुद ही आ जाते हैं।
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