पुरानी कहावत है, ‘हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।’ यह बात (RO Water) हर उस वस्तु के लिए लागू होती है, जिसे हम सोना समझते हैं। फिर चाहे आरओ से निकलने वाला चमचमाता पानी ही क्यों न हो। क्या आरओ का पानी जितना साफ बताया जाता है, उतना ही गुणकारी भी होता है? क्या आरओ के पानी के वह सभी तत्व मौजूद होते हैं, जो हमारे शरीर की रोग रोधक क्षमता के विकास के लिए जरूरी हैं? क्या हमें आरओ का पानी पीना चाहिए?
विश्व स्वास्थ्य संगठन और ब्यूरो आॅफ इंडियन स्टैंडर्ड के तय मापदंडों मुताबिक आरओ व अन्य तकनीकों से शुद्ध किए जाने वाले पानी को उसमें मौजूद टोटल डिलाजवड सालिड्स या टीडीएस की मात्रा के साथ स्वच्छ या पीने योग्य कहा जा सकता है। मानवीय शरीर अधिक से अधिक 500 पार्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) टीडीएस सहन कर सकता है। अगर यह स्तर 1000 पीपीएम हो जाता है तो यह शरीर के लिए नुक्सानदायक है।
फिलहाल आरओ द्वारा साफ हुए पानी में 18 से 25 पाटर््स पीपीएम टीडीएस पाए जाते हैं, जो काफी कम हैं। इसे हम स्वच्छ पानी तो कह सकते हैं लेकिन सेहतमंद नहीं। 100 से 150 मिलीग्राम/लीटर टीडीएस लेवल के पानी को पीने के लिए सही बताया गया है। टीडीएस लेवल 300 मिलीग्राम/लीटर से अधिक वाला पानी स्वाद व स्वास्थ्य के लिए नुक्सानदायक होता है।
जब हमने सोशल मीडिया पर आरओ के पानी से संबंधित मिलने वाली विभिन्न जानकारियों को देखा तो सोचा कि क्यों न इसकी जांच खुद ही कर ली जाए। तब हमने मापक की मदद से अपने घर व कार्यालय में विभिन्न स्त्रोतों के पानी की जांच की। आरओ में निकलने वाले पानी की टीडीएस मात्रा 20 से 25 के बीच पाई गई। जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किए जाने वाले पानी में टीडीएस की मात्रा 100 से 110 के बीच पाई गई। वहीं जल बोर्ड के पानी को मिट्टी के मटके में 8 घंटे रखने के बाद उसका पानी का टीडीएस 125-130 के बीच आया।
इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली जैसे शहर में जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किए जा रहे पानी की गुणवता काफी अच्छी है लेकिन जब अपने ही कार्यालय के एक सह कर्मचारी के घर के पानी के सैंपल की जांच की गई तो वहां आरओ का आंकड़ा तो नहीं बदला लेकिन जल बोर्उ का आंकड़ा काफी अधिक पाया गया, 500 से ऊ पर। ऐसे क्षेत्रों में जब तक सही टीडीएस का पानी मुहैया न हो तब तक मजबूरी में आरओ का पानी ही पीना चाहिए।
मीठे पानी का लालच
पानी में टीडीएस 100 मिलीग्राम से कम हो तो उसमें वस्तुएं तेजी से घुल जाती हैं। प्लास्टिक की बोतल में बंद पानी में कम टीडीएस हो तो उसमें कुछ प्लास्टिक के कण भी घुलने का खतरा बना रहता है। ऐसा पानी शरीर के लिए नुक्सानदायक होता है। ऐसा देखा गया है कि आरओ बनाने वाली कंपनियां पानी को मीठा करने के लिए उसका टीडीएस कम कर देती हैं। 65 से 95 टीडीएस होने पर पानी मीठा तो जरूर हो जाता है। लेकिन उसमें जरूरी मिनरल भी निकल जाते हैं। अत्याधिक लोगों को इससे होने वाले नुक्सान समझ में नहीं आते।
आरओ पानी मे जहां एक तरफ बुरे मिनरल जिनमें लेड, आरसेनिक, मरकरी आदि को निकाल देता है वहीं अच्छे मिनरल भाव कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि को भी निकाल देता है। इस कारण आरओ के पानी के लगातार इस्तेमाल से जरूरी मिनरल हमारे शरीर को मिल नहीं पाते व इनकी शरीर में कमी हो जाती है। इसलिए यह हमारे शरीर के लिए नुक्सान दायक हो सकता है।
बीमारियों को दे रहे निमंत्रण
एक रिसर्च मुताबिक अगर नियमित रूप से आरओ का पानी पिया जाता है तो इसका बुरा प्रभाव हमारे पाचन तंत्र पर भी पड़ता है। पाचन तंत्र के कमजोर होने से पेट से संबंधित कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही अगर लम्बे समय तक आरओ के पानी को पिया जाए तो उससे दिल से संबंधित समस्याओं में थकावट, सिरदर्द व दिमागी समस्याएं आदि हो सकती हैं। पानी में मौजूद गंदगी व खनिज रटने से यह पानी ज्यादा साफ तो हो जाता है लेकिन बाद में यह पानी ओसिडिक भी हो जाता है, जो शरीर के लिए बहुत ही हानिकारक है। यही नहीं, पानी में मौजूद कार्बोनिक ओसिड हमारे शरीर में कैल्शियम की मात्रा को भी कम करने काम करते हैं। ऐसे में हड्डियों की कमजोरी व जोड़ों में दर्द शुरू हो जाते हैं। इसलिए आजकल काफी डॉक्टर आरओ का पानी बिल्कुल भी न पीने की सलाह देते हैं।
कुल मिलाकर यह माना जाए कि हमें बाजार के प्रभाव में आकर व भेड़ चाल नहीं चलना चाहिए। अपने शहर में जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किए जाने वाले पानी की गुणवता जांच करने के बाद ही फैसला लेना चाहिए कि असल में आरओ की जरूरत है या नहीं। जिन क्षेत्रों में पानी का टीडीएस लेवल तय मापदंडों से अधिक हो या खारा पानी आता हो, सिर्फ वहीं आरओ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए लेकिन उसे आरओ में निकलने के बाद कम से कम 24 घंटों तक पहले मिट्टी के मटके या तांबे के कलश में रखा जाना चाहिए। इससे पानी की गुणवता काफी अधिक बढ़ जाएगी। अन्य जगहों पर पारंपरिक तरीके से भी लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। ऐसा करने से हमारे शरीर को मिलने वाले जरूरी मिनरल भी मिलते रहेंगे और प्यास भी बुझेगी व शरीर को भी कोई नुक्सान नहीं पहुंचेगा।
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