पूज्य गुरु संत डॉ गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि कितनी जिज्ञासा होती है आदमी के अंदर। हम आज भी स्टूडेंट हैं, आपमें से किसी के अंदर भी कोई गुण दिखता है हम फौरन ग्रहण कर लेते हैं। आपको अपनी हकीकत बताते हैं। एज ए ह्यूमन बीर्इंग, एज ए इन्सान। एज ए संत, पीर-फकीर वो तो शाह सतनाम, शाह मस्तान ही हैं, वो हम हैं ही नहीं, हमारे शरीर में वो ही काम कर रहे हैं। पर एज ए इन्सान हम आज भी एक स्टूडेंट हैं और हमें लगता है हमेशा ही स्टूडेंट ही रहेंगे।
हर आदमी में कोई न कोई गुण जरूर होता है, बस निगाह गुण की तरफ होनी चाहिए। चाहे कितना भी बुरा इन्सान क्यों ना हो, जब मेरी नजर ढूंढ ही गुण रही है तो मैं उसमें कोई ना कोई गुण निकाल ही लूंगा। उसको लेकर अपने आप को परिपूर्ण करो। ये है हमारा कल्चर, ये है हमारी सभ्यता। लेकिन आप गुण तो अपने गाते हैं, मैं ऐसा हूँ, मैंने ये किया था, मैंने वो किया था, मैं ऐसा था, मैं वैसा था, जो खुद का गाते हैं वो उड़ जाया करता है और जो दूसरों का गाते हैं वो आ जाया करता है।
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